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बांग्लादेश में 152 को मौत की सजा

५ नवम्बर २०१३

ढाका में बांग्लादेश रायफल्स के मुख्यालय में खून खराबा हो रहा था. तख्तापलट की आशंका से भारत ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के लिए आपात तैयारियां कर दी थीं. तभी हालात संभल गए. इस मामले में 152 लोगों को मौत की सजा मिली है.

तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images

ढाका की विशेष अदालत ने 2009 की बगावत के मामले में 152 दोषियों को मौत की सजा सुनाई है. फैसला 2009 के विद्रोह के दौरान बांग्लादेश राइफल्स के ढाका मुख्यालय में हुए खून खराबे के मामले में आया है. मौत की सजा पाने वाले बांग्लादेश रायफल्स के डिप्टी एडिशनल डायरेक्टर भी शामिल हैं. इस मामले में अदालत के सामने 846 आरोपी थे.

विशेष अदालत में अभियोजन पक्ष की नुमाइंदगी की कर रहे वकील मोसर्रफ होसेन काजोल ने फैसले की जानकारी देते हुए कहा, "अदालत ने उन्हें देश के बहादुर बेटों की क्रूर हत्या के लिए मौत की सजा दी है." कुछ अधिकारियों को छोड़ सजा पाने वालों में ज्यादातर बांग्लादेश रायफल्स के जवान हैं. 56 महीने तक चली सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत के सामने 654 गवाह पेश किये.

तस्वीर: DW

बांग्लादेश की न्यूज एजेंसी बीएसएस के मुताबिक मंगलवार को अदालत ने 160 दूसरे दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. इन पर अप्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में शामिल होने के आरोप साबित हुए. इनमें सत्ताधारी पार्टी आवामी लीग और विपक्षी पार्टी बीएनपी के एक-एक नेता भी शामिल हैं. दोनों को हत्याकांड में शामिल होने और लूटपाट का दोषी करार दिया गया. 260 दोषियों को तीन से दस साल की सजा दी गई है. 271 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.

सजा पर प्रतिक्रिया देते हुए बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड के मेजर जनरल अजीज अहमद ने कहा, "ये एक बड़ा नरसंहार था. हमें खुशी है कि न्याय हुआ."

बगावत और बांग्लादेश

2009 के इस विद्रोह को बांग्लादेश के इतिहास का सबसे बड़ा विद्रोह कहा जाता है. इसकी शुरुआत 25 फरवरी 2009 को हुई. उस दिन 800 से ज्यादा जवानों ने अपने ढाका मुख्यालय पर कब्जा कर लिया. उस वक्त हेडक्वार्टर में आला अधिकारियों की बैठक हो रही थी. हथियारों से लैस हमलावरों ने अधिकारियों को बंधक बना लिया और फिर चुन चुनकर मारना शुरू किया. इसके बाद देश के अलग अलग इलाकों में विद्रोह फैल गया. देश के दूसरे हिस्सों में हुए विद्रोह की सुनवाई दूसरी अदालतें कर रही हैं.

तस्वीर: DW / Kumar Dey

बीडीआर मुख्यालय में दो दिन तक चली हिंसा में 57 अधिकारियों समेत 74 लोग मारे गए. हालात इतने बिगड़ गए कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा. उनकी हत्या की आशंका को टालने के लिए भारत ने कोलकाता में विशेष विमान आपात स्थिति में रखा था. दो दिन बाद बांग्लादेश की सेना के बीडीआर मुख्यालय में घुसने के बाद हालात काबू में आए. इस विद्रोह के बाद बांग्लादेश रायफल्स का नाम बदलकर बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड कर दिया गया.

1971 में पाकिस्तान से टूट कर बने बांग्लादेश में अब तक 21 बार सेना तख्ता पलट की कोशिश कर चुकी है. पहली बार 1975 में सेना ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्र रहमान की हत्या कर तख्तापलट कर दिया. इस दौरान रहमान की एक बेटी शेख हसीना जान बचाकर भागने में सफल रहीं. शेख हसीना किसी तरह जर्मनी पहुंचीं. अभी शेख हसीना ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सफल तख्ता पलट 1981 में हुआ. तब सेना के कुछ जवानों ने पूर्व सैन्य अधिकारी और तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उर रहमान की हत्या कर दी. जिया ने राजनीतिक पार्टी बीएनपी की स्थापना की थी. यह बांग्लादेश की दूसरी बड़ी राजनीतिक पार्टी है. 19 बार तख्ता पलट की कोशिशें नाकाम रहीं.

ओएसजे/एनआर (एपी, बीएसएस, डीपीए)

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