बांग्लादेश दे रहा है बढ़ते समुद्र स्तर से बचने के लिए जमीन
१४ जनवरी २०१९
समुद्र के बढ़ते स्तर से परेशान बांग्लादेश ने एक उपाय खोजा है. बांग्लादेश के वन विभाग ने उन लोगों के बीच बंजर जमीन बांटनी शुरू की है जो बाढ़ों के कारण तटों से हट के द्वीप के अंदर आने के लिए मजबूर हैं.
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फिरदौसी अख्तर के परिवार को नदी का किनारा ढहने के कारण अपना घर छोड़कर द्वीप के दुसरे हिस्से में जाकर बसना पड़ा. इसकी वजह से पूरा परिवार बहुत ज्यादा परेशानी झेल रहा है. उनके पति मछली पकड़ने वाली नाव पर काम करते थे मगर इतने पैसे नहीं कमाते थे कि परिवार का खर्च चल पाए.
पिछले साल अख्तर जैसे 45 परिवारों को बांग्लादेश वन विभाग ने हटिया द्वीप पर दस साल के लिए लीज पर जमीन दी है. अख्तर बताती हैं, "हमको जमीन का एक टुकड़ा और एक तालाब दिया गया है. अब हम खेतों में सब्जी उगाते हैं और तालाब में मछली पालते हैं. इससे हमको फायदा हो रहा है." अख्तर के परिवार ने अभी तक 10 हजार टाका की मछली बेची है और उनको उम्मीद हैं कि अगले महीने तक वे एक लाख टाका तक कमा लेंगे.
पीड़ितों को जमीन
जलवायु परिवर्तन की वजह से तटीय इलाकों में रहने वाले बांग्लादेशी परिवारों को अपना घरबार छोड़ना पड़ रहा है इसलिए वन विभाग ने ऐसे परिवारों को नदी द्वारा लाई गई मिट्टी से बनी जमीन देना शुरू किया है. गरीब परिवार इस जमीन को दस साल बिना कोई भी किराया दिए इस्तेमाल कर सकते हैं, मगर वे इस जमीन पर रह नहीं सकते क्योंकि ये सुरक्षित इलाके से बाहर है.
इस योजना को दो साल पहले बांग्लादेशी सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने मिल के शुरू किया था. इस कार्यक्रम में हटिया और भोला जिले के कुछ द्वीप भी आते हैं. अभी हटिया उप जिले की 22 एकड़ जमीन 45 परिवारों में बांटी गई है. इसके साथ उनको एक तालाब भी दिया गया है जिसमें वो मछली पाल सकते हैं. इन परिवारों को टिम्बर और फलों के बीज भी दिए गए हैं. परिवारों को बतख पालना और सब्जी उगाना भी सिखाया गया है ताकि वे और पैसे कमा सकें.
जमीन को बचाने की कोशिश
यूएनडीपी के सामुदायिक विकास अधिकारी मिजानुर रहमान भुइयां का कहना है कि कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए कई लोग आगे आ रहे हैं. वन अधिकारियों ने बताया कि अगले चरण में 100 परिवारों को 20 हेक्टेयर जमीन और तलाब देने की योजना है. इससे 5 लाख लोगों को मदद मिलेगी और आगे चलकर इस कार्यक्रम को बढ़ाया जा सकता है. वन विभाग को ये भी उम्मीद है कि जमीन देने की मियाद को दस साल से बढ़ाया जा सकता है.
प्रभागीय वनाधिकारी इस्लाम तौहिदुल ने बताया कि "बहुत सारी बंजर जमीन वन विभाग के नियंत्रण में आती है. इस जमीन को गरीब परिवारों को देने का ये फायदा है कि जमीन ताकतवर नेताओं और जमींदारों से बच जाएगी और इन परिवारों की गरीबी को दूर करने में मदद करेगी. ताकतवर नेता और जमींदार इस जमीन को अपने फायदे के लिए कब्जा करना चाहते हैं."
समुद्र की बढ़ती सीमा
बांग्लादेश जल विकास बोर्ड के आकड़े बताते हैं कि पिछले दो साल में समुद्र के बढ़ते स्तर ने हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन, घरों, दुकानों, मस्जिदों और तूफान से बचने के लिए बनाए शिविरों को निगल लिया है. हटिया द्वीप का 14 किलोमीटर का समुद्र तट भी पानी के नीचे चला गया है. अपनी 2016 की वार्षिक रिपोर्ट में विकास समूह बीआरएसी ने चेतावनी दी थी कि लगभग 2.7 करोड़ बांग्लादेशियों को 2050 तक बढ़ते समुद्र स्तर से खतरा हो सकता है. देश का दो तिहाई हिस्सा समुद्र से 5 मीटर से कम की ऊंचाई पर है.
2018 के एक अध्ययन में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट और ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी ने अनुमान लगाया है कि समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण मिट्टी में नमक की मात्रा बढ़ जाएगी और 140,000 लोग जो अभी तटों पर रहते है वे शहर के अंदर रहने आएंगे और लगभग 60,000 अन्य जिलों में चले जाएंगे. मिट्टी में नमक के बढ़ने की वजह से फसलों को नुकसान होगा और लोगों के लिए खेती से पैसा कमाना मुश्किल हो जाएगा.
सरकारी आकड़े दिखाते हैं कि हटिया में चार चांग स्टेशन पर 5.7mm और सुंदरवन में हर साल हिरोइन पॉइंट पर 3.4mm समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. भोला के मानपुरा द्वीप के निवासी 45 साल के अब्दुल खलीक का कहना है कि "पहले समुद्र का पानी दूर था मगर अब पास आ गया है. पिछले 20 से 25 सालों में एक तिहाई टापू समुद्र के नीचे चला गया है." अपनी नहरों से हो के समुद्र अब टापू के बीच तक पहुंच जाता है जिससे बड़े इलाके पर असर पड़ता है. खलीक का कहना है कि "मिट्टी में बढ़ते नमक की वजह से खेती करना मुश्किल है जिसकी वजह से उनका जीवन बहुत कठिन हो गया है."
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)
बाढ़ से पानी पानी हुआ दक्षिण एशिया
मानसून की बाढ़ से दक्षिण एशिया में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. बाढ़ के कारण बीमारी, भूख और डूबने से और सैकड़ों लोगों की जान जाने का अंदेशा है. अब तक 400 से अधिक लोगों की जान गई है जिसमें 239 भारत के हैं.
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नेपाल, बांग्लादेश, भारत
इन तीनों देशों में बाढ़ के संकट ने गंभीर रूप ले लिया है. नेपाल के 128 तो बांग्लादेश के 39 लोगों की मौत हुई है. भारत में केवल बिहार और असम से ही 168 लोगों की मौत हुई है. मौसम विभाग आने वाले दिनों के लिए भी भारी बरसात की चेतावनी दे रहा है.
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पहाड़ी देश में पानी ही पानी
नेपाल ने बाढ़ की भारी विभीषिका झेली है. इस पहाड़ी देश के कई इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं. देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को बाढ़ के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. कई इलाकों में हैलिकॉप्टर के जरिये खाना और पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है.
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स्थिति में थोड़ा सुधार
नेपाल में हालात थोड़े से बेहतर हुए हैं. नेपाल के अधिकारियों का कहना है कि अब और लोगों के मरने की खबर नहीं आ रही है. हालांकि वहां से उत्तर भारत के इलाकों में आ रहे बाढ़ के पानी ने उत्तर प्रदेश और बिहार के कई इलाकों में स्थिति बिगाड़ दी है.
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उत्तर प्रदेश में संकट गहराया
उत्तर प्रदेश के 2013 से ज्यादा गांव बाढ़ में डूबे हैं और वहां रहने वालों को अपना घर छोड़ कर ऊंचे स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक यहां अब तक 36 लोगों की जान गई है. राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, 14 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. राप्ती, घाघरा और सरयू नदियां उफान पर हैं. शारदा, रोहिन और दूसरी नदियों में भी पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है.
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बिहार की हालत भी खराब
बिहार में 500 से ज्यादा सेना के जवानों ने हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है. राज्य के 14 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं. सेना के हैलिकॉप्टरों से खाने के पैकेट और दूसरी जरूरी चीजें गिरायी जा रही हैं. करीब 3 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है.
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असम की व्यथा
भारत का उत्तर पूर्वी राज्य असम तो लगातार बाढ़ का संकट झेल रहा है. असम के 3,000 गांवों में बाढ़ का पानी भरा है. यहां से राज्य सरकार के बनाए राहत शिविरों में 2 लाख से ज्यादा लोगों ने शरण ले रखी है.
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स्कूल बन गये शिविर
बाढ़ से बचने के लिए कई स्कूलों को अस्थायी शिविरों में तब्दील कर दिया गया है. बिहार के बा़ढ़ प्रभावित जिलों के स्कूलो में भी छुट्टी कर दी गई है.
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जुगाड़ से नदी पार
कई जगहों पर लोगों तक राहत पहुंचे में देरी हुई तो उन्होंने खुद से नाव बना कर नदी को पार कर लिया.
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सबकुछ पीछे छूटा
घर बार, माल मवेशी सब छोड़ कर भाग गये हैं लोग अपनी जान बचाने की खातिर. इस तस्वीर में दिख रहे घर का मालिक अपने मवेशियो को छोड़ कर चला गया है. पालतू जानवर खुद अपनी जान बचाने में जुटे हैं.
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राहत देने में जुटी एजेंसियां
आपदा प्रबंधन के लोग दिन रात मेहनत कर लोगों को अलग अलग तरीके से सुरक्षित ठिकानों की ओर ले जा रहे हैं. उनके सामने सबसे पहली चुनौती लोगों की जान बचाने की है.
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मछली का शिकार
असम के बाढ़ प्रभावित मोरिगांव जिले के एक गांव में ये शख्स बाढ़ के पानी में मछली पकड़ने की कोशिश में है.
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चल चल मेरे हाथी
बाढ़ के संकट में एक दूसरे का साथ कुछ मुश्किलें आसान कर रहा है. भारतीय राज्य असम में काजीरंगा पार्क के इस हाथी को महावत नहला रहा है.
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घर में घुसा पानी
असम के नौगांव इलाके में घर में घुसे पानी को देखता एक शख्स.
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संकट में मवेशी
बाढ़ का संकट मवेशियों और जंगली जानवरों के लिए भी बुरा वक्त लाया है. इंसानों के पास अपना पेट भरने को अनाज नहीं चारे का बंदोबस्त कैसे हो?
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बाढ़ से बेहाल
बांग्लादेश मे कई हफ्तों से लोग बाढ़ की वजह से मुश्किलों में हैं. जिसे जो मिल रहा है उसी के सहारे अपना घर छोड कर निकल पड़ा है. बोट से सुरक्षित ठिकाने की ओर जाते लोग.
तस्वीर: picture-allaince/NurPhoto/R. Asad
राहत की चुनौती
जगह जगह पर राहत शिविर बनाये गये हैं जहां से लोगों को जरूरी चीजें मुहैया कराई जा रही हैं. असम के एक शिविर से दवा लेती महिला.
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गांव शहर हर तरफ पानी
कई शहरों के पक्के मकानों में भी बाढ़ का पानी घुस गया है. लोग अपने घरों में एक तरह से कैद हो गये हैं.
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बांग्लादेश जलमग्न
बांग्लादेश का करीब एक तिहाई हिस्सा बाढ़ की चपेट में है. बांग्लादेश की 18 प्रमुख नदियों में पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है. 6 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा है.
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गंभीर समस्या
रेडक्रॉस के एशिया प्रशांत निदेशक मार्टिन फेलर का कहना है, "बहुत तेजी से यह इलाके में सबसे गंभीर मानवीय संकट के रूप में उभर रहा है जो कई सालों के बाद हुआ है. इस प्रलयंकारी बाढ़ से प्रभावित हुए करोड़ों लोगों को राहत देने के लिए जल्द ही कदम उठाये जाने की जरूरत है."