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बाली पर आतंकी हमले की याद

१२ अक्टूबर २०१२

इंडोनेशिया ने दस साल पहले बाली पर आतंकी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी. पर्यटकों पर इस्लामी आतंकवादियों के हमले में 202 लोग मारे गए थे. स्मृति समारोह में हमले में बचे लोगों और मृतकों के परिजनों ने हिस्सा लिया.

तस्वीर: REUTERS

इंडोनेशिया के इतिहास का यह सबसे बुरा आतंकवादी हमला था. एक रात में इस्लामी आतंकवादियों ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली थी. निशाना पश्चिमी जीवन शैली के अलावा इंडोनेशिया का पर्यटन उद्योग भी था. जानकारों का मानना है कि ऐसी दहशत भरी घटना देश में दोबारा दोहराई नहीं जाएगी. लेकन आतंकवाद का खतरा अभी भी बना हुआ है.

तस्वीर: AFP/Getty Images

12 अक्टूबर 2012. पर्यटकों में लोकप्रिय द्वीप बाली में शाम का समय था. बाली के कुटा इलाके में नाईट क्लब और पब लोगों से खचाखच भरे हुए थे. कुटा की मशहूर सड़क जलन लेगियन में डिस्को में बज रहे जोरदार संगीत का शोर सुना जा रहा था. यह सड़क सैलानियों में काफी लोकप्रिय है. खास कर भारत और एशिया के अन्य देशों से यहां लोग आते हैं. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और कई पश्चिमी देशों से भी लोग यहां आना बेहद पसंद करते हैं. इसी सड़क पर पैडीस पब और सारी क्लब भी हैं.

रात ग्यारह बज कर पांच मिनट पर पैडीस पब में धमाका हुआ. पब में अफरा तफरी मच गयी और लोग हड़बड़ा कर सड़क पर निकल आए. वह नहीं जानते थे कि बाहर इस से भी बड़ा धमाका होने वाला है. लोगों के बाहर आते ही सड़क की दूसरी ओर सारी क्लब के सामने खड़ी एक मिनी वैन में धमाका हुआ. यह धमाका इतना जोरदार था कि सड़क में एक मीटर गहरा गड्ढा हो गया. इस दहशत भरी रात में इंडोनेशिया में 202 लोगों की जान चली गयी. इनमें से अधिकतर विदेशी पर्यटक थे.

तब से इंडोनेशिया ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में काफी निवेश किया है. पिछले एक दशक में सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं. हमले से जुड़े अधिकतर लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. कईयों की पुलिस के साथ मुठभेड़ में जान भी जा चुकी है. लेकिन इस सब के बाद भी देश में इस्लामी आतंकवाद का खतरा खत्म नहीं हुआ है.

तस्वीर: AFP/Getty Images

गैर सरकारी संस्था इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) की इस साल जुलाई में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडोनेशिया में आतंकवादी गतिविधियां खत्म नहीं हुई हैं बल्कि उनकी रणनीति बदल गई है. देश में सबसे सक्रिय आतंकवादी संगठन जेमा इस्लामिया ने पिछले कुछ सालों में कई हमले किए हैं. बाली के हमलों के अलावा 2003 में राजधानी जकार्ता में मेरियट होटल पर हमला भी इसी संगठन ने कराया. इसके बाद 2004 में ऑस्ट्रेलिया के दूतावास पर भी इसी संगठन ने हमला किया. रिपोर्ट में कहा गया है, "जेमा इस्लामिया जैसे चरमपंथियों की अब यह कोशिश रहती है कि वे दावा का हवाला दे कर लोगों का समर्थन हासिल कर सकें." दावा एक इस्लामी आंदोलन है जिसकी शुरुआत मलेशिया में हुई. 1970 के दशक में यह उग्र हो गया और इस बीच उसने इंडोनेशिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है.

इंडोनेशिया के आतंकवाद विशेषज्ञ अल चैदर ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "ये संगठन कभी अपने अलग अंग बना लेते हैं, कभी एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो कभी किसी और से जा कर मिल जाते हैं. इस तरह से वे लोग जो जेमा इस्लामिया के उसूलों से सहमत नहीं थे, उन्होंने अपने अलग संगठन बना लिए." चैदर का कहना है कि यह चिंता की बात है, क्योंकि इन संगठनों के पास अब कोई बड़ा और समान लक्ष्य नहीं है, बल्कि अब पांच से दस लोग मिल कर अपना संगठन बना लेते हैं और बिना एक दूसरे को कोई जानकारी दिए हमलों की तैयारी कर लेते हैं. इन सभी के अब अलग अलग लक्ष्य हैं.

जबकि आतंकवाद के एक और विशेषज्ञ सोलाहुद्दीन का कहना है, "इंडोनेशिया में अब दोबारा कभी कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हो सकता जिसमें सौ किलो के बम का इस्तेमाल हो." पर साथ ही उनका यह भी कहना है कि अब ऐसे छोटे हमले होते रहते हैं जिनमें चुनिनंदा लोगों को निशाना बनाया जाता है. खास कर पुलिसकर्मियों को इसका भारी नुक्सान उठाना पड़ा है. सोलाहुद्दीन बताते हैं, "आज की तारीख में आतंकवादी संगठनों को पहचानना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि ये संगठन बहुत छोटे हैं."

तस्वीर: AFP/Getty Images

हालांकि इंडोनेशिया में इस्लामी कट्टरपंथी बंटे हुए हैं लेकिन उनकी विचारधारा के लिए उपजाऊ भूमि मौजूद है. इंडोनेशियाई जनमत सर्वेक्षण संस्थान द्वारा 2011 में कराए गए एक सर्वे में 22 फीसदी लोगों ने आतंकी संगठन अल कायदा के साथ सहानुभूति जताई. 2005 के एक सर्वे के अनुसार अंडोनेशिया के दस फीसदी लोग यानी डेढ़ करोड़ लोग जेमा इस्लामिया के हमले से सहमत थे. अल चैदर कहते हैं कि ये खुले विचार दिखाते हैं कि जेमा इस्लामिया अपनी विचारधारा को समाज के मध्य में पहुंचाने में कामयाब रहा है.

आतंकवादियों के निशाने पर अब सिर्फ सुरक्षाकर्मी नहीं हैं, बल्कि पिछले दिनों में वे उदार इस्लाम समर्थकों को भी निशाना बनाने लगे हैं. मार्च 2011 में उदारवादी मौलवी उलील अबशार अबदल्ला के दफ्तर में लेटर बम भेजा गया. ऐसे ही पैकेट एंटी टेरर अधिकारियों को भी भेजे गए. बाली में आतंकी हमले के दस साल बाद इंडोनेशिया भले ही ऐसे हमलों का मुकाबला करने के लिए तैयार हो, लेकिन लोगों में उग्रपंथी इस्लाम के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए वह सफल होने लायक कोई नीति नहीं बना पाया है.

रिपोर्ट: एंडी बुडिमान/आईबी

संपादन: महेश झा

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