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बाघों को बचाने का शायद आखिरी मौका

२१ नवम्बर २०१०

रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने दुनियाभर के नेताओं को एक खास सम्मेलन के लिए सेंट पीटर्सबर्ग आमंत्रित किया है. चार दिन के सम्मेलन का विषय है कि दुनियाभर में बचे करीब 3200 बाघों को कैसे बचाया जाए.

तस्वीर: AP

सम्मेलन में भाग लेने वाले नेताओं ने महत्वकांक्षी लक्ष्य तय किया है. वे 2022 तक दुनिया के 13 देशों में रह रहे बाघों की संख्या दोगुनी करना चाहते हैं. 100 साल पहले दुनियाभर में रह रहे बाघों की संख्या एक लाख थी. अनुमान है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए आने वाले पांच साल में ही 35 करोड़ डॉलर यानी करीब 175 अरब रुपये की जरूरत पड़ेगी. यह रकम इसलिए जरूरी है ताकि बाघों के लिए सुरक्षित इलाके सुनिश्चित किए जाएं और उन्हें शिकारियों और अवैध व्यापार से बचाया जाए.

पर्यावरण और जानवरों के संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन विश्व वन्य कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक यह पहला ऐसा सम्मेलन है जो सिर्फ एक प्रजाति पर केंद्रित है. बाघ दुनियाभर में विलुप्त होने के कागार पर हैं और उनकी संख्या पिछले सालों में तमाम प्रयासों के बावजूद तेजी से घटती ही जा रही है.

तस्वीर: AP

बडे नेताओं का दबाव जरूरी

सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहे सम्मेलन में अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन, विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जोएलिक और चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भी भाग ले रहे हैं. इसे अच्छा संकेत माना जा रहा है. बाघों को बचाने के प्रयासों को अब गंभीरता से लिया जा रहा है और बडे नेताओं के दबाव की वजह से बाघों के बचाव के लिए और काम होगा.

दुनियाभर में रहे रहे आधे से भी ज्यादा यानी करीब 1600 बाघ भारत में हैं. रूस में फिलहाल करीब 450 बाघ बचे हैं. अमेरिका वह देश हैं जहां सबसे ज्यादा यानी 1000 बाघ कैद हैं. बाघों के बचाव के लिए काम कर रही रूस की माशा वोरोंतसोवा का कहना है, "यह शिखर सम्मेलन बाघों को बचाने के लिए आखिरी मौका है. अगर हम बाघों के अंगों का व्यापार रोकने में सफल नहीं हुए, तो हम उन्हें नहीं बचा सकते हैं. हम सुनिश्चित करें कि जो भी फैसले हम ले रहे हैं, उन पर अमल भी हो. वे सिर्फ भाषण बन कर न रह जाएं."

घटते बाघों की वजह

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और ट्रैफिक नामक संस्था की शुक्रवार को प्रकाशित ताजा रिपोर्ट के मुताबिक खासकर म्यांमार एक ऐसा देश है जहां बाघों के अंगों का व्यापार हो रहा है और राजनीतिक हालात की वजह से उनकी कालाबाजारी पर किसी तरह का नियंत्रण रखना संभव नहीं है. अंग भारत से म्यांमार के जरिए चीन भेजे जाते हैं. चीन में माना जाता है कि बाघ के अंग पारंपरिक दवाओं में बहुत फायदेमंद हो सकते हैं.

तस्वीर: WWF/Vasily Solkin

प्रजातियों को बचाने के संघर्ष में सक्रिय गैर सरकारी संस्था ट्रैफिक के विलियम शैडला का कहना है, "बाघ और उनके अंगों में बहुत सारे लोगों की दिलचस्पी है. वे अपराधी हो सकते हैं या फिर सिर्फ ऐसे समूह जो सरकार के खिलाफ अपने संघर्ष के लिए पैसा एकत्रित करना चाहते हैं." संस्था का अनुमान है कि हर साल 100 से भी ज्यादा बाघों की गैर कानूनी व्यापार की वजह से हत्या की जाती है. बाघ के अंगों को बेचने वालों को हजारों डॉलर का मुनाफा होता है.

इसके अलावा कई देशों में बढ़ती हुई आबादी की वजह से भी बाघों के रहने की जगह कम हो रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के एक प्रतिनिधि का कहना था कि आशाजनक बात यह है कि बाघों को यदि पर्याप्त जगह दी जाए, तब उनकी संख्या जल्दी से बढ़ भी सकती है क्योंकि बाघनी अकसर और कई बच्चे पैदा करती है.

रिपोर्ट: एजंसियां/प्रिया एसेलबोर्न

संपादन: ए कुमार

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