नींद का संबंध मस्तिष्क से होता है, अब तक यही माना जाता रहा है कि मस्तिष्क के न्यूरॉन नींद पैदा करते हैं. लेकिन एक स्टडी मुताबिक बिना मस्तिष्क वाली जेलीफिश भी आराम तलब होती है और उसे इंसानों की तरह नींद भी आती है.
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धरती की प्राचीनतम जीव माने जाने वाली जेलीफिश को इंसानों की ही तरह अपनी नींद से बेहद प्यार होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जेलीफिश की एक प्रजाति कैसीओपा रात भर सोती है. हालांकि नींद का यह प्रक्रिया अन्य इन्वर्टिब्रेट जीवों मसलन कीड़ों और मक्खियों में भी पाई जाती है, लेकिन जेलीफिश जैसे प्राचनीतम जीव का नींद की ओर झुकाव कुछ नया है. कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बॉयोलॉजिस्ट रवि नाथ के मुताबिक, "ये परिणाम बताते हैं कि जिन जीवों में तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) नहीं भी होता है उन्हें भी नींद की आवश्यकता होती है. इसका मतलब है कि नींद एक व्यावहारिक प्रक्रिया है जो प्राचीन जीवों में भी रही होगी."
जेलीफिश पिछले 60 करोड़ सालों से समंदर के भीतर रह रहीं हैं और इन्हें अब तक का प्राचीनतम जीव कहा जाता है. डायनासोर के अवशेष बताते हैं की वे इस धरती पर महज 23 करोड़ साल पुराने थे और वहीं इंसानों के होने के सबूत 3 लाख साल पहले से मिलते हैं. नाथ के मुताबिक "हम अब तक यह नहीं जानते हैं कि क्या नींद जानवरों तक ही सीमित है." साइंस पत्रिका बॉयोलॉजी में छपे इस अध्ययन में नाथ ने बताया, "नींद एक जेनेटिकली इनकोडेड व्यवहार की स्थिति है. इसमें जीन और तंत्रिका तंत्र के सर्किट आपस में जुड़ते हैं और नींद की अवस्था बनती है." उन्होंने कहा कि, "किसी जीव में नींद की वास्तविक प्रक्रिया का समझा पाना वाकई मुश्किल है, लेकिन मुझे लगता है कि जिस नींद की अवस्था को हम जानते हैं वह लंबे समय से पड़े विश्राम की स्थिति के बाद पैदा होती है और ये अन्य जीवों मसलन पौधे, बैक्टीरिया और कवक में अलग होती है." उन्होंने बताया कि जेलीफिश न्यूरॉन विकसित करने वाले ऐसे पहले जीव हैं जिनमें मस्तिष्क, रीढ़ या तंत्रिका तंत्र की कमी होती है.
जेलीफिश: शालीन, सुंदर और शातिर शिकारी
चमकीली, जादुई और बेहद जहरीली. जेलीफिश के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है. जानिये इस रहस्यमयी जीव को.
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न दिमाग है, न दिक्कत
जेलीफिश बीते 50 करोड़ साल से महासागरों में तैर रही हैं, वो भी बिना दिमाग के. जेलीफिश में मस्तिष्क के बजाए एक बेहद जबरदस्त तंत्रिका तंत्र होता है जो तुरंत सिग्नलों को एक्शन में बदलता है. इसीलिए जेलीफिश की कई प्रजातियों को दिमाग की जरूरत ही नहीं पड़ती.
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नाम पर न जाना
इसे भले ही जेलीफिश कहा जाता हो, लेकिन असल में यह मछली नहीं है. यह मूंगों और एनीमोन के परिवार की सदस्य हैं. इन्हें मेडुसोजोआ नाम से भी जाना जाता है.
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छतरी जैसा आकार
जेलीफिश के शरीर में 99 फीसदी पानी होता है. वयस्क इंसान के शरीर में करीब 63 फीसदी जल होता है. जेलीफिश के शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा छत्रनुमा ऊपरी हिस्सा है. इसके जरिये जेलीफिश खुराक लेती है. धागे जैसे लटके रेशों की मदद से ये शिकार करती है. कुछ जेलीफिश में यह रेशे एक मीटर से भी ज्यादा लंबे भी हो सकते हैं.
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विशाल जेलीफिश
आमतौर पर लगता है कि जेलीफिश छोटी ही होती हैं. लेकिन ऐसा सोचना गलत है. एशियन नोमुरा जेलीफिश दिखने में भले ही बहुत रंगीन न हो, लेकिन ये काफी बड़ी भी होती है. इसके छातानुमा हिस्से का व्यास दो मीटर तक हो सकता है और वजन 200 किलोग्राम से भी ज्यादा.
जेलीफिश खुद तैरकर दूसरी जगह नहीं जा पातीं. ये समुद्री लहरों के साथ ही बहती हैं. लहरों की दिशा में बहते हुए जेलीफिश अपने शरीर को सिकोड़ती और फुलाती है, ऐसा करने से अधिकतम 10 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार हासिल होती है.
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अथाह विषैली
पानी में तैरती जेलीफिश भले ही बहुत खूबसूरत लगे लेकिन इसकी कुछ प्रजातियां बहुत ही जहरीली होती हैं. सबसे खतरनाक लायन्स मैन जेलीफिश होती है. इसके रेशे बेहद घातक जहर छोड़ते हैं. छोटे केकेड़े और मछली के लार्वा तो तुरंत मारे जाते हैं.
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आग जैसी जलन
लायंस मैन जेलीफिश का डंक इंसान को भी तिलमिला देता है. इसके डंक से त्वचा में लाल निशान पड़ जाते हैं और तेज जलन होने लगती है. बॉक्स जेलीफिश का डंक तो जान भी ले सकता है. पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी प्रशांत महासागर में पाई जाने वाली बॉक्स जेलीफिश को दुनिया के सबसे जहरीले जीवों में गिना जाता है.
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स्पेशल रंगीन इफेक्ट
जेलीफिश कई काम कर सकती है. शिकार को रिझाने या दूसरे जीवों को डराने के लिए यह चमकने लगती है.
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हैरत भरा जीवन
जेलीफिश के प्रजनन का तरीका बड़ा ही अनोखा है. यह पीढ़ी दर पीढ़ी बदलता भी है. जेलीफिश सेक्शुअल कोशिकाएं पैदा करती है और ये कोशिकाएं आपस में मिलकर लार्वा बनाती है. बाद से यह लार्वा जेलीफिश में बदलता है.
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जेलीफिश का झुंड
कभी कभार समुद्री तटों पर जेलीफिश की बाढ़ आ जाती है. जीवविज्ञानी इसके लिए कछुओं के शिकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. कछुए और कुछ मछलियां जेलीफिश को खाती हैं, लेकिन अगर ये शिकारी ही खत्म हो जाएं तो जेलीफिश की संख्या तेजी से बढ़ने लगती है.
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बेहद सावधान
बीच पर घूमते हुए अगर गोंद जैसी कोई चीज दिखाई पड़े तो सावधान हो जाइये. आम तौर पर यह जेलीफिश होती है, जिसके रेशे नहीं दिखाई पड़ते. इसे न तो पैर से छुएं और न ही हाथ से, वरना आप मुश्किल में पड़ सकते हैं.
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कैसीओपा जेलीफिश प्रशांत और अंटलाटिक महासागर में पाई जाती हैं, इनकी व्यास 2.5 सेमी तक होती है और इन्हें "अपसाइड-डाउन जेलीफिश" कहा जाता है क्योंकि ये समुद्र तल के पास उल्टी पड़ी रहती है और इनके टेंटिकल्स ऊपर की ओर रहते हैं.
इस स्टडी में देखा गया कि जेलीफिश रात को निष्क्रिय अवस्था में पहुंच जाती है, दिन के मुकाबले रात में इनके शरीर का मूवमेंट 30 फीसदी तक कम हो जाता है. लेकिन इन्हें अपने शरीर को जगा कर सक्रिय अवस्था में लाने में 5 सेंकड का समय लगता है. हालांकि शोधार्थी अब तक ये नहीं जान पाये हैं कि क्या जेलीफिश को अपनी नींद में सपने भी आते हैं.