बांग्लादेश में क्या हसीना और जिया को किनारे कर होंगे चुनाव
२३ जनवरी २०२५
2007 में बांग्लादेश सेना ने जब शासन में दखल दिया, तो शेख हसीना और खालिदा जिया को कैद में डाल दिया गया. सेना ने देश के राजनीतिक तंत्र को दोबारा स्थापित करने की उम्मीद की थी. क्या बांग्लादेश फिर उसी नीति पर चलने जा रहा है?
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बीती गर्मियों में शेख हसीना की विदाई ने बांग्लादेश में एक नये दौर की शुरूआत की है. ऐसा लग रहा है कि शेख हसीना और पूर्व प्रधानमत्री खालिदा जिया की दशकों चली प्रतिद्वंद्विता के पन्ने फिर से पलटे जा रहे हैं.
77 साल की हसीना फिलहाल स्वनिर्वासित होकर भारत में रह रही हैं. उधर 79 साल की जिया इलाज के लिए ब्रिटेन की यात्रा पर हैं. बांग्लादेश में कयास लग रहे हैं कि उस विवादित सिद्धांत को क्या फिर से जिंदा किया जाएगा, जिसका मकसद कभी इन दोनों नेताओं को किनारे करना था.
2007 में सेना ने बांग्लादेश की राजनीति में दखल दे कर एक कार्यवाहक सरकार बनाया जिसे "1/11 चेंजओवर" के नाम से जाना गया. नये शासन पर कथित "माइनस टू" फॉर्मूला अपनाने का आरोप लगा जिसमें दोनों प्रतिद्वंद्वियों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि टू का मतलब हसीना और जिया था.
दोनों को 2008 के चुनाव से पहले रिहा कर दिया गया, हालांकि हसीना ने फिर सत्ता हासिल कर ली और 2024 के छात्र आंदोलन तक देश पर राज करती रहीं.
एक बार फिर अंतरिम सरकार देश को चला रही है. नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस मुख्य सलाहकार की भूमिका में हैं. यूनुस और उनकी कैबिनेट संविधान और चुनावी तंत्र में सुधारों की उम्मीद कर रही है. यूनुस के मुताबिक सुधारों के बाद ही आम चुनाव होंगे.
जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं के लिए मौजूदा गतिरोध भले ही असहज हो लेकिन जाना पहचाना है. बीएनपी के महासचिव फखरुल इस्लाम आलमगीर ने अगस्त में हसीना की विदाई के तुरंत बाद कहा, "हमें वो लोग याद हैं जिन्होंने 1/11 सरकार के दौरान हमें राजनीति से बाहर करने और हमारी पार्टी को खत्म करने की कोशिश की थी."
आलमगीर ने यह भी कहा, "हमारे लोकतंत्र और देश की भलाई के लिए हमें ये मुद्दे याद रखने चाहिए."
चुनाव स्थगित रहने से परेशान बीएनपी
जिया की गिरती सेहत पार्टी की असुरक्षा का अकेला कारण नहीं है. उनके बेटे और पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले तारिक रहमान दशक भर से ज्यादा समय से ब्रिटेन में हैं. बांग्लादेश में उनके खिलाफ कुछ कानूनी मामले चल रहे हैं.
इस बीच आंदोलन के नेता एक नया राजनीतिक दल बनाने की तैयारी कर रहे हैं और इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि हसीना की अवामी लीग शायद भविष्य की राजनीति में किनारे कर दी जाएगी. बीएनपी को डर है कि अगर चुनाव जल्दी ना हुए तो उसका भी यही हश्र होगा.
बीएनपी के संयुक्त महासचिव सैयद इमरान सालेह ने अंतरिम सरकार पर समय बर्बाद करने और "मामूली बातों" पर ज्यादा ध्यान दे कर चुनाव में देरी का आरोप लगाया है.
सालेह ने डीडब्ल्यू से कहा, "चुनाव में देरी करने की कोशिश की जा रही है. आंदोलन गैरमुद्दों को मुद्दा बनाकर जटिलता और अव्यवस्था पैदा करना चाहता है."
उधर यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने "माइनस टू" फॉर्मूला को "बेतुका" बता कर उससे जुड़ी चिंताओं को खारिज किया है. उनका दावा है कि बांग्लादेश का चुनावी तंत्र "टूट गया है और उसे मरम्मत की जरूरत है."
आलम ने डीडब्ल्यू से कहा, "बहुत सी संस्थाएं देश को शेख हसीना जैसी फासीवादी ताकतों से बचाने और लोगों को मताधिकार की रक्षा करने में नाकाम रहीं. इसलिए दूसरी चीजों के साथ ही संविधान, चुनाव और पुलिस में सुधार करना जरूरी है."
हसीना और उनकी अवामी लीग पार्टी इन आरोपों से इनकार करती है कि उनका शासन निरंकुश था.
सरकार और बीएनपी के बीच बढ़ती दरार
आलम ने हसीना के खिलाफ आंदोलन में बीएनपी की प्रमुख भूमिका को माना है और कहा है कि नई सरकार ने "उनके साथ तमाम मुद्दों पर हमेशा चर्चा की है." हालांकि ऐसा लग रहा है कि बीएनपी को यूनुस सरकार में अपने नेतृत्व को लेकर भरोसा नहीं है.
बांग्लादेश: शेख हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता
बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को भीषण हिंसा और छात्रों के आंदोलन के कारण इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ना. आखिर कैसे सत्ता उनके हाथों से फिसल गई. उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर.
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शेख हसीना ने कैसे गंवाई सत्ता
5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के विमान में सवार होकर भारत पहुंच गईं. जुलाई की शुरूआत से ही बांग्लादेश में हजारों छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूदा कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
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कोटा सिस्टम का विरोध
साल 2018 तक बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटों में कोटा लागू था. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और उनके बच्चों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच फीसदी अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह सभी भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं.
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क्यों सड़कों पर आए छात्र
2018 में सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई. इसके खिलाफ 2021 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे.
इसके बाद देश के कई हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 93 फीसदी नौकरियों में भर्तियां योग्यता के आधार पर की जाएं. कोर्ट ने कहा 1971 के आंदोलन में शामिल रहे सेनानियों के परिजनों को सिर्फ पांच फीसदी आरक्षण मिले.
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हिंसा और इस्तीफे की मांग
जुलाई से चल रहा छात्रों का आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शांत नहीं हुआ और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. छात्र संगठनों ने चार अगस्त को पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी.
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हसीना के इस्तीफे के पहले क्या हुआ
4 अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए. जिनमें 13 के करीब पुलिस वाले थे. सरकार ने प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर सेना को उतार दिया लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे और हसीना के इस्तीफे की मांग की. 5 अगस्त को छात्र संगठनों ने ढाका में लॉन्ग मार्च का एलान किया. जब प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे तो हसीना ने सेना के विमान में सवार होकर देश छोड़ दिया.
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बांग्लादेश पर मजबूत पकड़
दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश में 76 साल की शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वालीं सरकार प्रमुख थीं. शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और 2008 में वापस लौटीं और 5 अगस्त, 2024 तक पद पर बनी रहीं.
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हसीना पर आरोप
शेख हसीना पर सत्ता में 15 साल रहने के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की आजादी पर दमन और असहमति पर दमन के आरोप लगे. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. लेकिन हसीना सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही.
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विरासत में मिली राजनीति
शेख हसीना को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए बांग्लादेश की लड़ाई का नेतृत्व किया था. 1975 में सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश लोगों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. हसीना भाग्यशाली थीं कि उस समय वह यूरोप की यात्रा पर थीं. 1947 में दक्षिण-पश्चिमी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जन्मी हसीना पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं.
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भारत में निर्वासित जीवन
शेख हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं. फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग की प्रमुख चुनी गईं. उन्होंने 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में ग्रैजुएशन की और अपने पिता और उनके छात्र समर्थकों के बीच मध्यस्थ के रूप में राजनीतिक अनुभव हासिल किया.
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हसीना और आम चुनाव
शेख हसीना जनवरी, 2024 में लगातार चौथी बार चुनाव जीतीं. इस चुनाव का मुख्य विपक्षी दल और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था. इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे.
तस्वीर: AFP
निरंकुश शासन के आरोप
बीएनपी और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि हसीना की सरकार ने जनवरी, 2024 में हुए चुनाव से पहले 10,000 विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया था. इस चुनाव का विपक्ष ने बहिष्कार किया था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह निरंकुश होती गईं और उनके शासन में राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन गायब होना और न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगे.
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शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच संघर्ष
हसीना ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की प्रमुख खालिदा जिया के साथ हाथ मिला लिया और लोकतंत्र के लिए एक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका. लेकिन जिया के साथ गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और दोनों महिलाओं के बीच तीखी प्रतिद्वंद्विता जारी रही.
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कमजोर हो चुकीं खालिदा जिया
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच कई सालों से राजनीतिक संघर्ष चला आ रहा है. 78 साल की जिया दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल में हैं. उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है और 2019 में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त, 2024 को जिया को रिहा करने का आदेश दिया.
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हसीना के भारत के साथ संबंध
भारत और बांग्लादेश के बीच बेहद मजबूत संबंध हैं. जब कभी भी बांग्लादेश को जरूरत पड़ी तो भारत उसके साथ खड़ा नजर आया. दोनों देशों के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं. 2023 में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. हसीना के पीएम रहते हुए दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है.
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डीडब्ल्यू से बातचीत में सालेह ने कहा कि उनकी पार्टी, "विचारों के लेन देन से करीबी रिश्ता बनाना चाहती है." सालेह का कहना है, "दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ, और हमारे बीच दूरी बन गई." बिना किसी पार्टी या नेता का नाम लिए सालेह ने कहा, "जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं, बीएनपी के खिलाफ साजिशें बढ़ती जा रही हैं." उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिम सरकार की चुनावी योजनाएं बीएनपी के नजरिए से "उचित" नहीं हैं.
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क्या सरकार छात्रों की नई पार्टी के लिए रास्ता बना रही है?
हाल के महीनों में हसीना विरोधी प्रदर्शन करने वाले छात्र नेता एक नई राजनीतिक पार्टी स्थापित करने की कोशिशों के बारे में बात करते रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि पार्टी बनाने की प्रक्रिया अब पूरी होने वाली है.
कुछ प्रमुख प्रदर्शनकारियों ने पहले ही एक "निरंकुशता विरोधी प्लेटफॉर्म" तैयार कर लिया है जिसे नेशनल सिटिजंस कमेटी (एनसीसी) नाम दिया गया है. इसमें युवा पेशेवरों के अलावा नागरिक समाज के सदस्य शामिल हैं. इस कमेटी का लक्ष्य सुधारों को समर्थन देना और देश को पिछले शासन से दूर ले जाना है.
भारत बॉर्डर से सटे बांग्लादेशी गांवों में डर और मातम
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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में तीन सलाहकार हैं जो छात्र प्रदर्शनकारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. अवामी लीग और बीएनपी को किनारे करने की अफवाहों के बीच ही कुछ पर्यवेक्षकों को इस बात की भी चिंता है कि कैबिनेट चुनावों में देरी छात्रों की पार्टी को तैयारी के लिए पर्याप्त समय और उन्हें मुकाबले में मदद के लिए सुधारों को लागू करने के मकसद से कर रही है.
'ऐसा कुछ नहीं हो रहा है'
एनसीसी के संस्थापक नसीरुद्दीन पटवारी ने इन दावों को खारिज किया है कि यूनुस कैबिनेट के संरक्षण में एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन हो रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "ना तो डॉ. यूनुस ना ही किसी सलाहकार ने ऐसी कोई पार्टी बनाने की इच्छा जाहिर की है. जो लोग ऐसे बयान दे रहे हैं वो संकट पैदा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं."
उधर यूनुस के प्रेस सचिव आलम का कहना है कि सरकार हर कीमत पर तटस्थता बनाए रखेगी. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "उन्हें (प्रदर्शनकारियों को) राजनीतिक पार्टी बनाने दीजिए, उसके बाद हमारे व्यवहार और काम को देखिए. उसके बाद ही आप हम पर सवाल उठा सकते हैं या शिकायत कर सकते हैं. जब तक ऐसा नहीं होता ये बयान महज कयास हैं."