भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने अपने काफिले में 15 इलेक्ट्रिक वाहन शामिल किए हैं. इनकी मदद से वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी. साथ ही हर साल 36,000 लीटर ईंधन की बचत भी हो सकेगी.
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वित्त मंत्रालय की इस पहल के अलावा अन्य केंद्र और राज्य सरकार के विभागों की इस प्रकार के पहल का लक्ष्य 5,00,000 सरकारी वाहनों को पारंपरिक वाहन से इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलना है. वित्त मंत्रालय अधिकारियों ने बताया, "महिंद्रा वेरिटो के 15 इलेक्ट्रिक वाहन 40,000 रुपये मासिक के पट्टे पर लिए गए हैं, जो आर्थिक मामलों के मंत्रालय (डीईए) के संयुक्त सचिव और वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा इस्तेमाल किए जाएंगे. इससे सालाना 36,000 लीटर ईंधन की बचत होगी."
इन वाहनों को चार्ज करने के लिए नॉर्थ ब्लॉक में 28 चार्जिग प्वाइंट स्थापित किए गए हैं. 6 घंटे में चार्ज करने वाले 24 धीमी चार्जिंग केंद्र और सिर्फ 90 मिनट में चार्ज करने वाले 4 तीव्र चार्जिग केन्द्र इन चार्जिग प्वाइंट्स में शामिल हैं.
(135 साल बाद इलेक्ट्रिक कारों की वापसी)
135 साल बाद इलेक्ट्रिक कारों की वापसी
इलेक्ट्रिक साइकिलों और कारों को बड़ा आधुनिक बताया जाता है, लेकिन बिजली से चलने वाली ये मशीनें कम से कम 135 साल पुरानी तकनीक पर चल रही हैं.
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पहली इलेक्ट्रिक गाड़ी
1881 में गुस्ताव ट्रोव अपनी तिपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ी पर सवार हुए. उसे ट्रोव ट्रिसाइकिल कहा गया. पैरिस की सड़कों पर यह गाड़ी 12 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकती थी. एक बार चार्ज करने पर गुस्ताव की इलेक्ट्रिक साइकिल 12 से 26 किलोमीटर की यात्रा करती थी. गुस्ताव ने साइकिल के एक्सेल में सीमेंस की मोटर लगाई थी. बैटरी ड्राइवर के पीछे रखी.
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घोड़ों की जगह तार
आज बिजली से चलने वाली ट्रेनें और बसें इसी सिद्धात पर चलती हैं. 1882 में वैर्नर सीमेंस ने इलेक्ट्रोमोट नाम की गाड़ी पेश की. गाड़ी ऊपर से गुजरने वाली बिजली की तारों से करंट लेती थी और आगे बढ़ती थी. बर्लिन के कुरफुर्स्टेनडाम में आज भी सीमेंस का वही पुराना 540 मीटर लंबा टेस्ट ट्रैक दिखाई पड़ता है.
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इलेक्ट्रिक थी पहली कार
जर्मन आविष्कारक आंद्रेयास फ्लॉकेन (तस्वीर में अपनी पत्नी के साथ) ने शायद दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक कार 1888 में बनाई. उनकी ऊंचे पहिये वाली कार इलेक्ट्रिक मोटर से चलती थी. एक चमड़े की बेल्ट से पीछे के पहियों को ताकत मिलती थी.
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ई-कार का स्पीड रिकॉर्ड
यह भी 117 साल पुराना रिकॉर्ड है. 1899 में बेल्जियम के इंजीनियर और रेसिंग ड्राइवर कामिल जेनात्जी ने अपनी ई-कार को 100 किमी प्रतिघंटा से भी ज्यादा रफ्तार से दौड़ाया. टॉरपीडो जैसे आकार वाली उनकी कार में 25 किलोवॉट की दो इलेक्ट्रिक मोटरें लगी थीं.
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छा गई इलेक्ट्रिक कारें
1899 में न्यूयॉर्क की 90 फीसदी टैक्सियां बिजली से चलती थीं. उसी साल लुडविग लोनर और फर्डिनांड पोर्शे ने इलेक्ट्रिक कार लोनर-पोर्शे बनाई. इसने ई-कारों का चेहरा बदल दिया. 1902 में पोर्शे ने दुनिया की पहली हाईब्रिड कार बनाई. 1912 आते आते इलेक्ट्रिक कारों का उत्पादन बढ़कर 33,842 मॉडल प्रतिवर्ष हो गया.
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पेट्रोल इंजन का आना
ई-कारें अपने उफान पर थीं. तभी 1911 में पेट्रोल इंजन के लिए इलेक्ट्रिक स्टार्ट तकनीक खोजी गई. तेल के दाम कम थे. पेट्रोल आसानी से उपलब्ध भी होने लगा था. 1920 आते आते इलेक्ट्रिक कारों का उत्पादन करीब करीब बंद हो गया. इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल इक्का दुक्का जगहों तक सिमट गया.
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तेल संकट से नया जीवन
1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान तेल संकट पैदा होने से इलेक्ट्रिक कारों की मांग फिर उठने लगी. 1996 से 1999 के बीच, तीन साल के भीतर जनरल मोटर्स ने EV1 नाम की कार उतार दी.
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आविष्कारकों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए
एक शताब्दी बाद अब जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते इलेक्ट्रिक कारों की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है. 2003 के बाद से लगातार कई कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन बना रही है.
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टेस्ला ने बदली छवि
2006 में अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने टेस्ला रोडस्टर पेश की. इस स्पोर्ट्स कार ने इलेक्ट्रिक कारों का चेहरा बदल दिया. कार 100 किमी की रफ्तार मात्र 3.7 सेकेंड में पकड़ सकती थी. 201 किमी प्रतिघंटा की अधिकतम रफ्तार वाली यह कार एक बार में 350 किलोमीटर दूर जा सकती है.
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जर्मन कार कंपनियों की मुश्किल
मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और फोल्क्सवागेन जैसी प्रमुख जर्मन कंपनियां इलेक्ट्रिक कारों को बड़ी देर तक टालती रहीं. लेकिन बाजार में पिछड़ने के डर से 2013 में आखिरकार वोल्क्सवागेन और बीएमडब्ल्यू को अपनी ई-कारें पेश करनी ही पड़ीं. ऊंची कीमत और सीमित क्षमता वाली ये कारें लोगों को रिझा नहीं सकीं. जर्मन कार बाजार में ई-कारों की हिस्सेदारी सिर्फ 0.6 फीसदी है.
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121 साल बाद दूसरी ई-पोर्शे
अब करीब सभी कार कंपनियां जान चुकी हैं कि भविष्य ई-कारों का ही है. फोल्क्सवागेन 2025 तक ई-कारों की सेल 25 फीसदी करना चाहती है. जर्मन कंपनियां टेस्ला को टक्कर देना चाहती हैं. पोर्शे मिशन-ई नाम की कार तैयार कर रही है. यह 2020 में बाजार में आएगी.
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डीईए ने अपने अधिकारियों के लिए 15 इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करने के उद्देश्य से विद्युत मंत्रालय के अधीनस्थ निकाय एनर्जी एफिसिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा, "पांच वर्षो की अवधि के लिए पट्टे या लीज पर लिए गए इन 15 वाहनों का उपयोग करने से आर्थिक मामलों के विभाग को प्रति वर्ष 36,000 लीटर से भी अधिक ईंधन की बचत होने की आशा है. इसके अलावा, इससे प्रति वर्ष कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में लगभग 440 टन की कमी भी संभव हो पाएगी."
भारत हर साल कच्चे तेल के आयात पर 7 लाख करोड़ डॉलर खर्च करता है और इसके इस्तेमाल से प्रदूषण भी बढ़ता है. साथ ही यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या है. ई-मोबिलिटी अपनाने से परिवहन क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा तथा शहरों में प्रदूषण का स्तर घटेगा.