1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बाबा के कार्टून पर संसद में बवाल

१४ मई २०१२

भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के आदर्श डॉ. भीमराव अंबेडकर के कार्टून पर लोकसभा में बहस हुई. भारत सरकार ने मामले की जांच और एनसीईआरटी के अधिकारियों की इसमें भूमिका पर जांच का वादा किया.

तस्वीर: AP

भारत सरकार ने विश्वास दिलाया है कि इस तरह की घटना फिर नहीं होगी. लोकसभा के सदस्यों ने स्कूल की पुस्तकों में इस तरह की सामग्री पर आपत्ति जताई. इस पर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की इस्तीफा भी मांग लिया. भारतीय जनता पार्टी और तेलुगू देसम सहित लोकसभा के अधिकतर सांसदों का मानना था कि इस मामले में वह पूरी तरह जिम्मेदार हैं.

संसद में इस मुद्दे पर करीब एक घंटे तक बहस होती रही. तर्क यह दिया गया कि इस तरह के कार्टूनों से बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ता है. दावा यह भी था कि नेताओं को बुरा भला कहने का चौतरफा षडयंत्र हो रहा है चाहे मीडिया हो या फिर बॉलीवुड.

कपिल सिब्बल ने कहा, "सरकार राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद एनसीईआरटी की जांच और जिम्मेदारी तय करने पर सहमत हुई है." एनसीईआरटी ने ही 11वीं और 12 की राजनीति विज्ञान की किताब में इस आपत्तिजनक कार्टून को शामिल किया था. इस तरह की घटना फिर न हो इसलिए सरकार एक तरीका सुनिश्चित करेगी.

कपिब सिब्बल ने बताया कि अप्रैल के शुरुआत में मंत्रालय को सूचना मिली कि एनसीईआरटी की ग्यारहवीं कक्षा की किताब के पेज नंबर 18 पर एक कार्टून है जिसमें अंबेडकर संविधान के बारे में कुछ कह रहे हैं.

मंत्री ने कहा है कि उन्होंने परिषद से इस बारे में सफाई मांगी, जिसका उन्होंने विस्तार से जवाब भी दिया. "विषय और जानकारी के आधार पर मैंने निर्देश दिया कि किताब से इस कार्टून को तुरंत हटाया जाए."

मई में कपिल सिब्बल ने नवीं और ग्यारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताबों को मंगवाया और कार्टूनों की जांच की. मुझे पता चला कि कई कार्टून ठीक नहीं हैं. मुझे लगा कि राजनीति विज्ञान सहित एनसीईआरटी की सभी किताबों को एक बार फिर देखा जाना चाहिए. मुझे लगता है कि कई कार्टून आपत्तिजनक हैं और पाठ्यपुस्तकों के लिए ठीक नहीं.

मुद्दे को उठाते हुए शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि उन्हें यह सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ कि जिन 100 स्कूली बच्चों से उन्होंने बात की उनमें से एक भी राजनीति में नहीं आना चाहता था. इसके कारण जानने की कोशिश में उन्हें कोर्स की किताबों में कार्टूनों का पता चला. वहीं कांग्रेस के संजय निरुपम ने दुख जताया कि नेताओं का मजाक उड़ाना फैशन बना गया है और एनसीईआरटी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली स्कूली किताबों में ऐसा होना निश्चित ही बुरी बात है.
संसद में यह बहस हुई कि इस तरह के कार्टून से नेताओं का मजाक उड़ाने की कोशिश की जाती है. लेकिन इस विषय पर बहस की खबर नहीं है कि विपरीत और भेदभाव से भरपूर समय में भीमराव अंबेडकर ने न केवल उच्च शिक्षा हासिल की और बाद में देश के संविधान निर्माता बने, ऐसे भीमराव अंबेडकर का कार्टून बनाया जाना चाहिए या नहीं. और न ही इस बात पर बहस हुई कि इतिहास की किताबों में पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पश्चिमी नजरों से देखते हुए 'सिपॉय म्यूटिनी' कहा जाना ठीक है या नहीं.

रिपोर्टः आभा मोंढे (पीटीआई)

संपादनः ओ सिंह

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें