बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या लोगों में एचआईवी संक्रमण तेजी से फैल रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक समझे जाने की वजह से यह घातक वायरस एक चुनौती बन रहा है.
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स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों पर एचआईवी और दूसरे संक्रामक यौन रोगों का खतरा लगातार बढ़ रहा है. बांग्लादेश सरकार की तरफ से जारी हालिया आंकड़े बताते हैं कि कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविर में 395 लोग एचआईवी के घातक वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 105 लोगों की पहचान इसी साल की गई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि संक्रमित लोगों की असल संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है. उन्होंने अधिकारियों से ऐसे उपाय करने को कहा है जिनसे इस बीमारी को रोका जा सके.
रोहिंग्या म्यांमार में रहने वाले अल्पसंख्यक लोग हैं जो मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप से जाकर वहां बसे हैं. कई सदियों से वे म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रह रहे थे, जिसे अराकन के नाम से भी जाना जाता है. रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं. म्यांमार की सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती. दशकों से म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों पर रोहिंग्या लोगों से भेदभाव और हिंसा करने के आरोप लगते हैं.
अगस्त 2007 में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने एक चरमपंथी हमले के बाद कार्रवाई की जिसके बाद लाखों रोहिंग्या लोग रातों रात भागकर बांग्लादेश पहुंचे गए हैं.
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
तस्वीर: Reuters
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Win
आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
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एचआईवी संकट
कॉक्स बाजार में रोहिंग्या शरणार्थियों के पहुंचने के कुछ महीने बाद बांग्लादेशी अधिकारियों ने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर मेडिकल टेस्ट कराए. इस दौरान एचआईवी के 85 मामलों की पहचान की गई. इसके बाद से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
चिकित्सा विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका लांसेट के एक अध्ययन में पता चला है कि अगस्त 2018 तक आधिकारिक तौर पर एचआईवी के 273 मामले दर्ज किए गए. पत्रिका के अनुसार 8 मार्च 2019 तक इनकी संख्या बढ़ कर 319 हो गई. यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि संभव है कि कई लोग इलाज ना करा रहे हों.
लांसेट का कहना है कि एचआईवी के 319 मामलों में से 277 लोग दवाएं खा रहे हैं जबकि 19 लोगों की मौत हो चुकी है. इस बीच बांग्लादेश सरकार की तरफ से प्रकाशित आंकड़ों में एचआईवी संक्रमण के मामलों की संख्या 395 बताई गई है.
जागरूकता की कमी
सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि लोगों में ना सिर्फ जागरूकता की कमी है बल्कि वे एचआईवी संक्रमण को सामाजिक कलंक भी समझते हैं. इसीलिए इससे निपटने में काफी मुश्किलें आती हैं.
कॉक्स बाजार के शिविर में काम करने वाले एक डॉक्टर मोहम्मद अब्दुल मतीन कहते हैं कि अन्य रुढ़िवादी समाजों की तरह रोहिंग्या समाज में भी एचआईवी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति को अलग थलग कर दिया जाता है. इसी डर से कई लोग अपने संक्रमण को छिपाते हैं और किसी तरह की मेडिकल सहायता लेने से कतराते हैं.
बांग्लादेश द्वारा रोहिंग्याओं को बसाने के लिए तैयार किए गए द्वीप की एक झलक
बांग्लादेश ने 27.2 करोड़ डॉलर खर्च किया है ताकि रोहिंग्याओं के लिए भासन चार द्वीप को रहने लायक बनाया जा सके. हालांकि कॉक्स बाजार में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी चक्रवात की आशंका के कारण इस द्वीप पर नहीं जाना चाहते हैं.
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मुख्य जमीन से काफी दूर
भासन चार द्वीप को बांग्ला भाषा में 'तैरता हुआ द्वीप' कहते हैं. बंगाल की खाड़ी में इस द्वीप का निर्माण हुए 20 साल से भी कम समय हुआ है. यह बांग्लादेश की मुख्य भूमि से करीब 30 किलोमीटर दूर है. बांग्लादेश की सरकार ने कॉक्स बाजार में रह रहे करीब एक लाख रोहिंग्याओं को यहां बसाने की योजना बनाई है.
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आने-जाने में परेशानी
द्वीप पर आम लोगों के आने जाने के लिए परिवहन का कोई उचित साधन नहीं है. कुछ लोगों ने डीडब्ल्यू को बताया कि मानसून के मौसम में समुद्र के रास्ते यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल हो जाता है.
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तटबंध द्वारा सुरक्षा?
सरकार ने समुद्री लहरों और बाढ़ से द्वीप को बचाने के लिए 13 किलोमीटर लंबा और 3 मीटर ऊंचा तटबंध बनाया है. द्वीप पर रहने वाले दुकानदारों के मुताबिक समुद्र में आने वाली ऊंची लहरों की वजह से महीने में दो बार तटबंध का 3 से 4 फीट हिस्सा पानी में डूब जाता है.
तस्वीर: DW/A. Islam
एक समान दिखने वाले मकान
सरकार ने यहां 1,440 एक तल्ला वाले मकान बनाए हैं. प्रत्येक मकान में 16 कमरे हैं. एक परिवार के कम से कम चार लोगों को एक कमरे में रहना होगा. चक्रवात के दौरान बचाव के लिए चार तल्ले वाले 120 मकान बनाए गए हैं.
तस्वीर: DW/N. Conrad
सौर ऊर्जा का इस्तेमाल
ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भासन चार के सभी घरों के ऊपर सोलर पैनल लगाए गए हैं. साथ ही विद्युत के लिए एक बड़ा सोलर फिल्ड बनाया गया है और दो डीजल जेनेरेटर लगाए गए हैं. पीने के पानी के लिए ट्यूब वेल के साथ बारिश के पानी को जमा करने का उपाय किया गया है.
तस्वीर: DW/A. Islam
कटाव से बचाव के उपाय
अस्थिर प्रकृति की वजह से इस द्वीप को 'तैरता हुआ द्वीप' कहा जाता है. उपग्रह से मिली तस्वीरों से वर्ष 2002 में इस द्वीप का पता चला. बांग्लादेशी अधिकारियों ने द्वीप को कटाव से रोकने के लिए सीमेंट, पत्थर और बालू से भरी बोरियों को व्यवस्थित तरीके से किनारे पर रखा है.
तस्वीर: DW/A. Islam
क्या यह निर्जन द्वीप है?
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि द्वीप अभी निर्जन है. जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ ऐनुन निशात का मानना है कि अगर तटबंध 6.5 से 7 मीटर तक ऊंचा हो जाए तो लोग यहां रह सकते हैं. हालांकि उन्हें लगता है कि यहां खेती करना अभी संभव नहीं है.
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चक्रवात और डूबने के भय से रोहिंग्या चिंतित
रोहिंग्या शरणार्थी कहते हैं कि यदि उन्हे जबरन इस द्वीप पर भेजा जाता है तो वे चक्रवात की वजह से मर सकते हैं. वे कहते हैं कि उनके बच्चे समुद्र में डूब सकते हैं.
तस्वीर: DW/A. Islam
क्या यहां रहने जाएंगे रोहिंग्या?
द्वीप रहने के लिए लगभग तैयार हो गया है. सरकार का अब उन्हें वहां भेजने का फैसला लेना है. कई सूत्र बताते हैं कि नवंबर महीने में यह फैसला लिया जा सकता है. बांग्लादेश की सरकार ने यह संकेत दे दिया है कि यदि कॉक्स बाजार स्थित शरणार्थी शिविर से कोई नहीं जाना चाहेगा तो उसे जबरन भेजा जाएगा. (रिपोर्टः अराफातुल इस्लाम, नाओमी कोनराड)
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ढाका में स्थित में एक संस्था पॉपुलेशन सर्विसेज एंड ट्रेनिंग सेंटर में काम करने वाले मेडिकल ऑफिसर आसिफ हुसैन कहते हैं कि बहुत सारे रोहिंग्या लोग एचआईवी को भी खांसी और बुखार जैसी बीमारी समझते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "उन्हें यह समझाना खासा मुश्किल होता है कि यह बीमारी कितनी गंभीर है." वह कहते हैं, "जब बात संभोग जैसे विषयों की होती है तो बहुत से लोग डॉक्टर की सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते हैं."
तत्काल मदद की जरूरत
लांसेट पत्रिका कहना है कि स्थिति को बदतर होने से बचाने के लिए अधिकारियों को रोहिंग्या लोगों के बीच एचआईवी को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए. उसका यह भी कहना है कि मौजूदा स्वास्थ्यकर्मियों को इतना सक्षम बनाया जाए कि वे एचआईवी संक्रमित लोगों की पहचान कर उनका इलाज शुरू कर सकें. बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियों से भी एचआईवी को प्राथमिकता मानने को कहा है.
रोहिंग्या लोगों की देखभाल के लिए कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां कॉक्स बाजार कैंप में काम कर रही हैं. ये मरीजों की एचआईवी जांच करती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि लगभग दस लाख लोगों की देखभाल करने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.
डॉ अब्दुल मतीन कहते हैं कि शरणार्थी कैंपों में एचआईवी जांच केंद्रों की संख्या बढ़ाने की बहुत जरूरत है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ हुसैन की राय में, रोहिंग्या लोगों के बीच जागरूकता फैलाकर एचआईवी संकट को रोका जा सकता है.