भारत में बाल मजदूरी पर बनी फिल्म बताएगी 'कड़वा सच'
१३ नवम्बर २०१९
कालीन की फैक्ट्री में काम कराने के लिए एक बच्चे की तस्करी पर बनी फिल्म भारत के ग्रामीण इलाकों में दिखाई जाएगी. मकसद है लोगों को जागरुक करना.
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इस फिल्म के जरिए ऐसे परिवारों के बीच जागरुकता फैलाई जाएगी, जो अक्सर मानव तस्करों के निशाने पर रहते हैं. झलकी फिल्म 9 साल की ऐसी बच्ची पर आधारित है जो अपने छोटे भाई की तलाश में दर-दर भटकती है. लड़की के माता-पिता उसके भाई को बिना इच्छा के तस्कर को बेच देते हैं. फिल्म झलकी के बारे में डायरेक्टर ब्रह्मानंद सिंह ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से कहा, "हम बाल मजदूरी पर जागरुकता फैलाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचना चाहते हैं."
बंधुआ बाल मजदूरी पर फिल्म
सिंह ने कहा कि यह फिल्म नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी के जीवन से प्रेरित है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा पिछले महीने जारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 में मानव तस्करी के तीन हजार मामले दर्ज किए गए थे, इससे पूर्व के साल में इस तरह के 8000 मामले दर्ज किए गए थे. ग्रामीण इलाकों में मानव तस्कर गरीब, महिलाएं और बच्चों को शहर में अच्छी नौकरी का लालच देकर उन्हें आधुनिक युग की बंधुआ मजदूरी में धकेल देते.
स्टार्ट अप कंपनी पिक्चर टाइम ग्रामीण इलाकों में इस फिल्म का प्रदर्शन करेगी. पिक्चर टाइम ग्रामीण इलाकों में एयर कंडीशन थिएटर के माध्यम से फिल्म का प्रदर्शन करती है और यह एक तरह का अस्थायी थिएटर होता है. कंपनी ने एक टिकट की कीमत 50 रुपये रखी है.
बाल मजदूरी में सबसे आगे हैं ये देश
तमाम कानून और नियमों के बावजूद बाल मजूदरी आज भी कई मुल्कों में बड़ी समस्या बनी हुई है. वैश्विक जोखिमों जैसे विषयों पर शोध करने वाली लंदन की रिसर्च कंपनी वेरस्कि मेपलक्रोफ्ट ने ऐसे देशों की एक सूची जारी की है
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/M. Hasan
1. उत्तर कोरिया
इस सूचकांक में जिन 27 देशों को बाल श्रम के लिहाज से अत्याधिक जोखिम वाला बताया गया है उसमें सबसे पहले एशियाई देश उत्तर कोरिया का नंबर आता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2. सोमालिया
साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक अफ्रीकी देश सोमालिया में पांच से चौदह साल के तकरीबन 38 फीसदी बच्चे बतौर बाल श्रमिक काम कर रहे हैं. निर्माण और खनन कार्य में इनसे सबसे ज्यादा काम लिया जाता है.
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3. दक्षिण सूडान
पांच साल तक गृह युद्ध झेलने वाले दक्षिणी सूडान में बच्चे खनन और निर्माण कार्य के साथ-साथ देह व्यापार में जाने को मजबूर हैं. बाल श्रम रोकने के लिए देश में श्रम कानून 2017 लाया गया लेकिन अब भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है.
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4. इरीट्रिया
अफ्रीकी देश इरीट्रिया में बच्चे कृषि के साथ साथ सोने के खनन में भी झोंक दिए जाते हैं. इसके अलावा बच्चों की तस्करी भी यहां की बड़ी समस्या है.
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5. मध्य अफ्रीकी गणराज्य
हिंसाग्रस्त अफ्रीकी इलाकों में बच्चों को गैर सरकारी हथियारबंद गुट भी बतौर चाइल्ड कमांडों भर्ती किए जाते हैं. इस पर संयुक्त राष्ट्र भी कई बार चिंता जता चुका है लेकिन अब तक जमीन पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Dahir
6. सूडान
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के आंकड़ों के मुताबिक सूडान में तकरीबन 47 फीसदी बच्चे जोखिम भरे काम करने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाकों में करीब 13 फीसदी बच्चे कुल श्रम बल का हिस्सा हैं, वहीं शहरों में यह औसत करीब पांच फीसदी है.
दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला में अधिकतर बच्चे घरेलू काम और देह व्यापार में झोंक दिए जाते हैं. वेनेजुएला से हर साल हजारों बच्चों की तस्करी कर उन्हें कोलंबिया भी भेजा जाता है और उनसे बतौर सेक्स वर्कर काम लिया जाता है.
तस्वीर: Reuters/I. Alvarado
8. पापुआ न्यू गिनी
एशिया-प्रशांत में बसे इस द्वीप में भी बच्चों को सेक्स कारोबार में लगा दिया जाता है. हालांकि स्थिति में बेहतरी के लिए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से नेशनल एक्शन प्लान टू एलीमिनेट चाइल्ड लेबर भी लॉन्च किया लेकिन अब तक कोई खास सफलता नहीं मिली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Abdiwahab
9. चाड
पिछली रिपोर्टों के मुताबिक चाड में अधिकतर बच्चों को कृषि कार्य में लगाया जाता है. हालांकि यहां बड़ी संख्या में बच्चों की खरीद-फरोख्त भी इसलिए होती है ताकि उन्हें तेल उत्पादन के कार्यों में लगाया जा सके.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2010-1152/Asselin
10. मोजाम्बिक
मोजाम्बिक के श्रम मंत्रालय ने साल 2017 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में सात से 17 साल के करीब दस लाख बच्चे बतौर बाल श्रमिक काम करने को मजबूर हैं. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चों को ट्रांसपोर्ट, खनन, कृषि कार्य के साथ-साथ सेक्स कारोबार में भी धकेला जाता है.
तस्वीर: Save the Children/Hanna Adcock
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सिनेमा के जरिए संदेश
सिंह कहते हैं, "पिक्चर टाइम की पहुंच ग्रामीण इलाकों तक है जहां सिनेमा घर मौजूद नहीं है. हम इस फिल्म का प्रदर्शन कर सकते हैं और लोगों को जागरुक कर सकते हैं." कैलाश सत्यार्थी की संस्था भी ग्रामीण इलाकों में इस फिल्म को दिखाएगी, जहां तस्कर गरीब और भोल भाले लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं. भारत के कुछ पिछड़े राज्य जैसे छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड से सबसे अधिक बच्चों की तस्करी सेक्स या बाल मजदूरी के लिए होती है लेकिन वहां कुछ ही सिनेमा घर मौजूद हैं. पिक्चर टाइम के संस्थापक सुशील चौधरी कहते हैं, "झलकी एक महत्वपूर्ण फिल्म है और इसे जगह-जगह दिखाई जानी चाहिए." पिक्चर टाइम ने मासिक धर्म पर बनी फिल्म पैडमैन और खुले में शौच पर बनी फिल्म टॉयलट एक प्रेम कथा भी इसी तरह से पिछले कुछ सालों में प्रदर्शित की है.