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बाढ़ से निपटने में अब भी बेबस पाकिस्तान

२७ जुलाई २०११

पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ को एक साल पूरा होने के बाद भी देश फिर ऐसे हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं दिखता. सहायता संगठन ऑक्सफॉम का कहना है कि सिंधु नदी के किनारे रहने वाले 50 लाख लोगों पर फिर बाढ़ का खतरा है.

पाकिस्तान में मॉनसून की बारिश शुरू हो चुकी हैतस्वीर: AP

पिछले साल पाकिस्तान ने अपने इतिहास की सबसे भयंकर बाढ़ देखी. देश का 20 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न हो गया. ऑक्सफैम के मुताबिक बाढ़ से दो करोड़ लोग प्रभावित हुए और कम से कम 2000 लोगों की जान गई. ऑक्सफैम की पाकिस्तानी डायरेक्टर नेवा खान का कहना है कि पिछले साल स्वयंसेवकों और स्थानीय अधिकारियों ने बाढ़ से निपटने के लिए बहुत मेहनत की लेकिन सरकार की तरफ से जो कदम उठाए गए हैं, वे फिर इस तरह की आपदा से निपटने के लिए काफी नहीं दिखते.

संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान की मदद के लिए जिस 2 अरब डॉलर की अपील की, उसमें से दानदाताओं ने सिर्फ 70 प्रतिशत रकम मुहैया कराई है और इसमें से 10 फीसदी से भी कम रकम आपदा रोकथाम के कदमों पर खर्च की गई है.

भगवान भरोसे

किसान गुलाम हुसैन ने एक साल बाद जैसे तैसे फिर से अपने घर को बनाना शुरू किया है. ईंट और गारे से बना दो कमरे का मकान अब लगभग पूरा हो गया है. यह घर सिंधु नदी के किनारे से चंद सौ मीटर की दूरी पर है. इसीलिए उन्हें डर सताता है, "अपने घर को फिर से बनाने में मुझे बहुत समय लगा क्योंकि किसी ने मेरी मदद नहीं की. मैं दुआ कर रहा हूं कि इस बार पानी हम पर रहम करे." इस घर को बनाने के लिए उन्होंने पांच रिश्तेदारों से मदद ली.

सरकार और सहायतों संगठनों पर पीड़ितों की वक्त से मदद न करने के आरोप लगेतस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र को अंदेशा है कि इस बार बारिश के मौसम में स्थिति बिगड़ी तो बाढ़ पचास लाख लोगों को प्रभावित कर सकती है. पिछले साल जैसी बाढ़ आने का अंदेशा तो नहीं है लेकिन छोटी मोटी बाढ़ भी करोड़ों का नुकसान कर सकती है, जो आर्थिक परेशानियों में घिरी सरकार की मुश्किलों को बढ़ा सकती है. अमेरिका से खराब रिश्ते भी पाकिस्तान को भारी पड़ सकते हैं जो उसकी आर्थिक मदद का एक बड़ा जरिया है. तालिबान की चुनौती से जूझ रहे पाकिस्तान के रिश्ते अपने पड़ोसी देशों से भी ज्यादा अच्छे नहीं हैं.

सिंधु नदी के किनारों पर पुश्ते बनाने का काम पूरा नहीं हुआ है जबकि बाढ़ से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद भी घट गई है. पिछले साल बाढ़ की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले सिंध प्रांत फिर सैलाब में घिर सकता है. हुसैन कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि सरकार ने पर्याप्त कदम उठाए हैं. सिर्फ खुदा ही हमें बचा सकता है."

सरकारी दावे

पिछले साल जुलाई में भारी बारिश के बाद बाढ़ शुरू हुई, जिससे देश का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब गया. इससे सिंचाई व्यवस्था, पुल, घर और सड़कें ध्वस्त होने से देश के आधारभूत ढांचे को 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. वक्त पर मदद न पहुंचाने के लिए सरकार, सेना और राहत संगठनों की आलोचना की गई. लेकिन संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि वह इस साल संभावित बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए भोजन, पानी और तंबूओं का भंडारण करने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है.

पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के आपात कार्यालय के प्रमुख मैन्युएल बेसलर का कहना है, "मार्च की शुरुआत से ही हम सरकार के निकट संपर्क में हैं ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि इस साल बाढ़ की स्थिति पैदा होने पर हम तेजी से कदम उठा सकें और हमारी तैयारी बेहतर हो." उनका कहना है कि 20 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हो सकते हैं और अगर मॉनसून अनुमान से ज्यादा मजबूत रहा तो यह संख्या 50 लाख तक पहुंच सकती है. सिंध प्रांत के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के महानिदेशक पीर बख्श जमाली ने बताया, "मैं आपको बताता हूं कि ज्यादातर जगहों पर 80 से 95 फीसदी काम पूरा हो गया है."

बहुत से बाढ़ पीड़ितों को इस साल सरकार पर नहीं, सिर्फ खुदा पर भरोसा हैतस्वीर: AP

कमजोर रहेगा मॉनसून

मौसम विभाग का कहना है कि इस साल मॉनसून सामान्य से 10 प्रतिशत कमजोर रहेगा. मुख्य मौसम अधिकारी आरिम मोहम्मद ने कहा, "अभी तक नदियों के प्रवाह पर कोई असामान्य असर नहीं दिखता, वह सामान्य बना हुआ है. हमारा अनुमान है कि अगले 15 दिनों में बाढ़ की कोई आशंका नही हैं." हालांकि पाकिस्तान के उत्तरी इलाकों और कश्मीर में पिछले साल के मुकाबले बारिश दस प्रतिशत ज्यादा होगी. इन इलाकों का पानी सिंधु नदी के जलाशय में जाता है.

2010 की बाढ़ में पाकिस्तान की 20 प्रतिशत जमीन पानी में डूब गईतस्वीर: AP

पर्यावरण की परिस्थितियों के मुताबिक उत्तरी इलाकों में तेजी से बर्फ पिघलने के कारण नदियों का जलस्तर बढ़ता रहा है जबकि पिछले साल की बाढ़ के कारण भूमिगत जल का स्तर भी बढ़ गया है जिसके चलते जमीन की पानी सोखने की क्षमता कम हो गई है. हाल के दिनों में बाढ़ के कारण रावलपिंडी में दो लोगों का जान गई है लेकिन सरकार ने इस साल अभी तक किसी गंभीर बाढ़ की सूचना नहीं दी है.

जुलाई से सितंबर तक होने वाली बारिश पर ही दक्षिण एशिया के करोड़ों किसानों की कृषि और रोजीरोटी निर्भर करती है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ए जमाल

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