दुनिया में बाघों की अब भी छह उपजातियां बची हुई हैं, वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि कर दी है. उन्हें उम्मीद है कि इस खोज के बाद लुप्त हो रहे बाघों को बचाने के काम में तेजी आएगी.
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दुनिया में अब चार हजार से कम ही बाघ बचे हैं. इनमें बंगाल टाइगर, अमूर टाइगर, साउथ चाइना टाइगर, सुमात्रन टाइगर, इंडोनिश टाइगर और मलायन टाइगर नाम की छह उपजातियां शामिल हैं. विज्ञान पत्रिका करेंट बायोलॉजी में छपी एक नई रिपोर्ट बताती है कि जिंदा बाघों में ये सभी छह उपजातियों के बाघ शामिल हैं. कैस्पियन, जावन और बाली टाइगर्स नाम की बाघों की तीन उपजातियां पूरी तरह से अब लुप्त हो चुकी हैं.
बाघों के मरने के पीछे सबसे बड़ी वजह है उनके आवास और शिकार का खत्म होना. इंसान की निगरानी रहने वालों के साथ ही मुक्त बाघों को कैसे बचाया जाए और उनकी संख्या बढ़ाई जाए यह वैज्ञानिकों के लिए हमेशा बहस का मुद्दा रहता है. इसके पीछे एक वजह तो यह भी रही है कि इस बात पर काफी विवाद है कि कितनी उपजातियां मौजूद हैं. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि केवल दो ही उपजातियां हैं जबकि बाकि लोग मानते हैं कि 5-6 उपजातियां हैं.
राजसी बाघ की अद्भुत दुनिया
सुंदरता और सिहरन को एक साथ महसूस करना हो तो बाघ को देखिये. भारत का यह राष्ट्रीय पशु यूं ही दुनिया भर में मशहूर नहीं है. एक नजर बाघों के दुनिया पर.
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सबसे बड़ी बिल्ली
बाघ बिल्ली प्रजाति का सबसे बड़ा जानवर है. वयस्क बाघ का वजन 300 किलोग्राम तक हो सकता है. WWF के मुताबिक एक बाघ अधिकतम 26 साल तक की उम्र तक जी सकता है.
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ताकतवर और फुर्तीला
बाघ शिकार करने के लिए बना है. उनके ब्लेड जैसे तेज पंजे, ताकतवर पैर, बड़े व नुकीले दांत और ताकतवर जबड़े एक साथ काम करते हैं. बाघों को बहुत ज्यादा मीट की जरूरत होती है. एक वयस्क बाघ एक दिन में 40 किलोग्राम मांस तक खा सकता है.
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अकेला जीवन
बाघ बहुत एकाकी जीवन जीते हैं. हालांकि मादा दो साल तक बच्चों का पालन पोषण करती है. लेकिन उसके बाद बच्चे अपना अपना इलाका खोजने निकल पड़ते हैं. लालन पालन के दौरान पिता कभी कभार बच्चों से मिलने आता है. एक ही परिवार की मादा बाघिनें अपना इलाका साझा भी करती है.
बिल्लियों की प्रजाति में बाघ अकेला ऐसा जानवर है जिसे पानी में खेलना और तैरना बेहद पंसद है. बिल्ली, तेंदुआ, चीता और शेर पानी में घुसने से कतराते हैं. लेकिन बाघ पानी में तैरकर भी शिकार करता है. बाघ आगे वाले पैरों को पतवार की तरह इस्तेमाल करता है.
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सिकुड़ता आवास
100 साल पहले दुनिया भर में करीब 1,00,000 बाघ थे. वे तुर्की से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया तक फैले थे. लेकिन आज जंगलों में सिर्फ 3,000 से 4,000 बाघ ही बचे हैं. बाघों की नौ उपप्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं. यह तस्वीर जावा में पाये जाने वाले बाघ की है.
तस्वीर: public domain
क्यों घटे बाघ
20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुए अंधाधुंध शिकार ने बाघों का कई इलाकों से सफाया कर दिया. जंगलों की कटाई ने भी 93 फीसदी बाघों की जान ली. दूसरे जंगली जानवरों के अवैध शिकार ने बाघों को जंगल में भूखा मार दिया. इंसान के साथ उनका संघर्ष आज भी जारी है.
भारत और बांग्लादेश के बीच बसे सुंदरबन को ही ले लीजिए, मैंग्रोव जंगलों वाला यह इलाका समुद्र का जलस्तर बढ़ने से डूब रहा है. इसका सीधा असर वहां रहने वाले रॉयल बंगाल टाइगर पर पड़ा है. WWF के शोध के मुताबिक वहां के बाघों को मदद की सख्त जरूरत है.
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कैसे बचेंगे बाघ
माहौल इतना भी निराशाजनक नहीं है. संरक्षण संस्थाओं ने 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है. 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में करीब 3,900 बाघ हैं. 2010 में यह संख्या 3,200 थी. भारत जैसे देशों में बाघों के संरक्षण के लिए अच्छा काम किया जा रहा है. 2019 में भारत में करीब 3000 बाघ हैं.
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जर्नल में छपी रिपोर्ट के लेखक बीजिंग के पेकिंग यूनिवर्सिटी के शु जिन लुओ कहते हैं, "बाघ की उपजातियों की संख्या पर आम सहमति नहीं होने का लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके इन जीवों को बचाने की वैश्विक कोशिशों पर काफी असर पड़ा है." रिसर्चरों ने बाघों के संपूर्ण जीनोम के 32 नमूनों का विश्लेषण किया ताकि वो इस बात की पुष्टि कर सकें कि जीन के आधार पर ये छह अलग अलग उपजातियों के बाघ हैं.
माना जाता है कि बाघ पृथ्वी पर 20 से 30 लाख साल पहले आए लेकिन वर्तमान में जो बाघ मौजूद हैं उनकी उत्पत्ति के निशान करीब 1,10,000 साल पुराने हैं.
रिसर्चरों को बाघ की अलग अलग प्रजातियों के बीच प्रजनन के सबूत नहीं के बराबर मिले हैं. आनुवांशिक विविधता की इस कमी से यह संकेत मिलता है कि हर उपजाति के क्रमिक विकास का अपना अलग इतिहास है. यह वजह इन्हें बड़ी बिल्लियों के परिवार के दूसरे सदस्यों मसलन जागुआर से अलग करती है.
लुओ कहते हैं, "सारे बाघ एक जैसे नहीं हैं. रूस के बाघ क्रमिक विकास के आधार पर भारत के बाघों से बिल्कुल अलग हैं. यहां तक कि मलेशिया और इंडोनेशिया के बाघ भी अलग हैं." लुओ ने बताया कि प्रमुख रूप से उनके आकार और रंग में फर्क है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाघों को लुप्त होने से बचाने के लिए उनकी आनुवांशिक विविधता, क्रमिक विकास की विशिष्टता और पैंथेरा टिगरिस प्रजाति (सारे बाघ इसी प्रजाति के अंदर हैं) के सामर्थ्य को बचाने पर ध्यान देना होगा.