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नाटो नेताओं ने चीन को बताया गंभीर खतरा

१५ जून २०२१

चीन को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए नाटो नेताओं ने कहा है कि चीन की चुनौती वास्तविक है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी अपनी पहली नाटो बैठक में चीन को एक गंभीर खतरे के रूप में पेश किया.

Brüssel NATO Gipfeltreffen l Erdogan und Biden
तस्वीर: Olivier Matthys/AFP

शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ से यूरोप की रक्षा करने के लिए बनाए गए गठबंधन के रवैये में यह एक बड़ा बदलाव है, कि अब वह चीन को अपनी मुख्य चुनौती मान रहा है. शिखर वार्ता के बाद जारी किए गए विस्तृत बयान में चीन के रवैये की ही आलोचना की गई है. नाटो नेताओं ने कहा, "चीन की जगजाहिर महत्वाकांक्षाएं और दबंग रवैया नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, और गठजोड़ से जुड़े क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए वास्वितक खतरा हैं.”

एक दिन पहले ही जी-7 ने भी अपने बयान में चीन पर हमला बोला था और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर उसकी तीखी आलोनचा की थी. नाटो बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने यूरोपीय सहयोगियों को बताया कि एक-दूसरे की रक्षा का समझौता एक ‘पवित्र जिम्मेदारी' है. अमेरिका के रुख में भी यह बदलाव जैसा है क्योंकि पिछले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का नाटो को लेकर काफी नकारात्मक रुख रहा था और उन्होंने यूरोपीय सहयोगियों पर अपनी रक्षा में बहुत कम योगदान करने का आरोप लगाया था.

ट्रंप-युग खत्म

इस स्थिति को बदलते हुए जो बाइडेन ने कहा, "मैं पूरे यूरोप को बताना चाहता हूं कि अमेरिका उनके लिए मौजूद है. नाटो हमारे लिए बेहद जरूरी है.” बाइडेन ने 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले की याद में नाटो मुख्यालय में बनाए गए स्मारक पर भी कुछ वक्त बिताया. बाद में मीडिया से बातचीत में बाइडे ने कहा कि चीन और रूस नाटो गठबंधन को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "रूस और चीन दोनों हमारी एकता को तोड़ना चाह रहे हैं.”

अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्लादीमीर पुतिन को सख्त और होनहार बताया. उन्होंने कहा कि वह रूस से कोई विवाद नहीं चाहते लेकिन मॉस्को ने यदि ‘खतरनाक गतिवाधियां' जारी रखीं, तो नाटो जवाब देगा. उन्होंने रूस के साथ विवाद में यूक्रेन का साथ देने का वादा भी किया. हालांकि उन्होंने इस बात पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिल सकती है या नहीं.

बाइडेन ने कहा, "हम यूक्रेन को इतना मजबूत बनाना चाहते हैं कि वे अपनी भौतिक सुरक्षा कर सकें.” लेकिन ऐसा कैसे होगा, इस बारे में उन्होंने कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी.

यूरोप का नपा-तुला रुख

जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की यह सितंबर में पद छोड़ने से पहले आखिरी नाटो बैठक थी. उन्होंने राष्ट्रपति बाइडेन के आगमन को एक नए अध्याय की शुरुआत बताया. मैर्केल ने भी चीन के खतरे को लेकर गंभीरता जताई लेकिन उनके शब्द नपे-तुले थे. उन्होंने कहा, "अगर आप साइबर और अन्य मिले-जुले खतरों को देखें, और रूस और चीन के बीच चल रहे सहयोग को देखें तो आप चीन को नजरअंदाज नहीं कर सकते. लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा अहमियत भी नहीं दी जानी चाहिए. हमें सही संतुलन खोजना होगा.”

नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि बाल्टिक से अफ्रीका तक चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी का अर्थ यह है कि परमाणु-शक्ति संपन्न नाटो को तैयार रहना होगा. उन्होंने कहा, "चीन हमारे करीब आता जा रहा है. हम उसे साइबरस्पेस में देख रहे हैं, अफ्रीका में देख रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि वह अपने अहम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है.”

लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का रुख भी नपा-तुला था. उन्होंने कहा कि चीन के नुकसान भी हैं और फायदे भी. जॉनसन ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि कोई भी चीन के साथ एक नया शीत युद्ध चाहता है.”

वीकेएए (रॉयटर्स, डीपीए)

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