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बाघों को और जगह मिलेगी

१९ अक्टूबर २००९

भारत में बाघों को बचाने के लिए एक नई पहल. संरक्षित इलाक़ो के बाहर एक बडा़ इलाक़ा बफ़र ज़ोन के रूप में चिंहित किया जा रहा है, जहां बाघ बिना किसी परेशानी और अतिक्रमण के टहल सकेंगे.

तस्वीर: Harun Ur Rashid Swapan

भारत में दुर्लभ होते जा रहे बाघों का बसेरा बढ़ाने की तैयारी की जा रही है. देश के सात राज्यों ने अपने बाघ अभ्यारण्यों के आसपास क़रीब नौ हज़ार वर्ग किलोमीटर जंगल का इलाक़ा बफ़र क्षेत्र के रूप में चिंहिंत किया है. इस इलाक़े में बाघ बिना किसी बाधा के टहल सकेंगे.

तस्वीर: AP

बाघों के ग़ायब होने की एक वजह यह भी बताई जाती रही है कि उनका हैबीटेट यानी रहने की जगहें सिकुड़ती जा रही हैं और जंगलों में बढ़ते अतिक्रमण ने बाघों के रहन सहन को प्रभावित किया है.

देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान ने एक ताज़ा अध्ययन में जानकारी दी थी कि बाघों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए उन्हें एक विशाल क्षेत्र की दरकार है जो उन्हें मुहैया कराया ही जाना चाहिए. अध्ययन के मुताबिक़ बच्चा जनने वाली प्रत्येक 20 बाघिनों को 800 से 1000 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा अनछुआ रहना चाहिए. इससे क़रीब 70-100 बाघों की आबादी पनप सकेगी जिनके पास संरक्षित इलाक़ों के बाहर बना बफ़र ज़ोन का इलाक़ भी विचरण के लिए होगा. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की हाल की बैठक में बफ़र ज़ोन्स के बारे में सहमति बनी.

तस्वीर: AP

जिन राज्यों के अभ्यारण्यों में बफ़र ज़ोन विकसित किया जाएगा उनमें पश्चिम बंगाल का सुंदरबन, उड़ीसा के अचानकमर, इंद्रावती और उदंती-सीतानदी, असम के काजीरंगा, मानस और नमेरी, कर्नाटक का बांदीपुर और उत्तराखंड का मशहूर कॉर्बेट नेशनल पार्क शामिल हैं. उत्तर प्रदेश ने भी कॉर्बेट से सटे अमनगढ़ इलाक़े में बाघों के लिए बफ़र ज़ोन प्रस्तावित किया है.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का कहना है कि बाघों के लिए संरक्षित पार्कों के अतिरिक्त इस विशाल भूभाग के बफ़र क्षेत्र में कोई भी निर्माण कार्य उसकी अनुमति के बग़ैर नहीं किया जा सकेगा.

रिपोर्टः एजेंसियां/एस जोशी

संपादनः ए कुमार

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