"बिनायक पर कानून का बेहूदा इस्तेमाल"
२९ दिसम्बर २०१०जाहिर तौर पर दुखी और नाराज दिख रहे अमर्त्य सेन ने कहा कि इस मामले में कानून का बिलकुल गलत इस्तेमाल हुआ है और लोगों के अलावा अदालतों को भी यह बात बताने की जरूरत है.
सेन ने टेलीग्राफ अखबार से कहा, "यही वजह है कि मैं इस मामले में एक बयान दे रहा हूं, जहां मुझे लग रहा है कि मेरे साथ भी नाइंसाफी हुई है." नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री का कहना है कि छत्तीसगढ़ की अदालत बताती है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है और खास तौर पर देशद्रोह के मामले में यह कैसी है.
अमर्त्य सेन का कहना है कि यह बात पक्के तौर पर साबित नहीं हुई कि बिनायक ने चिट्ठियां पहुंचाई हैं और अगर यह साबित भी होता है तो भी यह नहीं साबित होता कि उन्होंने किसी को हिंसा के लिए भड़काया. अमर्त्य सेन का कहना है, "बल्कि उन्होंने तो लिखा है कि राजनीतिक संघर्ष में हिंसा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक तो सही नहीं है और दूसरे इससे पूरी कामयाबी नहीं मिल सकती." अमर्त्य सेन का कहना है कि ऐसे मामलों में शख्स के चरित्र को भी ख्याल में रखना चाहिए.
बिनायक सेन को कर्मठ समाजसेवी बताते हुए अमर्त्य सेन ने कहा कि वह निचले तबके के लोगों के लिए काम कर रहे थे और इस मामले में देशद्रोह का केस लग जाना बताता है कि भारतीय लोकतंत्र का कानून कितना खराब है.
अमर्त्य सेन ने साफ किया कि एक जैसे नाम होने के बावजूद बिनायक सेन उनके रिश्तेदार नहीं हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि वह निश्चित तौर पर रिश्तेदार हैं, एक भारतीय नागरिक के नाते और बिनायक हर भारतीय के रिश्तेदार हैं.
उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट निष्पक्ष और खुले दिमाग से फैसला सुनाएगा, तो इस मामले को खारिज कर दिया जाएगा. "लेकिन जैसा कि गुजरात के मामले में देखा गया है कि राज्य स्तर पर सरकार की नीतियों की वजह से न्याय नहीं हो पाया, तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जानी चाहिए."
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः ए कुमार