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बायोमेट्रिक पहचान को ठेंगा दिखाते जालसाज

ओंकार सिंह जनौटी
२९ जून २०१८

बायोमेट्रिक फोटो से पहचान और फिंगरप्रिंट से लॉग इन, सुनने में यह भले ही बहुत ही सुरक्षित तरीका लगे, लेकिन मास्क और चुइंग गम के जरिए जालसाल ऐसे सिस्टमों को गच्चा दे देते हैं.

Symbolbild Gesichtserkennung
तस्वीर: picture-alliance/picturedesk/H. Ringhofer

पासवर्ड टाइप करने के बदले फेस रिकग्निशन तकनीक से कंप्यूटर या मोबाइल एक्सेस को सिक्योर बनाने की कोशिशें होती रहती हैं. लेकिन अगर कोई मास्क या बायोमेट्रिक सिस्टम का सहारा ले, तो सिस्टम गच्चा खा सकता है. एक यूरोपीय रिसर्च प्रोजेक्ट बायोमेट्रिक सिस्टम की कमजोरियों पर शोध कर रहा है, ताकि उसे और सुरक्षित बनाया जा सके. बायोमेट्रिक्स रिसर्चर सेबास्टियान मार्सेल कहते हैं, "हमें पता चला है कि किसी शख्स की पहचान में बायोमेट्रिक सिस्टम सबसे कुशल है लेकिन यह बहुत ही कमजोर भी साबित हो सकता है. जब भी कोई नया हमला होता है तो हमें नए जवाबी उपाय विकसित करने पड़ते हैं. इसीलिए बायोमेट्रिक सिस्टम की कमजोरियों को समझने से पहले काफी काम करना है."

हूबहू दिखते मास्क फेस रिकग्निशन सिस्टम के लिए ताजा चुनौती हैं. जालसाज अब तक तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल कर लोगों के चेहरे को निशाना बना रहे थे. रिसर्चरों का नया सॉफ्टवेयर इस तरह के हमलों को रोक सकेगा. 3 डी फेस रिकग्निशन तकनीक के एक्सपर्ट नेस्ली एर्दोगमुस कुछ टिप्स देते हैं, "सबसे पहले पलक झपकना डिटेक्ट होता है, सॉफ्टवेयर यूजर से कहता है कि वह इस मौके पर पलक झपकाए. किसी शख्स की तस्वीर या मूर्ति के जरिए ऐसा कर लॉगिन करना नामुमकिन है. अगला जवाबी कदम है मोशन डिटेक्शन. प्रिंट किया हुआ चेहरा और असली चेहरा कभी एक तरह से हरकत नहीं करेगा."

रिसर्चर ऐसे फीचर पर भी काम कर रहे हैं जो त्वचा की संरचना की समीक्षा कर सके. इससे बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर असली चेहरे और हूबहू दिखते मास्क के बीच फर्क कर पाएगा. फिंगरप्रिंट्स के पैटर्न को अकसर पहचान का सबसे सुरक्षित तरीका माना जाता है, लेकिन रिसर्च में कुछ चौंकाने वाली बातें पता चली हैं. इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के रिसर्चर जियान लुका मार्सेलिस कहते हैं, "हाल के शोधों ने दिखाया है कि नकली अंगुलियों के जरिए असली फिंगरप्रिंट्स की नकल की जा सकती है. सुपरमार्केट में आसानी से मिलने वाली चीजों से ऐसा किया जा सकता है."

कांच जैसी सतहों पर मौजूद फिंगरप्रिंट्स को आसानी से कॉपी कर कुछ ही मिनटों के भीतर उनकी नकल बनाई जा सकती है. सबसे तेज और सस्ता तरीका है गम को अंगुली पर चढ़ाकर असली फिंगरप्रिंट की नकल तैयार करना. हैरानी की बात है कि ज्यादातर फिंगरप्रिंट स्कैनर इससे गच्चा खा जाते हैं. जियान लुका मार्सेलिस के मुताबिक, "हम सिस्टम में स्टोर फिंगरप्रिंट को चुन सकते हैं और फिर नकल के जरिए बिल्कुल उसका परफेक्ट मैच पा सकते हैं."

इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए जो तकनीक खोजी जा रही है उसे लाइवनेस एसेसमेंट कहा जाता है. इसे एक्टिवेट करते ही त्वचा की नकली दिखती संरचना का स्कैन किया गया फिंगरप्रिंट खारिज कर दिया जाता है. मार्सेलिस कहते हैं, "हमारा सिस्टम दो चीजें मापता है, यहां पैर्टन का मैच काफी ऊंचा है, हरा रंग इसी को दिखाता है, लेकिन जीवंतता से जुड़ा स्कोर काफी कम है, लाल रंग यही बताता है. इसके जरिए, बहुत ही सटीक नकली फिंगरप्रिंट के जरिए भी सिक्योरिटी को पास नहीं किया जा सकेगा."

जालसाजों से एक कदम आगे रहने के लिए बायोमेट्रिक्स के विशेषज्ञों को भी काफी मेहनत करनी पड़ती है. यह काम चौबीसों घंटे और साल के पूरे 365 दिन होता रहता है.

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