बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हामिद छह दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत में हैं. इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सहयोग बढ़ाने और भूमि सीमा समझौते की मंजूरी पर बातचीत होगी.
तस्वीर: imago/Xinhua
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बांग्लादेश के राष्ट्रपति की भारत यात्रा 42 वर्ष बाद ऐसे समय में हो रही है जब भारतीय संसद में दोनों देशों के बीच सीमा पर भूमि की अदला बदली संबंधी समझौते को मंजूरी दिलाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है. भूमि सीमा समझौते पर 2011 में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के बीच सहमति बनी थी. इस समझौते के तहत भारत बांग्लादेश सीमा को फिर से निर्धारित किया जाएगा और पहले के मुकाबले ज्यादा सरल किया जाएगा.
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी समझौते का समर्थन करने की बात कही है. दो साल पहले उन्होंने बिल के समर्थन से इनकार किया था. भारत के जमीन के छोटे छोटे 130 टुकड़े (एन्क्लेव) बांग्लादेशी भूमि से घिरे हैं, जिनमें से 111 की अदला बदली मुमकिन है. इसी तरह भारतीय क्षेत्र में बांग्लादेश के 92 एन्क्लेवों में से 51 की अदला बदली हो सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति मुहम्मद अब्दुल हामिद के साथ द्विपक्षीय संबंधों में सहयोग बढ़ाने को लेकर आज बातचीत की. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी राष्ट्रपति भवन पहुंच कर उनसे मुलाकात की और दोपहर में हैदराबाद हाउस में मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक में हिस्सा लिया. बातचीत में ऊर्जा क्षेत्र में बांग्लादेश के साथ सहयोग बढ़ाए जाने पर भी चर्चा हुई. वह आज भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भेंट करने से पहले उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद से भी मुलाकात कर रहे हैं.
वर्ष 1971 में अस्तित्व में आए बांग्लादेश के किसी राष्ट्रपति की यह पहली भारत यात्रा है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निमंत्रण पर उनके मेहमान बन कर आए बांग्लादेशी राष्ट्रपति को राष्ट्रपति भवन में ठहराया गया है. प्रणब मुखर्जी ने गत मार्च में बांग्लादेश की यात्रा की थी. छह दिवसीय यात्रा के अंतर्गत गुरुवार दोपहर भारत पहुंचने पर हवाई अड्डे पर विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने बांग्लादेशी राष्ट्रपति का स्वागत किया. मेहमान राष्ट्रपति ने कल सबसे पहले राजघाट जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित किए.
वह शनिवार को आगरा जाएंगे, जहां वह ताजमहल, आगरा का किला और फतेहपुर सीकरी का भ्रमण करेंगे. रविवार को अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढाएंगे और शाम को जयपुर के आमेर के किले एवं सिटी पैलेस का भ्रमण करेंगे. सोमवार को वह कोलकाता जाएंगे जहां राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से मुलाकात के बाद शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय जाएंगे. भारत ने राष्ट्रपति हामिद की इस यात्रा से बंगलादेश के साथ संबंध मजबूत बनने तथा सहयोग बढ़ने की आशा जताई है.
एसएफ/एजेए (वार्ता)
बांग्लादेश में बाल मजदूरी
करीब 45 लाख बांग्लादेशी बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं और जानलेवा कामों में लगे हुए हैं. इनमें से करीब 17 लाख बच्चे राजधानी ढाका में रहते हैं. इन बच्चों के रोजमर्रा जीवन की एक झलक...
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गुब्बारे की फैक्ट्री में
भारी गरीबी के कारण परिवार बच्चों को मजदूरी करवाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इन्हें कम पैसे मिलते हैं. ईंटें ढोना, कंस्ट्रक्शन, कचरा उठाना या फिर गुब्बारा बनाने वाली फैक्ट्रियों में ये काम करते हैं. ढाका के कमरंगी चार इलाके के गुब्बारा कारखाने में कई किशोर काम करते हैं. इनमें 10 साल के बच्चे भी हैं.
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निगरानी की कमी
कमरंगी चार जैसे कारखानों में काम करने वाले बच्चों को अक्सर खतरनाक रसायनों के बीच काम करना पड़ता है. बांग्लादेश की सरकार ने निर्देशिका जारी की है जिसके मुताबिक 38 खतरनाक रोजगारों में बच्चों के काम करने पर रोक है. लेकिन ये निर्देश कहीं लागू नहीं किए गए हैं.
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अधिकतर मजदूर बच्चे
वयस्कों की तुलना में बच्चों को कम पैसे दिये जाते हैं और अक्सर उनसे ज्यादा काम भी करवाया जाता है. यह एक कारण है कि कारखानों में बच्चे काम करते हैं. इन बच्चों को अक्सर कारखाने के कमरों में ही रखा जाता है ताकि बाहर से ये नहीं दिखें. इन्हें शुक्रवार के अलावा कोई छुट्टी नहीं मिलती.
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खतरनाक माहौल
ये अली हुसैन है. यह बच्चा ढाका के केरानीगंज की सिल्वर फैक्ट्री में काम करता है, दिन रात. घंटों का काम और बहरा करने वाला मशीनों का शोर. कहने की जरूरत नहीं कि दिन भर काम करने वाले बच्चे अक्सर स्कूल नहीं जाते.
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चमड़ा बनाने के काम में
2006 में बनाए गए बांग्लादेश के श्रम कानून के मुताबिक काम करने की न्यूनतम आयु 14 है. ये है 12 साल का आसिम. नोआखाली में रहने वाला आसिम हर दिन 12 घंटे ढाका के हजारीबाग में चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता है. इसके जरिये वह अपना और मां का पेट पाल सकता है.
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राबी
चांदपुर में रहने वाला राबी अपनी मां के साथ प्लास्टिक कमरंगी चार के प्रोसेसिंग कारखाने में काम करता है, यहां बोतलें बनाई जाती हैं. इस कारखाने में बच्चों को नौकरी नहीं दी जाती लेकिन राबी को इसलिए काम मिला क्योंकि मां की तनख्वाह से घर नहीं चल पाता.
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चिल्लाने के लिए
बाल मजदूरी करने वाले 93 फीसदी बच्चे असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. छोटे कारखानों, घरेलू धंधों या नौकर के तौर पर या फिर छोटी बसों या टैक्सियों में चिल्लाने वाले कंडक्टर के तौर पर काम करते हैं और अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार भी होते हैं.
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ईंट बनाने में
बांग्लादेश में ईंट बनाने का काम बहुत आम है. कई बच्चे ढाका के आमिन बजार में ईंट ढोने का काम करते हैं. उन्हें इन भारी ईंटों को उठाने के लिए 100-200 टका दिये जाते हैं. एक ईंट करीब तीन किलोग्राम की होती है और हर बच्चे को छह से सोलह ईंटे उठानी ही पड़ती हैं.
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स्वास्थ्य को खतरा
रहीम सीसे की फैक्ट्री में लगा हुआ है. सीसा एक खतरनाक रासायनिक पदार्थ है और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक. कई बच्चे इस तरह के कामों में लगे हुए हैं और अक्सर भेदभाव, दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के भी शिकार बन जाते हैं.