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बाढ़ की विभीषिका से दुश्वार होती जिंदगी

मनीष कुमार
२७ अगस्त २०२१

बिहार में कई इलाकों में बाढ़ का पानी उतरने लगा है तो कई नदियां अभी भी उफान पर हैं. चारों तरफ बर्बादी ही बर्बादी दिख रही है. जहां पानी निकल गया या फिर कम हो गया, वहां लोग रोजमर्रा की जिंदगी जीने की जुगत में जुट गए हैं.

Indien, Bihar | Hochwasser in Patna
तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार में बाढ़ का पानी तो गिरने लगा है और जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है लेकिन दुश्वारियां बढ़ गईं हैं. खेतों में खड़ी फसल बर्बाद हो गई तो घरों में रखा अनाज खराब हो गया. यहां तक कि पशुओं के लिए रखा चारा भी सड़ गया. हर तरफ दुर्गंध, पेयजल संकट, सांप व विषैले कीड़े-मकोड़े तथा संक्रमण फैलने का खतरा. आपदा प्रबंधन विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 38 में से 16 जिले बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं. इनमें भागलपुर, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, पटना, कटिहार, सारण, वैशाली, भोजपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, लखीसराय, सहरसा, पूर्णिया व मुंगेर शामिल हैं.

इन जिलों के 93 प्रखंडों की 682 पंचायतों के 2404 गांवों की करीब 38 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है. राहत व पुनर्वास के लिए बाढ़ प्रभावितों को कहीं सरकारी सहायता मिली तो कहीं वह ग्रामीण राजनीति की भेंट चढ़ गई. ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक प्रदेश में प्रति परिवार छह हजार रुपये की सहायता राशि लगभग पांच लाख लोगों के खाते में भेजी जा चुकी है. बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकार राहत कैंप व सामुदायिक किचन चला रही है. हर बार की तरह इस बार भी बाढ़ से हुई क्षति का आकलन करने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से टीम भेजने का आग्रह किया है. उम्मीद की जाती है कि शीघ्र ही केंद्रीय टीम बिहार आकर क्षति का जायजा लेगी. हालांकि राज्य सरकार ने भी अपने स्तर यह प्रक्रिया शुरू कर दी है.

अचानक आया पानी, सब कुछ हो गया बर्बाद

बाढ़ के दिनों में यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि पानी कब आ जाएगा. नेपाल में बारिश होती है और इधर बिहार में गंगा, कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, कमला बलान, सोन, अधवारा और महानंदा जैसी नदियों का जलस्तर बढ़ने लगता है. नदियां विकराल रूप धारण करने लगती हैं, फिर अचानक कोई बांध या तटबंध टूटता है और पानी घरों में घुस जाता है. समस्तीपुर जिले के मोहनपुर निवासी रामप्रवेश सिंह कहते हैं, "पानी आने का अंदेशा तो था, लेकिन सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी और इतना पानी आ जाएगा. खुद बचें या मवेशियों को बचाएं. बाहर जाने के रास्ते भी बंद हो गए."

पानी में डूबे शहरतस्वीर: Manish Kumar/DW

मोहनपुर के ही अवधेश शर्मा कहते हैं, "पानी इतनी तेजी से आया कि सब कुछ बर्बाद हो गया. अनाज-पानी भी नहीं बचा सके. किसी तरह घर में ही रह रहे हैं, लेकिन सांप-बिच्छू के डर से रात क्या दिन में भी नहीं सो पाते हैं." बाढ़ प्रभावित इलाके में पेयजल का संकट खड़ा हो जाता है. हैंडपंप से दूषित पानी निकलने लगता है. वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने के कारण कई जगहों पर लोगों को इसी पानी का सेवन करना पड़ता है.

राहत कैंप में भी परेशानी

आपदा की त्रासदी व सरकार की उदासीनता की दोहरी मार झेल रहे बाढ़ पीड़ित राहत कैंपों की व्यवस्था से भी खिन्न हैं. पटना के पास एक राहत कैंप में रह रहे अमलेश कहते हैं, "यहां सामुदायिक किचन से खाना तो मिल रहा है लेकिन दस दिन से केवल चावल ही दिया जा रहा है. खाना मिलने का कोई निश्चित समय नहीं है. सोने-रहने की उचित व्यवस्था नहीं है." श्यामा देवी का कहना है, "बाढ़ के पानी में सब कुछ गंवा कर यहां आए हैं. बच्चे बीमार पड़ रहे हैं, उनके इलाज की उचित व्यवस्था नहीं है. दवाइयां भी नहीं मिल रही. समझ नहीं आता, क्या करूं."

वहीं यहां तैनात सरकारी कर्मचारियों का कहना था कि हमारे पास जो संसाधन हैं और उससे जितना बन पा रहा है, वह हम कर रहे हैं. ऐसे गाढ़े दिनों में सब कुछ सामान्य तो नहीं ही होता, थोड़ी बहुत परेशानी तो होती ही है. पत्रकार अमित भूषण कहते हैं, "अतिथि की तरह अचानक तो बाढ़ आती नहीं है. लेकिन सरकार पर्याप्त उपाय नहीं करती है. समय रहते जो तैयारी करनी चाहिए, उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता."

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चारों ओर बर्बादी ही बर्बादी

बाढ़ का पानी उतरते ही हर तरफ तबाही का मंजर ही दिखता है. गांवों के संपर्क पथ क्या, नेशनल हाईवे तक कई जगहों पर टूट गए हैं. सड़कें जर्जर हो गई हैं. पानी जमा रहने या निकल जाने के बाद भी लोग जान जोखिम में डाल ऐसी सडक़ों पर सफर करते हैं. पानी उतरने के दौरान निचले इलाकों में या फिर गड्ढों में पानी जमा रह जाता है. जिसमें बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है. पानी जमा रहने के कारण दुर्गंध आने लगती है. खगड़िया जिले के बाढ़ प्रभावित रहीमपुर ग्राम के अजय चौधरी कहते हैं, "कीड़े-मकोड़े व सांपों का प्रकोप बढ़ गया है. सर्पदंश की घटनाएं बढ़ गईं हैं. पानी तो निकल गया है, किंतु जहां पानी जमा रह गया है वह तो धूप में ही धीरे-धीरे काफी दिनों बाद सूखेगा. दुर्गंध तो है ही, डेंगू व अन्य बीमारी का खतरा भी बढ़ गया है. अब चूड़ा-चीनी नहीं, दवा चाहिए. ब्लीचिंग पाउडर चाहिए."

मोहल्लों में भी पानी जमा हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

बाढ़ के बाद पानी तो घटने लगता है, लेकिन फिर पड़ती है बीमारियों की मार. बाढ़ का पानी कम होने के बाद डायरिया, डेंगू, चिकनगुनिया व टाइफाइड जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. बीमारी के फैलाव के संबंध में त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋचा कहतीं हैं, "बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों को पानी में होकर ही आना-जाना पड़ता है. इसलिए उन्हें फंगल इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा सर्दी-बुखार या मच्छर जनित बीमारी का फैलाव भी तेजी से होता है. दूषित पानी पीने की वजह से पेट संबंधी शिकायतें भी बढ़ जाती है." स्थिति का सामना करने के लिए सरकार ने राज्य के सभी सिविल सर्जनों से कहा है कि वे जरूरी दवाओं की व्यवस्था कर लें तथा जहां पानी जमा है, उन जगहों पर चूना व ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव सुनिश्चित करें.

फसलें बर्बाद, रोजी-रोटी पर भी आफत

बाढ़ आ जाने से किसान व पशुपालक सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. उनके समक्ष रोजी-रोटी का संकट आ जाता है. पटना जिले के मोकामा निवासी किसान रामनिवास सिंह कहते हैं, "बाढ़ ने खड़ी फसल को तो बर्बाद किया ही, घर में रखा अनाज भी सड़ जाएगा. अब खाएंगे क्या." इसी गांव के पशुपालक अरविंद कहते हैं, "बाढ़ के समय जैसे-तैसे मवेशियों को बचाया. हरे चारे की समस्या है. दूध भी कम हो रहा है. इसी से जो आमदनी हो रही थी, उसी से घर चलता है. अब फिर महाजन का कर्ज बढ़ जाएगा." ऐसा ही हाल हाजीपुर के केला उत्पादकों का है. इस बार यहां गंगा व गंडक की बाढ़ ने केले की फसल को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया. यहां के हजारों किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन केले की फसल ही थी.

खेत पानी में डूबे हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

भागलपुर के बुनकरों को भी बाढ़ ने बेहाल कर दिया है. वे दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं. नाथनगर के चंपानगर तथा मदनी नगर में पांच सौ से ज्यादा बुनकरों के पावरलूम, जनरेटर, विद्युत उपकरण तथा तैयार कपड़े बर्बाद हो गए. मदनी नगर के अब्दुल गफ्फार ने कहा, "जब पानी उतरा तो पावरलूम तो खराब हो ही गया था, 30 लाख का धागा भी बर्बाद हो गया. महाजन ने रेशमी साड़ी व सलवार-शूट का कपड़ा तैयार करने को दिया था. दस रुपये प्रति मीटर मिलना था, अब भरपाई कैसे होगी, यह पता नहीं." इनके अलावा कई बुनकर ऐसे हैं जो महाजन से कर्ज लेकर काम कर रहे थे. पत्रकार अमित भूषण कहते हैं, "किसानों या बुनकरों के लिए ऐसी स्थिति में सरकारी सहायता का प्रावधान तो है, किंतु सिस्टम के कारण कब तक उन्हें मदद मिल सकेगी यह कहा नहीं जा सकता."

बारिश कम हो या ज्यादा, बाढ़ आएगी ही

इस बार प्रदेश में बाढ़ प्रभावित पांच जिले ऐसे रहे जो औसत से कम बारिश होने के बाद भी डूब गए. इसके अलावा चार जिले ऐसे थे, जहां सामान्य बारिश हुई थी, लेकिन उनके भी कई इलाके में बाढ़ आ गई. यही विडंबना है. बारिश कम हो या सामान्य हो, बाढ़ की विभीषिका झेलनी ही पड़ती है. केवल नेपाल ही नहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश तक के पानी की निकासी का रास्ता बिहार ही है.

इस बार भी नेपाल के इलाके व दूसरे राज्यों से आए पानी की वजह से ही स्थिति बिगड़ी. तभी तो सामाजिक कार्यकर्ता आलोक राज कहते हैं, "जिस तरह जातीय जनगणना के मुद्दे पर राज्य की पार्टियां प्रधानमंत्री से मिलने गई थीं, कभी एकजुट होकर बाढ़ की समस्या के स्थाई समाधान के लिए केंद्र पर दबाव बनातीं तो बाढ़ की समस्या कब की खत्म हो गई होती."

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