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बाइडेन की जीत पर ईरान को ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए

कैर्स्टन क्निप
१६ नवम्बर २०२०

ईरान को शायद लगता है कि उसके कट्टर दुश्मन डॉनल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस से विदाई होने पर उसके लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाना आसान होगा. लेकिन ईरान के लिए ऐसी तमाम उम्मीदें झूठी साबित हो सकती हैं.

Fahnen von USA und Iran
तस्वीर: Ohde/ Bildagentur-online/picture-alliance

पिछले दिनों जब यह साफ हो गया कि जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के स्पष्ट विजेता हैं, तो उसके तीन दिन बाद ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने अपने पड़ोसी देशों के नेताओं के नाम एक "ईमानदार संदेश" भेजा.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "70 दिनों में ट्रंप की विदाई होने वाली है. लेकिन हम यहां हमेशा बन रहेंगे." इसके साथ ही उन्होंने मतभेदों को बातचीत से सुलझाने के लिए अपने पड़ोसी देशों की तरफ दोस्त का हाथ बढ़ाया.

दो दिन के पाकिस्तान दौरे पर जाने से पहले जरीफ ने यह ट्वीट किया. ईरान शायद इस बात से खुश है कि उसे एक ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति से छुटकारा मिल रहा है, जिसे ईरान फूटी आंख नहीं सुहाता. लेकिन ईरान के लिए अपने पड़ोसियों के साथ वार्ता शुरू करना उतना आसान नहीं होगा जितना जरीफ के ट्वीट में दिखता है.

इसकी वजह यह है कि ईरान के बहुत पड़ोसी अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं. जैसे कि पाकिस्तान, जिसके प्रधानमंत्री इमरान खान ने जीत पर बाइडेन और उपराष्ट्रपति पद की उनकी उम्मीदवार कमला हैरिस को बधाई देने में कोई देरी नहीं लगाई.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान और इस पूरे इलाके में शांति के लिए अमेरिका के साथ काम करता रहेगा.

सऊदी अरब का पलटवार

जरीफ के ट्वीट ने सऊदी अरब की त्योरियां चढ़ा दीं, जो इस इलाके में ईरान का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है. ईरानी विदेश मंत्री जब यह ट्वीट कर रहे थे, लगभग उसी समय सऊदी शाह सलमान अपने एक संबोधन में क्षेत्रीय संबंधों की रूपरेखा तय कर रहे थे. 

उन्होंने संकेत दिया कि ईरान के साथ सऊदी अरब का छत्तीस का आंकड़ा बना रहेगा. उन्होंने अपने उत्तरी पड़ोसी की तरफ से खतरों को सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बताया. सऊदी शाह ने कहा कि ईरान आतंकवाद का समर्थन करता है और इलाके में सांप्रदायिक हिंसा को भड़काता है.

सऊदी शाह ईरान को सबसे बड़ा खतरा मानते हैंतस्वीर: Mikhail Metzel/TASS/imago images

उन्होंने कहा, "सऊदी अरब उस खतरे को रेखांकित करता है जो क्षेत्र में ईरान की गतिविधियों की वजह से पैदा हो रहा है."

कूटनीति की तरफ वापसी?

सऊदी शाह ने अपने भाषण में ट्रंप के उत्तराधिकारी को उनके नाम से संबोधित नहीं किया. लेकिन उन्हें इस बात का अच्छी तरह अहसाह होगा कि अमेरिका का भावी राष्ट्रपति उनके शब्दों को सुन रहा है.

चुनाव से पहले बाइडेन ने ईरान पर बार बार और विस्तृत बयान दिए. उन्होंने अमेरिकी सहयोगियों की जरूरतों की भी बात की.  उन्होंने सितंबर में सीएएन के लिए अपने लेख में कहा, "हम ईरान की अस्थिरता फैलाने वाली गतिविधियों का मुकाबला करते रहेंगे जिनकी वजह से क्षेत्र में हमारे मित्रों और साझीदारों के लिए खतरे पैदा हो रहे हैं." साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "लेकिन अगर ईरान तैयार होता है तो मैं कूटनीतिक के रास्ते की तरफ जाने के लिए तैयार हूं."

जर्मनी की माइंत्स यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन अरब वर्ल्ड के प्रमुख गुंटर मेयेर कहते हैं, "अमेरिका के भावी राष्ट्रपति ने बार बार इस बात को कहा है कि वह ईरान के मुद्दे पर लचीला रुख अपनाने को तैयार हैं. इसका संबंध दोनों ही बातों से हैं, ईरान के परमाणु कार्यक्रम से भी और पड़ोसियों के साथ उनके संबंधों से भी."

यमन में दुविधा

बाइडेन ने कई बार कहा है कि वह अमेरिका और सऊदी अरब के संबंधों को नए  सिरे से परिभाषित करना चाहते हैं. खासकर वह यमन में सऊदी नेतृत्व में होने वाले सैन्य हस्तक्षेप की आलोचना करते हैं. वहां जारी युद्ध को सऊदी अरब और ईरान के बीच परोक्ष युद्ध की तरह देखा जाता है.

अगर बाइडेन सऊदी अरब पर दबाव डालकर उसे यमन से हटने पर मजबूर करते हैं तो मौके का फायदा उठाकर ईरान इस गरीब देश में अपने पैर और मजबूती से जमाने की कोशिश करेगा. इसीलिए अमेरिका के नए राष्ट्रपति को बहुत सावधानी से काम लेना होगा कि वह सऊदी अरब से किस तरह डील करे ताकि उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी को इसका फायदा ना हो.

सऊदी अरब और ईरान की दुश्मनी में यमन मलबे के ढेर में तब्दील हो रहा हैतस्वीर: Khaled al-Banaa/DW

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