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बाढ़ के एक साल बाद भी जर्मनी में सामान्य नहीं हुई जिंदगी

टेसा वाल्टर
१४ जुलाई २०२२

जर्मनी के आइफेल इलाके में रहने वालों को बाढ़ की आपदा के बाद उनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर लाने के लिए तुरंत और बिना नौकरशाही के मदद देने का वादा किया गया था. बाढ़ पीड़ितों को बीते एक साल में कितनी मदद मिली?

यूलिया हाइनरिष के परिवार ने जो बाढ़ में झेला वो उन्हें आज भी भावुक कर देता है
यूलिया हाइनरिष के परिवार ने जो बाढ़ में झेला वो उन्हें आज भी भावुक कर देता हैतस्वीर: Tessa Walther/DW

यूलिया हाइनरिष की 10 साल की बेटी जब पिछले साल बाढ़ की रात की घटनाएं याद करती है तो उनकी आंखों में आंसू भर आते हैं. उनकी बेटी ने कहा, "हर तरफ गहरा पानी था और अब, जब भी बारिश होती है मैं डर जाती हूं. वो सारी यादें हमेशा वापस आती हैं."

आर वैली के शुल्ड गांव में अपने घर के आगे कुर्सी पर मां बेटी बैठी हैं. यही वो जगह है जहां से 14-15 जुलाई की दरम्यानी रात को पानी अचानकर बढ़ना शुरू हुआ और देखते ही देखते हाइनरिष के घर की पहली मंजिल पूरी तरह पानी में डूब गई. हाइनरिष किसी तरह खुद को, अपनी बेटी और उसके रिश्ते के भाई बहनों को खींच कर छत पर ले जाने में सफल हुईं.

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उसके बाद से इस एक साल में बहुत कुछ हुआ है. सबसे पहले तो यहां से कुछ गांव दूर दूसरी जगह पर वो अपने दोस्तों के साथ रहने चली गईं. साथ में उनकी बेटी और उनके पति भी थे. हाइनरिष का कहना है कि उन्होंने घर के हरेक चीज की खुद मरम्मत की है. तख्ते, लैमिनेट और प्लास्टरबोर्ड के इस्तेमाल ने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया है, "बीते साल सचमुच मैंने बहुत से नये काम सीखे." बाढ़ की वजह से उनके मकान को हुए नुकसान का अनुमान करीब 175,000 यूरो लगाया गया लेकिन सरकार की तरफ से अब तक उन्हें बहुत थोड़ी मदद मिली है. हाइनरिष ने बताया, "इसे पूरी तरह नौकरशाही से मुक्त होना चाहिए लेकिन ऐसा है नहीं."

अपनी बेटी के साथ यूलिया हाइनरिषतस्वीर: Tessa Walther/DW

नौकरशाही से मुक्त - आर वैली में इस शब्द को सुन कर लोगों के चेहरे पर थकान से भरी हंसी उभर आती है. 180 लोगों की जान और हजारों घरों को ध्वस्त कर देने वाले आपदा के एक साल बाद भी ज्यादातर लोग खुद को उनके दुर्भाग्य के सामने अकेला पाते हैं. किसी चित्रकार की कल्पना जैसे खूबसूरत आरवाइलर नगर आर वैली आने वाले सैलानियों से भरा रहता था. अब यहां से कीचड़ और मलबे का ढेर तो साफ हो गया है लेकिन बहुत से घर और दुकानें अब भी खाली पड़ी हैं.

इन्हीं में से एक है फ्रेंज रेस्तरां क्रेपशें जिसे चार्ली शाफगांस गुएल्कर चलाते थे. वह दरवाजा खोल कर कंक्रीट की खाली दीवार दिखाते हुए कहते हैं, "यहां पर काउंटर था, जिस पर शानदार फ्रेंच कॉफी मशीन थी. अब सब कुछ चला गया." नगर के बीच में 13 साल तक उन्होंने यह रेस्तरां चलाया लेकिन एक दिन ऐसा पानी आया कि दीवारों को छोड़ सब तहस नहस कर गया.

पहले उन्हें उम्मीद थी कि वो उसे दोबारा खोल सकेंगे. उन्होंने और उनके मकान मालिक ने सरकारी मदद के लिए गुहार लगाई और वो हर चीज को दोबारा से दुरूस्त करने की उम्मीद कर रहे थे. हालांकि अब तक इस दिशा में बहुत मामूली प्रगति ही हुई है.

71 साल के गुएल्कर ने अब क्रेपशें के दोबारा खुलने की उम्मीद छोड़ दी है. उन पर अब भी 20,000 यूरो का कर्ज है जिसे अपनी मामूली पेंशन से चुका पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है.

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चार्ली शाफगांस गुएल्कर ने रेस्तरां दोबारा चालू करने की उम्मीद छोड़ दी हैतस्वीर: Tessa Walther/DW

सामान्य प्रक्रिया?

कातारीना क्लेसगेन लोगों के मुश्किलों की इन कहानियों से अच्छी तरफ वाकिफ हैं. वो राइनलैंड पलैटिनेट के आईएसबी बैंक के लिए काम करती हैं और उनका काम है बाढ़ पीड़ितों को राहत और निवेश में मदद करना. क्लेसगेन का कहना है, "कोविड-19 की महामारी के दौरान जो आर्थिक मदद के लिए आवेदन की प्रक्रिया थी उसकी तुलना में यह प्रक्रिया बहुत आसान है." हालांकि इसके बाद भी आवेदन करने वालों को सबूत और विशेषज्ञों के आकलन का ब्यौरा देना पड़ता है ताकि उनके दावों का निपटारा हो सके. क्लेसगेन का कहना है कि यह बहुत जरूरी है, "क्योंकि बहुत सारा पैसा भी दांव पर लगा है."

30 साल की क्लेसगेन ने अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर कुछ दिन आर वैली में काम किया. उन्होंने हिसाब लगाया है कि अगर कोई परिवार जिसके पास बीमा नहीं है और उसके घर का सारा घरेलू सामान बर्बाद हो गया है तो उसे आईएसबी के जरिये 28,500 यूरो की मदद मिल सकती है. अगर उसके लिए यह पर्याप्त नहीं हो तो वह कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्चों के राहत संगठन जैसे कि माल्टेसर्स या डियाकोनी से मदद ले सकता है. यह पैसा कर्ज नहीं है इसलिए उसे यह वापस नहीं करना है.

कातारीना क्लेसगेन बाढ़ पीड़ितों को राहत पाने में सहायता और सलाह देती हैंतस्वीर: Tessa Walther/DW

बाढ़ के तुरंत बाद संसद के दोनों सदनों ने 30 अरब यूरो का एक विशेष फंड जारी किया जिससे कि स्थानीय प्रशासन और निजी घरों को पुनर्निर्माण में मदद दी जा सके.

मंजूरी तो मिली लेकिन पैसा नहीं

बहुत से बाढ़ पीड़ित खासतौर से बुजुर्ग आवेदन की ऑनलाइन प्रक्रिया से जूझ रहे हैं. पेंशन पाने वाले एक शख्स ने क्लेसगेन को बताया कि उसका मोबाइल घर इस आपदा में तबाह हो गया, वह मदद के लिए आवेदन करना चाहता है लेकिन उसके पास यह करने के लिए कंप्यूटर नहीं है.

पिछले साल आईएसबी ने आर्थिक मदद के 90 फीसदी आवेदनों को मंजूरी दे दी. इसका मतलब है कि 10,000 आवेदकों को कुल मिला कर 35 करोड़ यूरो की रकम मिलनी चाहिए. इसके साथ ही कारोबारियों के लिए भी 20 करोड़ यूरो की रकम की मंजूरी मिली. हालांकि इनमें से एक बहुत मामूली रकम ही वास्तव में आवेदकों के खातों में पहुंच सकी. मंजूर हुई रकम का महज शुरुआती 20 फीसदी ही तुरंत और बिना नौकरशाही के दिया गया. उसके बाद से आवेदकों को अपने खर्चे के सबूत और ब्यौरे दिखाना जरूरी है.

यूलिया हाइनरिष और उनका परिवार बिल्कुल इसी मोड़ पर खड़ा है. उन्हें बाढ़ के बाद आपातकालीन सहायता तुरंत मिल गई. उसके बाद आईएसबी की तरफ से जो पैसा मिलना था उसका 20 फीसदी भी मिल गया. अब कारीगरों और सर्वे करने वालों से उन्हें निर्माण सामग्री की रशीद और जो काम हुआ है या अभी बाकी है उसके अनुमानित खर्च का ब्यौरा देना है. दिक्कत यह है कि कुशल कारीगर फिलहाल आर वैली में बहुत मुश्किल से ही आ रहे हैं. 

कारीगरों और मजदूरों के लिए आस पास के इलाकों में चक्कर काटने और आर्थिक मदद पाने के लिए कागजी कार्रवाई करने की ऊर्जा अब बाढ़ पीड़ितों के पास नहीं मची है. आर वैली के ज्यादातर लोगों की तरह ही हाइनरिष भी आपदा के बाद इतनी आहत हैं कि सामान्य जिंदगी में वापसी के लिए ही संघर्ष कर रही हैं. एक साल के बाद भी उन्हें वो यादें और खतरनाक अनुभव बेचैन कर देते हैंः वह कहती हैं, "शाम को मैं बिस्तर में लेटती हूं तो सारी तस्वीरें आंखों के आगे घूमने लगती हैं साथ ही आंसू भी उमड़ आते हैं."

हालांकि सबके बाद भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा है. उन्हें हाल ही में उनको ट्रक का लाइसेंस मिला हैः "मेरा हमेशा से सपना रहा है बजरी और मलबे को उलट पलट करना." इस सपने को अब कई नये मायने मिल गये हैं.

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