बाहर से पैसा लिया तो विदेशी एजेंट बनो
२१ नवम्बर २०१२अंतरराष्ट्रीय मदद से चलने वाले रूसी गैरसरकारी संगठन को विदेशी एजेंट बताने वाला कानून बुधवार से लागू हो गया. मानवाधिकार संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और उनका कहना है कि देश सोवियत संघ के जमाने में चला गया है.
नए कानून के तहत गैरसरकारी संगठन अगर अपने पैसों के स्रोत के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं देते हैं तो उन्हें कड़ी सजा का सामना करना होगा. 85 साल के ल्यूडमिला अलेक्सयेवा मानवाधिकार संस्था मॉस्को हेलसिंकी ग्रुप के संस्थापक सदस्यों में हैं. रूसी सरकार का विरोध करने वाले नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं में उन्हें सम्मान से देखा जाता है. अलेक्सयेवा ने शपथ ली है कि वो इस कानून का बहिष्कार करेंगे. उन्होंने यहां तक कहा, "उन्हें मुझे पकड़ लेने दीजिए. जेल में थोड़ी देर रहने के बाद मैं मर जाउंगा." कानून के मुताबिक गैरसरकारी संगठनों के कार्यकर्ता अगर इस नियम को नहीं मानेंगे तो उन्हें दो साल के लिए जेल में डाल दिया जाएगा.
अलेक्सयेवा इस कानून को यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में चुनौती देने का मन बना रहे हैं. यूरोपीय अदालत में पहले से ही रूस के खिलाफ किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा मामले चल रहे हैं. रूसी समाज में थोड़ा डर बढ़ा है और बहुत से लोग इसे पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव का असर मानते हैं. ऐसे में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डर है कि इसी की आड़ में रूसी सरकार उन पर जासूस होने का धब्बा लगाना चाहती है. ज्यादातर रूसी लोगों के लिए जासूसी एक देशविरोधी काम है और मौजूदा राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के एक समय केजीबी के जासूस होने के बावजूद लोग इसे सहन नहीं कर पाते.
मानवाधिकार संस्था मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स के निदेशक लेव पोनोमार्योव रूस की सरकार पर अपने विरोधियों को मिटाने का आरोप लगाते हैं. आलोचकों का मानना है कि राष्ट्रपति पुतिन इस कानून के जरिए गैर सरकारी संगठनों को निशाना बना कर अपने आलोचकों को चुप कराना चाहते हैं. विश्लेषक बताते हैं कि अपनी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देख चुके पुतिन ने तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद दबाव बढ़ा दिया है. विरोध प्रदर्शन के दौरान कानून तोड़ने वालों पर जुर्माना बहुत ज्यादा बढ़ गया है. राजद्रोह के मामलों में भी सजा को बेहद सख्त कर दिया गया है.
नोबेल पुरस्कार विजेता रूस के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने कहा है कि रूस में भय का वातावरण है. इन सब के बावजूद रूसी सरकार अपने इरादे पर अड़ी है. रूसी संसद के स्पीकर सर्गेई नारिश्किन ने साफ कर दिया है कि इस कानून का पूरी सख्ती से पालन किया जाएगा. नारिश्किन सत्ताधारी दल के 237 सांसदों में से हैं जिसने इस बिल को संसद में पेश किया और विरोध के बावजूद उसे कानून बनाया. पिछले महीने ही रूस में काम कर रही सबसे बड़ी गैरसरकारी संस्थाओं में एक संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी ने यहां से अपना कारोबार समेट लिया. संगठन का आरोप है कि राजनीतिक दखलंदाजी की वजह से उसे ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा.
भारत सरकार ने भी कुछ गैरसरकारी संगठनों पर विदेशों से पैसा लेकर देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है. कुडानुकुलम के परमाणु बिजली घर का विरोध कर रहे संगठन खासतौर से सरकार के निशाने पर हैं उनमें से कइयों के खिलाफ सरकार ने कार्रवाई भी की है.
एनआर/ओएसजे (डीपीए)