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बांग्लादेश में जमात को समेटने की मांग

१९ फ़रवरी २०१३

जमात ए इस्लामी बांग्लादेश की ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिस पर 1971 की लड़ाई के दौरान युद्ध अपराध के आरोप हैं. विरोधी अब इस पार्टी को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं, शायद इसी से 1971 के घाव भर सकें.

तस्वीर: MUNIR UZ ZAMAN/AFP/Getty Images

17 फरवरी 2013 को बांग्लादेश की संसद ने एक संशोधन में जमात को प्रतिबंधित करने की अनुमति दी. माना जाता है कि जमात ए इस्लामी ने 1971 में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान कई युद्ध अपराध किए. इस्लामाबाद में आज तक 1971 में किए गए अपराधों के बारे में बात नहीं की जाती. आज तक किसी भी पाकिस्तानी सरकार ने ढाका से इस बारे में माफी नहीं मांगी. लेकिन बांग्लादेश की राष्ट्रीय पार्टियों का कहना है कि पाकिस्तान की सेना और उसके सहयोगियों ने 30 लाख लोगों को क्रूरता से खत्म किया.

इसी महीने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जमात के नेता अब्दुल कादेर मुल्ला को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. "मीरपुर का कसाई" नाम से जाने जाने वाले मुल्ला पर आरोप थे कि उसने 1971 में ढाका के मीरपुर इलाके में 340 से ज्यादा लोगों की हत्या की और महिलाओं से बलात्कार किया. लेकिन ढाका के शाहबाग में जमा हुए प्रदर्शनकारी मुल्ला के लिए मृत्युदंड की मांग कर रहे हैं. उनका मानना है कि 1971 में बलात्कार का शिकार हुईं सैंकड़ों महिलाएं और अन्य पीड़ित तभी चैन की सांस ले सकेंगे जब उनके आरोपियों को मौत की सजा दी जाएगी. माना जाता है कि उस वक्त पाकिस्तानी सेना और उसके बांग्लादेश में सहयोगियों ने हजारों लोगों को यातनाएं दी, महिलाओं से बलात्कार किया और बांग्लादेशी आजादी के लिए लड़ रहे बुद्धजीवियों की हत्या की. युद्ध के बाद हजारों मृतकों के शव ढाका के आसपास गड्ढों में पाए गए.

तस्वीर: MUNIR UZ ZAMAN/AFP/Getty Images

शाहबाग का प्रदर्शन एक ऑनलाइन मुहिम से शुरू हुआ और इसमें बांग्लादेश भर से ब्लॉगर और ऑनलाइन कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे हैं. बांग्ला अस्मिता के लिए हो रहे इन प्रदर्शनों का असर इस बात से आंका जा सकता है कि पिछले हफ्ते प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे ब्लॉगर अहमद राजिब हैदर की उन्हीं के घर में बेरहमी से हत्या कर दी गई.

क्या है जमात इ इस्लामी

जमात इ इस्लामी बांग्लादेश की मुख्य विपक्ष पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी बीएनपी की साझेदार है. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बीएनपी का कहना है कि युद्ध अपराधों की अदालत की कार्रवाई बेकार है. खालिदा इसे विपक्ष को चुप कराने की सत्ताधारी पार्टी की चाल कहती हैं. बीएनपी और जमात, दोनों ने 17 फरवरी के संसद अधिवेशन का बहिष्कार किया. इसी दिन जमात को प्रतिबंधित करने के लिए मुख्य संशोधन पारित हुए.

वहीं, सत्ताधारी आवामी लीग कहती है कि 1971 युद्ध के घावों को भरने का एक ही तरीका है कि युद्ध अपराध के दोषियों पर कार्रवाई करना. शनिवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि जमात को आजाद बांग्लादेश में राजनीति का हिस्सा बनने का अधिकार नहीं है. वह प्रतिबंध को अपना पूरा समर्थन देती हैं. 1970 के दशक में शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान ने जमात पर पाबंदी लगाई. लड़ाई में पाकिस्तान की मदद करने की वजह से यह प्रतिबंध लगाया गया. 1975 में रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश की सैन्य सरकार ने प्रतिबंध को रद्द कर दिया.

जमात ए इस्लामी का गठन 1941 में मुस्लिम धार्मिक विशेषज्ञ अबु आला मुआदूदी ने किया. पार्टी बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में सक्रिय है. पाकिस्तान में मध्यवर्ग जमात का सहयोग करता है. लेकिन पाकिस्तानी उदारवादी भी मानते हैं 1971 की लड़ाई में जमात ने बांग्ला लोगों को यातना दी. वे मांग करते हैं कि हिंसा के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो और पाकिस्तान औपचारिक तौर पर ढाका से माफी मांगे.

तस्वीर: Firoz

कराची में पाकिस्तान विशेषज्ञ जफार अहमद कहते हैं, "पाकिस्तान में 1971 की घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया. आयोग की रिपोर्ट अब भी खुफिया है लेकिन 2000 में इसके कुछ हिस्से लीक किए गए." अहमद कहते हैं कि रिपोर्ट में पाकिस्तान सेना जनरलों सहित कई लोगों पर आरोप लगाए गए हैं लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. "अगर मुख्य आरोपियों पर शिकायतें दर्ज नहीं होतीं तो हम उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि उनका सहयोग कर रहे लोगों को कुछ होगा. वैसे भी मुझे लगता है कि इन लोगों और गुटों के खिलाफ कुछ करने के लिए बहुत देर हो चुकी है. बांग्लादेश में भी यह एक राजनीतिक खेल चल रहा है."

भारत की भूमिका

लाहौर में जमात के नेता वकस जाफरी कहते हैं कि भारत जमात के खिलाफ लोगों को उकसा रहा है क्योंकि वह बांग्लादेश में एक ताकतवर इस्लामी पार्टी को नहीं देख सकता. "शेख हसीना की सरकार को भारत का सहयोग है और यह जमात इ इस्लामी का नाम खराब करने की कोशिश है. युद्ध अपराध अदालत अपने आप में विवादित है और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसकी आलोचना की है."

जाफरी का यह भी मानना है कि संसद में कानून पारित करने से कोई भी पार्टी प्रतिबंधित नहीं की जा सकती क्योंकि जमात बांग्लादेश में एक सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभा रही है. 1971 के बारे में जाफरी का मानना है कि उसने उस वक्त बाकी राष्ट्रवादी गुटों सहित अपने देश की रक्षा करने की कोशिश की. जहां तक बांग्लादेश का सवाल है, जाफरी का कहना है कि 1971 में बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ और यह भारत का "षड़यंत्र" था.

रिपोर्टः शामिल शम्स/मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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