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समाज

रोहिंग्या कैंपों में बढ़े एचआईवी और यौन संक्रमण

राहत राफे
२६ दिसम्बर २०१९

बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या लोगों में एचआईवी संक्रमण तेजी से फैल रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक समझे जाने की वजह से यह घातक वायरस एक चुनौती बन रहा है.

Indien Pakistan Symbolbild Vergewaltigung
तस्वीर: picture alliance / AA

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों पर एचआईवी और दूसरे संक्रामक यौन रोगों का खतरा लगातार बढ़ रहा है. बांग्लादेश सरकार की तरफ से जारी हालिया आंकड़े बताते हैं कि कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविर में 395  लोग एचआईवी के घातक वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 105 लोगों की पहचान इसी साल की गई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि संक्रमित लोगों की असल संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है. उन्होंने अधिकारियों से ऐसे उपाय करने को कहा है जिनसे इस बीमारी को रोका जा सके.

रोहिंग्या म्यांमार में रहने वाले अल्पसंख्यक लोग हैं जो मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप से जाकर वहां बसे हैं. कई सदियों से वे म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रह रहे थे, जिसे अराकन के नाम से भी जाना जाता है. रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं. म्यांमार की सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती. दशकों से म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों पर रोहिंग्या लोगों से भेदभाव और हिंसा करने के आरोप लगते हैं. 

अगस्त 2007 में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने एक चरमपंथी हमले के बाद कार्रवाई की जिसके बाद लाखों रोहिंग्या लोग रातों रात भागकर बांग्लादेश पहुंचे गए हैं.

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एचआईवी संकट

कॉक्स बाजार में रोहिंग्या शरणार्थियों के पहुंचने के कुछ महीने बाद बांग्लादेशी अधिकारियों ने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर मेडिकल टेस्ट कराए. इस दौरान एचआईवी के 85 मामलों की पहचान की गई. इसके बाद से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

चिकित्सा विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका लांसेट के एक अध्ययन में पता चला है कि अगस्त 2018 तक आधिकारिक तौर पर एचआईवी के 273 मामले दर्ज किए गए. पत्रिका के अनुसार 8 मार्च 2019 तक इनकी संख्या बढ़ कर 319 हो गई. यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि संभव है कि कई लोग इलाज ना करा रहे हों.

लांसेट का कहना है कि एचआईवी के 319 मामलों में से 277 लोग दवाएं खा रहे हैं जबकि 19 लोगों की मौत हो चुकी है. इस बीच बांग्लादेश सरकार की तरफ से प्रकाशित आंकड़ों में एचआईवी संक्रमण के मामलों की संख्या 395 बताई गई है.

जागरूकता की कमी

सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि लोगों में ना सिर्फ जागरूकता की कमी है बल्कि वे एचआईवी संक्रमण को सामाजिक कलंक भी समझते हैं. इसीलिए इससे निपटने में काफी मुश्किलें आती हैं.

कॉक्स बाजार के शिविर में काम करने वाले एक डॉक्टर मोहम्मद अब्दुल मतीन कहते हैं कि अन्य रुढ़िवादी समाजों की तरह रोहिंग्या समाज में भी एचआईवी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति को अलग थलग कर दिया जाता है. इसी डर से कई लोग अपने संक्रमण को छिपाते हैं और किसी तरह की मेडिकल सहायता लेने से कतराते हैं.

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ढाका में स्थित में एक संस्था पॉपुलेशन सर्विसेज एंड ट्रेनिंग सेंटर में काम करने वाले मेडिकल ऑफिसर आसिफ हुसैन कहते हैं कि बहुत सारे रोहिंग्या लोग एचआईवी को भी खांसी और बुखार जैसी बीमारी समझते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "उन्हें यह समझाना खासा मुश्किल होता है कि यह बीमारी कितनी गंभीर है." वह कहते हैं, "जब बात संभोग जैसे विषयों की होती है तो बहुत से लोग डॉक्टर की सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते हैं."

तत्काल मदद की जरूरत

लांसेट पत्रिका कहना है कि स्थिति को बदतर होने से बचाने के लिए अधिकारियों को रोहिंग्या लोगों के बीच एचआईवी को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए. उसका यह भी कहना है कि मौजूदा स्वास्थ्यकर्मियों को इतना सक्षम बनाया जाए कि वे एचआईवी संक्रमित लोगों की पहचान कर उनका इलाज शुरू कर सकें. बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियों से भी एचआईवी को प्राथमिकता मानने को कहा है.

रोहिंग्या लोगों की देखभाल के लिए कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां कॉक्स बाजार कैंप में काम कर रही हैं. ये मरीजों की एचआईवी जांच करती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि लगभग दस लाख लोगों की देखभाल करने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.

डॉ अब्दुल मतीन कहते हैं कि शरणार्थी कैंपों में एचआईवी जांच केंद्रों की संख्या बढ़ाने की बहुत जरूरत है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ हुसैन की राय में, रोहिंग्या लोगों के बीच जागरूकता फैलाकर एचआईवी संकट को रोका जा सकता है.

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