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जर्मनी की बाढ़ से सीख

१२ जून २०१३

जर्मनी में आई बाढ़ ने लोगों की नाक में दम कर दिया है, सब मौसम को कोस रहे हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसमें मौसम का कोई दोष नहीं है बल्कि इंसानों का है.

तस्वीर: Christof Stache/AFP/Getty Images

जर्मनी के कई शहरों में आई बाढ़ को 'सदी की बाढ़' का नाम दिया जा रहा है, कुछ लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल है, क्योंकि दस साल पहले भी वे 'सदी की बाढ़' के बारे में सुन चुके हैं. जर्मनी के मौसम वैज्ञानिक मोजीब लतीफ कहते हैं कि बाढ़ को यह नाम देना गलत है, "90 के दशक में हमने 'सदी की बाढ़' देखी, फिर 2002 में ऐसा फिर हुआ, और अब 2013 में हम एक बार फिर वही देख रहे हैं, यानी जो पहले एक शताब्दी में एक बार हुआ करता था अब वह एक दशक में ही होने लगा है".

लतीफ जर्मनी के कील शहर के सेंटर फॉर ओशन रिसर्च में काम करते हैं और जर्मनी में बरसात के पैटर्न पर नजर रखे हुए हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने बताया की रिकॉर्ड पर अगर नजर डाली जाए तो पता चलेगा कि भारी बारिश अब पहले की तुलना में ज्यादा दिन होती है. जर्मनी में मौसम के रिकॉर्ड 1871 से मौजूद हैं. उनका कहना है, "अगर हम बीते कुछ दशकों की तरफ देखें तो पाएंगे कि 100 साल पहले की तुलना में अब भारी बारिश दोगुना ज्यादा होने लगी है".

ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार
पोट्सडाम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट के मौसम वैज्ञानिक श्टेफान रामश्टोर्फ इसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से जोड़ कर देखते हैं. अपने ब्लॉग में उन्होंने समझाया है की ऐसा नहीं है की मौसम तेजी से बदल रहा है, लेकिन ग्रीन हाउस गैसों के कारण हवा में नमी बढ़ जाती है, जिस कारण बारिश होने लगती है.

आने वाले वक्त में भारी बारिश और बाढ़ और भी ज्यादा देखने को मिलेंगीतस्वीर: Getty Images

लतीफ इस बात को कुछ ऐसे समझाते हैं, "हवा में कितनी नमी होगी, यह निर्भर करता है तापमान पर, क्योंकि तापमान से ही तय होता है कि कितना पानी भाप बन कर उड़ेगा". यानी मतलब साफ है, फैक्ट्रियों से निकलने वाली हानिकारिक गैसें धरती का तापमान बढ़ा रही हैं. इसके चलते पानी का वाष्पीकरण बढ़ गया है. हवा में नमी बढ़ रही है और नतीजा भारी बरसात के रूप में दिखाई दे रहा है.

बदतर होंगे हालात

जर्मन मौसम विभाग के गेरहार्ड लक्स कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि विभाग भारी बारिश और बाढ़ का पूर्वानुमान नहीं लगा पाया, बल्कि दिक्कत जमीनी स्तर पर आई, "इसके लिए आपको मूलभूत संरचना की जरूरत है और सवाल यह उठता है कि आप खुद को ऐसी स्थिति के लिए कैसे तैयार करें जो हर कुछ साल में आती है".

लतीफ का कहना है की हमने अब भी अपनी गलतियों से सीख नहीं ली है, "अगर हम कुदरत से कुछ ले रहे हैं, तो हमें उसे कुछ लौटाना भी होगा". वह मानते हैं कि आने वाले समय में हालात और बिगड़ेंगे, "इतनी तरह की कांफ्रेंस के बाद भी हम जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर पाए हैं". वह कहते हैं कि फिलहाल तो कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है, "लेकिन अगर हम इसे रोकने में कामयाब हो भी जाएं, तब भी स्थिति बदलने में कई दशक लग जाएंगे, इसका मतलब यह हुआ कि हमें इस बात के साथ जीना सीखना होगा कि आने वाले वक्त में भारी बारिश और बाढ़ और भी ज्यादा देखने को मिलेंगी"

रिपोर्ट: आइरीन क्वेल/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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