बायो ईंधन भी प्रदूषण की वजह
८ जनवरी २०१३जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बायो ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा था, लेकिन नई रिपोर्टों के अनुसार वे भी प्रदूषण पैदा करते हैं और यूरोप में हर साल डेढ़ हजार मौतों की वजह बन सकते हैं. इन रिपोर्टों के अनुसार बायो ईँधन तैयार करने के लिए लगाए जाने वाले पेड़ एक ऐसा रसायन छोड़ता है जो हवा में दूसरी जहरीले पदार्थों के साथ मिलकर खेतों की उपज भी घटा सकता है.
इंगलैंड के लैकेस्टर यूनिवर्सिटी में हुए एक रिसर्च में शामिल निक हेविट कहते हैं, "बायो ईँधन की बढ़ती मात्रा को अच्छा समझा जाता है, क्योंकि यह वायुमंडल में कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा घटाता है." यह सच भी है लेकिन हेविट के अनुसार इसका हवा की गुणवत्ता पर बुरा असर भी होता है.
नेचर क्लाइमेट चेंज में छपी रिपोर्ट में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में इस्तेमाल होने वाले ऊर्जा स्रोतों में बायो ईँधन को बढाए जाने की योजना के असर का अध्ययन किया गया है. निक हेविट का कहना है कि वायु प्रदूषण का सामना कर रहे अमेरिका या चीन जैसे देशों में जब भी बायो ईँधन का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाएगा इसका ऐसा ही असर होगा.
चिनार, विलो और यूक्लिप्टस जैसे पेड़ों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने वाले ईँधन के स्रोतों के रूप में किया जा रहा है लेकिन बढ़ने के दौरान ये पेड़ बड़ी मात्रा में इसोप्रेन नामक रसायन छोड़ते हैं. सूरज की रोशनी में दूसरे प्रदूषकों के साथ मिलकर इसोप्रेन जहरीले ओजोन का निर्माण करता है. हेविट कहते हैं, "यूरोप में बायो ईँधन के बड़े पैमाने पर उत्पादन का लोगों के जीवन दर और फसल पर कम लेकिन गंभीर असर होगा." उनका कहना है कि अब तक किसी ने बायो ईँधन के पेड़ों से हवा की गुणों पर होने वाले असर का अध्ययन नहीं किया है.
लैकेस्टर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार बायो ईँधन वाली लकड़ी से पैदा होने वाले ओजोन से हर साल समय से पहले 1400 लोगों की मौत हो जाएगी. समाज को इससे 7.1 अरब डॉलर का नुकसान होगा. यूरोपीय संघ की योजना को लागू करने से गेहूं और मक्के की फसल को 1.5 अरब का नुकसान होगा. ओजोन अनाज के पौधों के विकास को प्रभावित करता है.
बायो ईँधन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें इस्तेमाल होने वाले पेड़ों को प्रदूषित इलाकों से दूर रख कर ओजोन के बनने को सीमित किया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने यह भी सुझाव दिया कि इसोप्रेन की निकासी को कम करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग का भी सहारा लिया जा सकता है.
ओजोन से फेफड़े की बीमारियां भी होती हैं और यूरोप में उसे हर साल 22,000 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार माना जाता है. यूरोपीय पर्यावरण संस्था के अनुसार हर साल यूरोप में 500,000 लोग खनिज ईँधन से होने वाले वायु प्रदूषण से समय पूर्व मौत का शिकार होते हैं.
लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के अध्ययन में कोयला, तेल या गैस से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की बायो ईँधन से होने वाले नुकसान के साथ तुलना नहीं की गई है. हेविट ने कहा, "हम तुलना करने की हालत में नहीं हैं." उनका कहना है कि बायो ईँधन के इस्तेमाल की मुख्य वजह जीवाश्म से पैदा होने वाले कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से 1970 के बाद से हर साल करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत हुई है.
इसका सबसे ज्यादा असर विकासशील देशों पर हुआ है जहां ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाढ़, सूखे और दूसरी आपदाओं में लाखों लोग दस्त, कुपोषण, मलेरिया और डेंगू के शिकार हो गए हैं. बायो ईँधन के इस्तेमाल को बेहतर माना जाता है क्योंकि पेड़ बढ़ते समय कार्बन डाय ऑक्साइड को सोख लेते हैं और जलाए जाने पर उसे छोड़ते हैं. इसके विपरीत खानों में लाखों सालों से जमा खनिज ईँधन लगातार कार्बन डाय ऑक्साइड छोड़ते हैं.
एमजे/एनआर (रॉयटर्स)