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बांग्लादेशी पत्रकारों की हत्या का मामला यूएन में

६ मार्च २०१२

बांग्लादेश के पत्रकार दंपति की निर्मम हत्या का मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गया है. महासचिव बान की मून से हस्तक्षेप की मांग की गई है. ढाका में हत्या के तीन हफ्ते बाद भी इस मामले में कोई सुराग नहीं मिल पाया है.

बॉन में यूएन दफ्तर के बाहर प्रदर्शनतस्वीर: DW

जर्मनी के बॉन शहर में संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर के बाहर सुबह नौ बजे प्रवासी बांग्लादेशियों और पत्रकारों की भीड़ जमा हो गई. हाथों में काली तख्तियां लिए ये लोग सागर सरवर और उनकी पत्नी मेहरुन रूनी की हत्या के मामले में कार्रवाई की मांग कर रहे थे. सरवर करीब तीन साल तक बॉन में डॉयचे वेले के बंगला विभाग में काम कर चुके हैं. प्रदर्शन के बाद यहां जमा लोगों ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को ज्ञापन सौंपा.

तस्वीर: DW

ज्ञापन में कहा गया है, "हम संयुक्त राष्ट्र से निवेदन करते हैं कि इस बर्बर अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को इंसाफ दिलाने में हस्तक्षेप करे और मामले की सुनवाई जल्द से जल्द शुरू हो सके." बांग्लादेश से बाहर रह रहे लोगों का आरोप है कि जान बूझ कर मामले की जांच ठीक ढंग से नहीं हो रही है.

पिछले महीने 11 फरवरी को 37 साल के सागर सरवर और मेहरुन रूनी की हत्या बांग्लादेश की राजधानी ढाका के राजाबजार इलाके में उनके घर में कर दी गई. पुलिस का कहना है कि हत्या बेहद निर्मम तरीके से की गई और सरवर के शरीर पर चाकू के कई वार किए जाने से पहले उनके दोनों हाथ बांध दिए गए. सरवर बांग्लादेश के प्रतिष्ठित समाचार चैनल मासरंगा में न्यूज एडिटर थे, जबकि उनकी पत्नी रूनी एटीएन बांग्ला चैनल में सीनियर रिपोर्टर थीं. हत्या के समय उनका पांच साल का बेटा मेघ भी घर पर था, जिसने अगले दिन अपने रिश्तेदारों को फोन करके इस घटना के बारे में जानकारी दी.

दो पत्रकारों के इस जघन्य हत्या के बाद बांग्लादेश सरकार फौरन हरकत में आई और शेख हसीना सरकार ने 48 घंटे के अंदर मामले के तह तक पहुंचने की बात कही थी. लेकिन तीन हफ्ते बीत जाने के बाद भी इस हत्याकांड में अब तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है.

सागर के लिए इंसाफ की मांगतस्वीर: Harun Ur Rashid Swapan

संयुक्त राष्ट्र से मामले में दखल देने की अपील करने वालों में सागर के साथ काम कर चुकी क्रिस्टियाने राब्बे का कहना है, "मैं आज भी इस बर्बर घटना की कल्पना नहीं कर सकती हूं. मैं इस समाचार को सुन कर बहुत दुखी हो गई थी. मुझे उम्मीद है कि इस मामले में इंसाफ किया जाएगा."

बांग्लादेश में प्रेस की आजादी को लेकर लंबे समय से विवाद हो रहा है. पिछले साल के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में बांग्लादेश 126वें नंबर पर था, जो जिम्बाब्वे और नेपाल से भी नीचे है.

रिपोर्टः ए जमाल

संपादनः महेश झा

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