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बांग्लादेश में बढ़ती बाघ और विधवाओं की संख्या

२३ फ़रवरी २०११

दुनिया भर में बाघों की संख्या भले ही कम होती जा रही हो, लेकिन बांग्लादेश में यह बढ़ रही है. पर्यावरणविद इसे खुशी की बात जरूर मानते हैं लेकिन वहां की महिलाओं के लिए बाघों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनती जा रही है.

तस्वीर: AP

इस बढ़ती संख्या के चलते कई वन रक्षकों की जानें जा चुकी हैं. बांग्लादेश के वन विभाग के अनुसार 2009 में 120 वन रक्षकों की ऐसे हमलों में मौत हो गई. हालांकि असली आंकड़े इस से कई अधिक हैं. दक्षिण पश्चिम बांग्लादेश में सरकार ने 1000 ऐसी विधवाओं की सूची जारी की है जिनके पति की जान बाघ के हमले में चली गई.

वन रक्षकों के अलावा और भी कई लोग अपनी रोजी रोटी के लिए जंगल में जाते हैं - कोई शहद लाने के लिए, कोई लकड़ी काटने के लिए तो कोई मछली पकड़ने के लिए. इन सब को बाघ से डर तो लगता है, लेकिन पेट पालने के लिए ये अपनी जान जोखिम में डालना गलत नहीं समझते. सुंदरबन के जंगलों में करीब 20,000 आदमी काम करते हैं. इन में से केवल 3,000 के पास ही वहां जाने का परमिट है. बाकी सब गरीबी के चलते अवैध रूप से जंगल में जाते हैं.

पति की जान गई तो दोष पत्नी के सिर

इन जंगली बिल्लियों से बचने के लिए सुंदरबन के हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही 'बौन बीबी' की पूजा करते हैं. इन लोगों को लगता है कि माता बौन बीबी इन्हें बाघ के हमले से बचा सकती है. बस अपने इस भगवान का नाम लेते हैं और जान हथेली पर ले कर निकल पड़ते हैं जंगल की ओर. लेकिन जब बाघ हमला करता है तब 'बौन बीबी' भी कुछ नहीं कर पाती. दोष न आदमियों के सिर जाता है, न ही लोग 'बौन बीबी' से नाराज होते हैं. ताने मिलते हैं औरतों को.

तस्वीर: AP

हमारे समाज की बदनसीबी रही है कि जब भी कुछ गलत होता है तो उसमें गलती हमेशा औरतों की ही ढूंढी जाती है. यहां भी जब बाघ किसी आदमी की जान ले लेता है तो परिवार वाले उस आदमी की पत्नी पर इसका दोष मढ़ देते हैं. उन्हें बुरी नजरों से देखा जाता है और समाज से अलग कर दिया जाता है जबकि इस सब में उनकी कोई गलती नहीं होती. लोग यह भूल जाते हैं कि अगर किसी मां ने अपना बेटा खोया है तो किसी पत्नी ने अपना सुहाग भी. उन के साथ हमदर्दी जताने की बजाए उन से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचा जाता है.

समाज से थक कर इन औरतों ने अब एक दूसरे की मदद करने की ठानी है. उन्होंने एक संस्था के साथ मिल कर एक "टाइगर विडो एसोसिएशन" बनाया है. यहां ये औरतें हफ्ते में एक बार एक दूसरे से मिलती हैं और सिलाई कढाई करती हैं. फिर ये अपनी बनाई गई चीजों को बाजार में बेचती हैं. इस से ये बहुत ज्यादा तो कुछ नहीं कमा पाती पर कम से कम घर का चूल्हा जलता रहता है. इसके अलावा वे यहां चावल और सब्जियां उगाना भी सीखती हैं.

बच्चों का भी अपमान

समाज में इन के साथ साथ इनके बच्चों को भी अपमानित होना पड़ता है. स्कूल में दूसरे बच्चे उन्हें कहते हैं कि बाघ उनके पिता को सिर्फ इसलिए खा गए क्योंकि वे बुरे बच्चे हैं. बच्चों को स्कूल से निकाल दिया जाता है. पिछले साल ऐसे बच्चों के लिए एसोसिएशन ने एक खास स्कूल भी खोला. स्कूल भी क्या - बस बच्चे धूल मिट्टी वाली जमीन पर बैठ कर तीन घंटे कुछ पढ़ लेते हैं. यहां कुल 30 लड़के और लड़कियां आते हैं. घर जा कर फिर ये अपनी मां का काम में हाथ बटाते हैं.

इन औरतों और बच्चों की गलती सिर्फ इतनी है कि बाघ इनके पति या पिता को खा गया. और इसकी सजा इन्हें जीवन भर भुगतनी होगी.

रिपोर्टः ईशा भाटिया

संपादनः आभा एम

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