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बातचीत की ओर बढ़ी अन्ना की लड़ाई

२० अगस्त २०११

अन्ना हजारे का अनशन जारी है. लोगों का समर्थन जारी है. लेकिन इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बीच के रास्ते की तलाश शुरू हो गई है. सरकार का रवैया कुछ नरम पड़ा है. प्रधानमंत्री ने बातचीत की बात की है.

तस्वीर: dapd

भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि सरकार लोकपाल बिल के मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है और इस मामले में लेन देन की गुंजाइश है. जनलोकपाल की मांग के समर्थन में अन्ना हजारे का अनशन पांच दिन से जारी है और अब दोनों पक्ष बातचीत की गुंजाइश तलाशने लगे हैं.

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राष्ट्रीय सहमति बने

भारत सरकार ने लोकपाल के मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति बनाने की बात उछालकर गेंद को अन्ना हजारे के पाले में डाल दिया है क्योंकि सरकार यह कहती रही है कि अन्ना हजारे और उनके साथी अपना बनाया लोकपाल बिल देश पर थोपना चाहते हैं जबकि देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो उनके बिल से सहमत नहीं हैं.

प्रधानमंत्री सिंह ने राष्ट्रीय सहमति की बात करते हुए कहा है कि सरकार एक मजबूत लोकपाल बिल चाहती है. उन्होंने कहा, "सरकार भारतीय जनता के उन सभी क्षेत्रों के लोगों का सहयोग लेने के लिए तैयार है जो इस बारे में सोचते हैं. हम चाहते हैं कि नतीजा एक मजबूत और प्रभावशाली लोकपाल बिल के रूप में सामने आए. हमारे समाज के सभी लोग यही चाहते हैं."

मनमोहन सिंह अपने घर पर ही मीडिया से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि लोकपाल के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक में यह बात सामने आई कि सभी पार्टियां बिल लाना चाहती हैं, इसलिए सरकार ने लोकपाल बिल को संसद में रखा. उन्होंने कहा, "उन लोगों ने कहा कि जब तक आप कोई मसौदा पेश नहीं करेंगे, हम अपनी राय नहीं दे सकते. हमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है. लेकिन हम किसी भी बातचीत और चर्चा के लिए तैयार हैं. हम चाहते हैं कि इस बारे में राष्ट्रीय सहमति बने. हम सभी एक ऐसे लोकपाल के पक्ष में हैं जो प्रभावशाली और मजबूत हो."

तस्वीर: AP

कानून बनाना आसान नहीं

अनशन पर बैठे सामाजिक नेता अन्ना हजारे ने कहा है कि सरकार को 30 अगस्त से पहले उनकी टीम के बनाए जन लोकपाल बिल को संसद में पास कराना होगा. इस बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा, "सच कहूं तो इसमें कई मुश्किलें हैं. यह वैधानिक प्रक्रिया की बात है. कुछ चरण पार करने होते हैं. बाकी किसी और ने क्या कहा है इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा."

प्रधानमंत्री सिंह ने उम्मीद जताई कि लोग इस बात को समझेंगे कि कानून बनाने की प्रक्रिया में कुछ वक्त लगता है और उसकी एक तरीका है.

सरकार ने अब तक अन्ना हजारे के खिलाफ बेहद कड़ा रवैया अपना रखा था. लेकिन प्रधानमंत्री के बयान के बाद जाहिर है कि सरकार बीच का रास्ता तलाशने की तैयारियां शुरू कर चुकी है. इस बीच संसद ने शनिवार के अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया है जिसमें लोगों से लोकपाल बिल पर राय देने को कहा गया है. कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा, "हम अन्ना और उनके साथियों को कुछ तार्किक बात समझाने में कामयाब रहे हैं. हम इंतजार करेंगे क्योंकि हमें बातचीत तो करनी ही होगी."

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प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद अब अन्ना हजारे और उनकी टीम को कुछ फैसले करने पड़ सकते हैं. यूं तो अन्ना हजारे 30 अगस्त तक की समयसीमा दे चुके हैं. शनिवार को अपने अनशन के पांचवें दिन रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने कहा, "लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक हमें एक मजबूत लोकपाल नहीं मिल जाता."

कई हजार समर्थकों की भीड़ को हजारे ने कहा, "सरकारी खजाने में जो पैसा है, वह हमारा है. उस खजाने को खतरा सिर्फ चोरों से नहीं, पहरेदारों से भी है."

जन उम्मीद अन्ना

रामलीला मैदान में 10 हजार से ज्यादा लोग जमा हैं जो अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. उन सबकी मौजूदगी पांच दिन से खाने से दूर अन्ना की ताकत है. और मंच पर भूखे अन्ना उन सभी की भ्रष्टाचार से लड़ाई की एक उम्मीद हैं जिनके लिए पूरी व्यवस्था भ्रष्ट और खोखले तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं.

लेकिन इस लड़ाई का अंजाम बीच के रास्ते से ही हो सकता है, यह बात अन्ना और उनकी टीम को भी समझ में आ रहा है. अन्ना हजारे के मुख्य समर्थकों शामिल जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से कहा, "अगर सरकार हमें अपने नजरिये के बारे में यकीन दिला सकती है तो हम उसे स्वीकार कर लेंगे."

अखबार नवभारत टाइम्स ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि जनलोकपाल बिल तैयार करने वालों में शामिल जस्टिस संतोष हेगड़े भी सरकारी नजरिया सुनने को तैयार हैं. खबर के मुताबिक, "जस्टिस संतोष हेगड़े ने कहा है कि टीम हजारे प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने पर विचार कर सकती है." हालांकि हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल का कहना है कि यह जस्टिस हेगड़े का अपना विचार होगा, अन्ना की मुहिम में बदलाव नहीं आया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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