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बांग्लादेश की राजनैतिक स्थिति कमोबेश वही

मृदुला सिंह२७ जून २००७

कुछ समय पहले अप्रील में बांग्लादेश के सेना प्रमुख लेफ्टीनेंट जनरल मोईन-उ-अहमद ने कहा था कि बांग्लादेश की सेना की सत्ता हथियाने में कोई रुचि नहीं है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा था कि सेना राजनीति में नहीं जाएगी। वो अभी केयरटेकर सरकार की केवल सहायता कर रही है। मोईन-उ-अहमद ने कहा था कि जब

क्या होगा हमारा राजनैतिक भविष्य?
क्या होगा हमारा राजनैतिक भविष्य?तस्वीर: AP/DW

आवश्यकता समाप्त हो जाएगी तो सेना बैरकों में लौट जाएगी। मगर लग रहा है कि सेना के वापस बैरकों में जाने में अभी देर है। बांग्लादेश में राजनैतिक स्थिति में कमोबेश कोई अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है यानि कि वही ढाक के तीन पात।

पार्टियों में आंतरिक सुधार अभियान

हालाँकि असंतुष्ट पार्टी नेताओं द्वारा अपनी पार्टियों को 'लोकताँत्रिक' बनाने के लिए जारी की गई योजना के बीच अंतरीम सरकार ने इस बात का संकेत दिया है कि वो राजनैतिक पार्टियों द्वारा आंतरिक सुधार के लिए विशेष परिषदों के आयोजन की आज्ञा दे देगी।

इस संबंध में सूचना सलाहकार सेवानिवृत्त मेजर जनरल एम ए मतिन ने मंगलवार को कहा था कि आपातकाल में प्रतिबंधों में ढील देते हुए हम पार्टियों द्वारा परिषद् बुलाने की मांगों पर विचार करेंगे।

पार्टियों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाने से इंकार करते हुए मतिन ने कहा कि देश के विकास के लिए राजनैतिक पार्टियों में सुधार की आवश्यकता है। संयोगवश बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) खालेदा ज़िया को अलग करते हुए कई सुधार योजनाएँ ला रही है जबकि अवामी लीग के वरिष्ठ नेता पार्टी प्रमुख शेख हसीना पूर्ण एकाधिकार पर कैंची चलाते हुए पार्टी संविधान में परिवर्तन लाने के प्रस्तावों को अंतिम रूप दे रहे हैं।

बीएनपी के असंतुष्टों की अगुआई कर रहे महासचिव अब्दुल मन्नान भुइयाँ का कहना है कि पार्टी को आगे ले जाने के लिए सुधार ज़रूरी हैं और यही समय की मांग है।

उधर लिबरल डैमोक्रैटिक पार्टी (एलडीपी) के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति एक्यूएम बी चौधरी ने दो दिनों से चल रहे एक बड़े राजनैतिक ड्रामा के तहत कार्यकारी अध्यक्ष ओली अहमद, पूर्व संसद अध्यक्ष शेख रज्ज़ाक अली और 11 अन्य को हटाते हुए बुधवार को एक नई पार्टी कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है। अपने निष्काशन को धता बताते हुए वरिष्ठ नेता ओली अहमद अपने साथ बहुमत के होने की बात कही।

इस बीच पूर्व सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद एर्शाद को अपनी जातीय पार्टी के भीतर ही उनकी अपनी पत्नी द्वारा ही विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है जिन्होने एर्शाद को पार्टी से निष्काशित करते हुए स्वयं को पार्टी प्रमुख घोषित कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति बहुत लंबे समय तक पार्टी को नहीं चला सकता है। तो इस प्रकार एरशाद की पत्नी के स्वयं को नेता घोषित करने के साथ ही बांग्लादेश में तीन महिला नेत्री हो गईं हैं।

चुनाव में अभी देरी

मगर इन सब बदलावों के बीच देश की राजनैतिक स्थिति में मुख्य बदलाव ला सकने वाले चुनाव की कहीं कोई बात नहीं हो रही है। 22 जनवरी 2007 को होने वाले राष्ट्रीय चुनाव को हिंसा के लंबे सिलसिले के बाद टाल दिया गया था। वर्तमान सेना समर्थित अंतरीम सरकार का कहना है कि देश में भ्रष्टाचार समाप्ति और राजनैतिक सुधार लाए बिना वो चुनाव नहीं करवाएगी। तब से देश के साथ साथ राजनीति को भी साफ सुथरा करने का अभियान छिड़ा हुआ है।

फिलहाल देश की बागडोर सेन्ट्रल बैंक के प्रमुख फखरुद्दीन अहमद के हाथ में है।

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