लगातार आर्थिक तरक्की कर रहे भारत में एक तरफ अरबपतियों की लम्बी कतार बनती जा रही है तो दूसरी ओर देश में ही एक तबका भीख मांग कर पेट भरने को मजबूर है.
विज्ञापन
भिक्षावृत्ति आधुनिक होते भारत के माथे पर कलंक की तरह हैं. मंदिरों, मस्जिदों या किसी भी धार्मिक स्थल पर भिखारियों का जमवाड़ा लगा रहता है. दो जून की रोटी को तरसते देश के लाखों गरीब अस्पतालों, बस अडडों, चौराहों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भिक्षावृत्ति को मजबूर हैं. कानूनी प्रावधानों के ज़रिये भिक्षावृत्ति पर रोक की कोशिशें अब तक असफल ही साबित हुई हैं. भिक्षावृति को कानूनन अपराध घोषित करने के बावजूद भिखारियों की तादाद कम नहीं हुई.
कानून और पुनर्वास की मांग
सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता लम्बे समय से एक ऐसे कानून की मांग करते आये हैं जिसमें भिखारियों को अपराधी मानने की बजाय उनके पुनर्वास पर जोर हो. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी इसी मत की हैं. उनका कहना है, ‘भिक्षावृत्ति पर एक ऐसा कानून बनाने की जरूरत है जो समाज के संवेदनशील वर्ग के पुनर्वास और सुधार पर जोर डालता हो, न कि इसे गैर कानूनी मानता हो.” भिक्षावृत्ति पर कानून और पुनर्वास की मांग करते हुए मेनका गाँधी ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को पत्र लिखकर विस्तृत कानून लाने का आग्रह किया है. इस पत्र में उन्होंने कहा है कि पहले से ही संवेदनशील वर्ग को इसके लिए अपराधी घोषित करने की बजाए कानून में उसके पुनर्वास और सुधार पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटने के लिए अब तक दिल्ली सहित अधिकतर राज्यों ने भिक्षावृत्ति को रोकने से जुड़े बम्बई भिक्षावृत्ति अधिनियम, 1959 को अपनाया है, जिसके तहत पुलिस अधिकारी को बिना वॉरंट के किसी भिखारी को गिरफ्तार करने का अधिकार है. इन दिनों केंद्र सरकार नए विधेयक पर काम कर रही है जिसके तहत भीख मांगना अपराध नहीं होगा. इसके अनुसार, बार-बार भीख मांगने पर लोगों को सिर्फ पुनर्वास केंद्रों में रखा जा सकता है.
भारत में कहां कहां हैं मानव तस्करी के गढ़
कई राज्यों में मानव तस्करी के मामले बढ़ गये है. 2016 के आंकड़ों के हिसाब से सबसे ऊपर है पश्चिम बंगाल तो उससे थोड़ा ही पीछे रहा राजस्थान. देखिये भारत में कहां कहां हैं सबसे बुरे हालात.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.-P.Strobel
पश्चिम बंगाल
2016 में मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए. देश भर में एक साल में कुल 8,132 शिकायतों में से 3,576 केवल इसी राज्य से आईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
राजस्थान
मानव तस्करी के कुल मामलों में से 60 फीसदी से ज्यादा मामले केवल पश्चिम बंगाल और राजस्थान से मिले. राजस्थान से 1,422 शिकायतें आयीं.
तस्वीर: Reuters
गुजरात और महाराष्ट्र
राजस्थान के बाद 548 मामलों के साथ गुजरात का नंबर आता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 517 मामलों के साथ महाराष्ट्र में भी ऐसा ही हाल रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool
केंद्र शासित प्रदेश
केंद्र शासित (यूटी) प्रदेशों में दिल्ली मानव तस्करी की शियाकतों के मामले में सबसे ऊपर है. यूटी के कुल 75 मामलों में से 66 केवल दिल्ली में थे. हालांकि पिछले साल ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा 87 था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Schmidt
तमिलनाडु और कर्नाटक
दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे बुरा हाल तमिलनाडु का रहा. वहां 2016 में मानव तस्करी के 434 मामले दर्ज हुए. इसके बाद कर्नाटक में 404 मामले सामने आए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
आंध्र प्रदेश और तेलांगना
आंध्र प्रदेश में 239 और तेलांगना में 229 मामलों के साथ हालात एक से रहे. केरल में मात्र 21 शिकायतें दर्ज हुईं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
असम
पूर्वोत्तर के राज्यों में 91 मामलों के साथ असम का हाल सबसे खराब रहा. फिर भी 2014 के मुकाबले हालात बहुत बेहतर हुए हैं जब राज्य में 380 ऐसे मामले दर्ज किए गए थे.
तस्वीर: Reuters/Stringer
एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग स्क्वॉड
पूर्वोत्तर के कई राज्यों में सरकारों ने मानव तस्करी को रोकने के लिए खास दस्ते बनाए हैं. ऐसे 10 दस्ते असम में, 8 अरुणाचल में और 5 मणिपुर में हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
पूर्वी राज्य
झारखंड में 109, पड़ोसी राज्य ओडीशा में 84 और बिहार में 43 मानव तस्करी के मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश में 79 और मध्य प्रदेश में 51 मामले दर्ज हुए.
तस्वीर: dapd
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
भारत सरकार ने बांग्लादेश और संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी सहयोग के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. आरपी/एके (पीटीआई)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.-P.Strobel
10 तस्वीरें1 | 10
बाल भिखारी पीड़ित हैं, अपराधी नहीं
बम्बई भिक्षावृत्ति अधिनियम की तरह देश के कई राज्यों में भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसके बावजूद हर शहर में भीख मांगते बच्चे, बूढ़े और जवान भी, मिल जायेंगे. ज़्यादातर बच्चे मजबूरी में भिक्षावृत्ति का पेशा अपनाते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी के अनुसार देश में हर साल लगभग अड़तालीस हजार बच्चे गायब होते हैं. इनमे से आधे बच्चे कभी नहीं मिलते हैं. इन गायब बच्चों में से अधिकांश को अपराध या भिक्षावृत्ति में धकेल दिया जाता है.
देश में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है, जो गायब बच्चों के सहारे संचालित होता है. भिक्षावृत्ति को रोकने और भीख माफिया पर लगाम कसने के लिए एक केन्द्रीय कानून की आवश्यकता जतायी जा रही है. अधिवक्ता संजय कुमार कहते हैं, "भिक्षावृत्ति विरोधी कानून बनाते समय बच्चों को केंद्र में रखकर प्रावधान बनाने होंगे. क्योंकि ये बाल भिखारी पीड़ित हैं, अपराधी नहीं.” वे आगे कहते हैं कि भीख माफिया को नेस्तनाबूत करने के लिए दंड के कड़े प्रावधान की भी ज़रूरत है.
मुख्यधारा से जोड़ने की हो कवायद
मेनका गांधी ने भीख मांगने वालों के देखभाल और संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया है.केंद्र सरकार के प्रस्तावित विधेयक में भी पुनर्वास पर बल दिया गया है. अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता आरती चंदा का कहना है कि भिक्षावृत्ति से जुड़े पूरे परिवार के पुनर्वास का प्रयास करना चाहिए, भिक्षावृत्ति को मजबूर लोगों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना ज़रूरी है. समाजशास्त्री डॉ. साहेबलाल कहते हैं कि भिक्षावृत्ति कोई सम्मानजनक पेशा नहीं है. सिवाय अपराधिक गिरोह या कुछ आलसी लोगों द्वारा ही इसे स्वेच्छा से चुना जाता है, अधिकतर लोग मजबूरी के चलते भीख मांगते हैं. ऐसे लोगों को स्वरोज़गार या जीविका के सम्मानजनक साधन मुहैया कराने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए.
भिक्षावृत्ति के अभिशाप से देश को मुक्त करना है तो भिखारियों की उर्जा को सही जगह लगाना होगा. सरकारी योजनाओं का उन्हें लाभ देकर या स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिलवा कर इनके लिए जीविकोपार्जन के सम्मानजनक रास्ते खोले जा सकते हैं. यह सही है कि सिर्फ कानून या सरकारी प्रयास ही काफी नहीं है बल्कि समाज को भी बदलना होगा और भिक्षावृत्ति छोड़ चुके लोगों को मुक्त ह्रदय से अपनाना होगा.
हाथ फैलाने को मजबूर यमन के बदनसीब बच्चे
यमन में जारी संघर्ष की बच्चों पर सीधी मार पड़ रही है. राजधानी सना में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिन्हें अब भीख मांग कर गुजारा करना पड़ रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
हाथ फैलाने को मजबूर
सना की सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों में कई ऐसे हैं जिनके माता पिता दोनों लड़ाई में मारे गए हैं जबकि कई बच्चे अपने परिवार की मदद के लिए ऐसा कर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M.Huwais
गुजारा मुश्किल
सना में रहने वाले बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें लड़ाई के कारण वेतन नहीं मिल रहा है. ऐसे में परिवार का गुजारा चलाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है.
तस्वीर: Reuters/M. al-Sayaghi
नहीं मिला काम तो...
दो साल पहले लड़ाई में अपने पिता को गंवाने वाला 15 साल का मुस्तफा कहता है, “मैंने काम तलाशने की कोशिश की लेकिन मिला नहीं. जब खाने का संकट खड़ा हो गया तो मैं भीख मांगने लगा.”
तस्वीर: Reuters/Faisal Al Nasser
बिगड़े हालात
यमन में मार्च 2015 से हालात तब ज्यादा खराब हो गए जब सऊदी अरब के नेतृत्व में खाड़ी देशों के सैन्य गठबंधन में सना पर कब्जा करने वाले हूथी बागियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Huwais
लड़ाई की कीमत
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यमन में जारी लड़ाई में अब तक 7,400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं जिनमें 1,400 बच्चे भी शामिल हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
कुपोषित बच्चे
लड़ाई से पहले भी यमन में खाने का संकट रहा है. संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ के मुताबिक यमन में 22 लाख बच्चे अत्यधिक कुपोषण के शिकार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Hamoud
बच्चों से बेपरवाह
सना में काम करने वाले एक डॉक्टर अहमद यूसुफ का कहना है कि बच्चों के कुपोषण की समस्या से निपटने पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही गैर सरकारी संगठन. वह कहते हैं, “बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.”
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
खाली जेब
सितंबर में राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी ने केंद्रीय बैंक को सना से बाहर ले जाने का एलान किया. तभी से बहुत कर्मचारियों का वेतन नहीं मिला है. राष्ट्रपति हादी की सरकार की अस्थायी राजधानी अदन है.
तस्वीर: AP
संख्या में इजाफा
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक यमनी संगठन सेयाज के प्रमुख अहमद अल-कुरैशी कहते हैं, “सना में सरकारी कर्मचारियों के वेतन रोके जाने के बाद भीख मांगने वाले बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है.”
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
बेबसी
यूसुफ कहते हैं कि कुछ माता पिता बच्चों के इलाज के लिए अपना सामान बेच रहे हैं. लेकिन कुछ मामलों में, “बच्चा मर जाता है और पिता के हाथ में सिर्फ दवाई का पर्चा रह जाता है.”