बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान
८ अगस्त २०२४
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ले ली है. वह आज ही ढाका पहुंचे थे. मोहम्मद यूनुस के सामने सबसे पहली चुनौती देश में शांति और कानून व्यवस्था कायम करने की है.
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बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार के प्रमुख के रुप में शपथ दिलाई. मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार बनाया गया है. इसका दर्जा प्रधानमंत्री के बराबर होगा. शपथ ग्रहण समारोह में कई देशों के राजदूत, शीर्ष कारोबारी और नागरिक संगठनों के सदस्यों के साथ ही मुख्य विपक्षी दल के नेता भी मौजूद थे. यह कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में हुआ.
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी का कोई सदस्य शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुआ. नई सरकार चलाने के लिए मोहम्मद यूनुस के अलावा कैबिनेट में 16 और सदस्यों को शामिल किया गया है. 83 साल के मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार बनाने की मांग बांग्लादेश में आंदोलन कर रहे छात्रों ने रखी थी. पिछले एक महीने से आंदोलन कर रहे छात्रों के दबाव के आगे आखिरकार 15 साल से देश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को इस्तीफा दे कर देश छोड़ना पड़ा. इसके बाद से देश में अशांति और अव्यवस्था है.
मोहम्मद यूनुस की कैबिनेट
नई सरकार की फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती है शांति और व्यवस्था कायम करना और फिर इसके बाद देश में चुनाव की तैयारी करना. शपथ ग्रहण के बाद मोहम्मद यूनुस ने कहा, "मैं संविधान का पालन, समर्थन और उसकी रक्षा करूंगा." इसके साथ ही उन्होंने अपने कर्तव्यों को "जिम्मेदारी" के साथ पूरा करने की बात कही है.
कैबिनेट में शामिल सदस्यों को सलाहकार का ही दर्जा दिया गया है मंत्रियों का नहीं. कैबिनेट सदस्यों में असंतुष्ट छात्रों के दल के शीर्ष नेता, नाहिद इस्लाम और आसिफ महमूद भी शामिल हैं. इन लोगों ने कई हफ्तों से देश में छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया है.
कैबिनेट के दूसरे सदस्यों में पूर्व विदेश सचिव तौहिद हुसैन और पूर्व अटॉर्नी जनरल हसन आरिफ भी शामिल हैं. इनके अलावा पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वालीं वकील सैयदा रिजवाना हसन और कानून के प्रमुख प्रोफेसर आसिफ नजरूल भी कैबिनेट सदस्यों में हैं. इनके अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ता अदिलुर रहमान खान को भी इसमें जगह मिली है. शेख हसीना सरकार में अदालत ने उन्हें दो साल के जेल की सजा सुनाई थी.
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नरेंद्र मोदी ने दी यूनुस को बधाई
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोहम्मद यूनुस को शपथ ग्रहण के बाद बधाई दी है और बांग्लादेश में जल्द ही हालात सामान्य होने की उम्मीद जताई है. इसके साथ ही उन्होंने देश में हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की भी उम्मीद की है.
इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है वह दोनों देशों के लोगों की शांति, सुरक्षा और विकास की साझी उम्मीदों को पूरा करना के लिए बांग्लादेश के साथ काम करने को प्रतिबद्ध हैं.
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से ही भारत घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहा है. शेख हसीना फिलहाल भारत में ही हैं. 15 साल के शासन के दौरान उन्होंने भारत और चीन दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की. भारत और बांग्लादेश करीब 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा को साझा करते हैं. बांग्लादेश में हालात तेजी से सुधरे हैं हालांकि अभी भी हसीना की पार्टी के सदस्यों और समर्थकों पर हमले हो रहे हैं. इस बीच अल्पसंख्यक हिंदुओं के घरों और दुकानों को भी निशाना बनाया गया है. हिंदू अल्पसंख्यकों को शेख हसीना का समर्थक माना जाता है.
एनआर/एमजे (एपी, एएफपी)
मोहम्मद यूनुस: बांग्लादेश के 'गरीबों का बैंकर'
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे. बांग्लादेश के इकलौते नोबेल विजेता यूनुस को देश में हीरो माना जाता है, लेकिन शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में उन पर 100 से भी ज्यादा मुकदमे थोपे गए.
तस्वीर: Munis uz Zaman/AFP
अमेरिका में पढ़ाई
मोहम्मद यूनुस को "सबसे गरीब लोगों का बैंकर" के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 1940 में चिट्टागोंग के एक समृद्ध परिवार में हुआ. बड़े होकर उन्हें अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद ही वो वापस आ गए.
तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images
अकाल से मिली प्रेरणा
वापस आने पर उन्हें चिट्टागोंग विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन एक भयानक अकाल से गुजर रहे उनके देश की हालत उनसे देखी नहीं गई. उन्होंने खुद कहा था कि उन हालात में उन्हें अर्थशास्त्र के सिद्धांत पढ़ना बहुत कठिन लग रहा था और वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे लोगों की तुरंत मदद हो सके.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
एक अनोखे बैंक की स्थापना
उन्होंने गरीबी की वजह से पारंपरिक लोन के लिए अयोग्य पाए जाने वाले लोगों को लोन दिलाने के कई तरीकों पर प्रयोग करने के बाद 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की. आज इस बैंक के 90 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं, जिनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं हैं.
तस्वीर: Abdul Saboor/REUTERS
महिलाओं के जरिए बदलाव
'ग्रामीण बैंक' के जरिए यूनुस ने ग्रामीण महिलाओं को बहुत ही छोटे लोन देने का अभियान शुरू किया. इन महिलाओं को कृषि उपकरण या व्यापार उपकरण खरीदने और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए लोन की जरूरत थी.
तस्वीर: Raphael Lafargue/abaca/picture alliance
'गरीबों का बैंकर'
ग्रामीण बैंक की बांग्लादेश में तेजी से हुए आर्थिक विकास को गति देने के लिए दुनियाभर में सराहना की गई. बाद में बैंक के इस काम को बीसियों विकासशील देशों में अपनाया गया. यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में गरीबी को कम करने में मदद करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
तस्वीर: Munir uz Zaman/AFP/Getty Images
समझा गया प्रतिद्वंदी
लेकिन बांग्लादेश में उनकी लोकप्रियता की वजह से वो तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की आंखों में खटकने लगे. हसीना ने उन पर गरीबों का "खून चूसने" का आरोप लगाया. 2007 में यूनुस ने "नागरिक शक्ति" नाम की अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना की घोषणा की. बाद में उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी इस योजना को वापस भी ले लिया, लेकिन उनकी इस योजना को एक चुनौती की तरह लिया गया.
यूनुस के खिलाफ 100 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. सरकार की एक इस्लामिक एजेंसी ने उनपर समलैंगिकता को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया और उन्हें बदनाम करने की पूरी कोशिश की. 2011 में सरकार ने उन्हें जबरन ग्रामीण बैंक से भी निकलवा दिया. यूनुस ने इस फैसले को चुनौती दी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया.
तस्वीर: Syed Mahamudur Rahman/AFP
जेल की सजा
जनवरी, 2024 में ढाका की एक श्रम अदालत ने उन्हें और उनके तीन साथियों को उनकी एक कंपनी में श्रमिक कल्याण कोष नहीं बनाने का दोषी ठहराया और छह महीने की जेल की सजा सुनाई. हालांकि उन्हें फैसले को चुनौती देने तक जमानत पर बरी भी कर दिया.
तस्वीर: Samir Kumar Dey/DW
सत्य की जीत
इन चारों ने उन पर लगे आरोपों से इनकार किया. उस समय बांग्लादेश की अदालतों पर हसीना सरकार के फैसलों पर मोहर लगाने के आरोप लग रहे थे. इस मामले की भी इसी आधार पर आलोचना की गई. दुनियाभर में कई लोगों और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संस्थानों ने भी इस फैसले की आलोचना की. छह अगस्त को ढाका की एक अदालत ने यूनुस को बरी कर दिया. - सीके/एए (एएफपी)