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बिना दूध की आइसक्रीम और स्वाद वाह वाह

२८ अगस्त २०११

बिना दूध की आइसक्रीम. ये तो कोई मजेदार बात नहीं हुई. आइसक्रीम तो दूध से ही बननी चाहिए. लेकिन जर्मन वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते. उन्होंने लुपिन पौधे से एक आइसक्रीम बनाई है. वे कहते हैं कि यह सेहतमंद भी है और स्वादिष्ट भी.

तस्वीर: Fraunhofer Gesellschaft

गर्मी का दिन हो और आइसक्रीम देखकर मुंह में पानी न आए, ऐसा कम ही होता है. लेकिन दूध में जो लैक्टोस यानी कुदरती चीनी होती है, उसकी वजह से बहुत से लोग आइसक्रीम खा नहीं पाते. अब जर्मन वैज्ञानिकों ने उनकी समस्या हल करने का दावा किया है. वे आइसक्रीम बनाने के लिए लुपिन के बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लुपिन फूलों वाला पौधा है जो यूरोप और अमेरिका में खूब होता है.

लुपिन से बनी यह आइसक्रीम जर्मनी के कुछ शहरों में मई महीने से बिक रही है. इसे नाम दिया गया है लुपिनेसे. इसकी कीमत 3 यूरो यानी लगभग 180 रुपये रखी गई है, जो सामान्य आइसक्रीम से थोड़ी ज्यादा है.

तस्वीर: Prolupin GmbH

क्यों है जरूरत

जिन लोगों को लैक्टोस से दिक्कत होती है, उनके लिए बाजार में कुछ चीजें मौजूद हैं. मसलन उनके लिए सोयामिल्क से बनी आइसक्रीम मिलती है. लेकिन यह स्वादिष्ट नहीं होती. इस समस्या को समझने के बाद फ्राउनहोफर इंस्टिट्यूट फॉर प्रोसेस इंजीनियरिंग एंड पैकेजिंग ने लुपिन के नीले मीठे बीजों पर काम करना शरू किया. फ्राइबुर्ग के इस इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक कहते हैं कि उनकी आइसक्रीम का स्वाद बाकी बिना दूध की आइसक्रीम से कहीं ज्यादा अच्छा है.

भोजन विज्ञानी क्लाउस म्यूलर कहते हैं, "लुपिन के मुकाबले सोयाबीन प्रोटीन काफी कम ताकत वाले होते हैं. नीले मीठे लुपिन के ताकतवर प्रोटीन आइसक्रीम में वैसा ही प्रभाव पैदा कर देते हैं जैसा लैक्टोस दूध से बनी आइसक्रीम में करता है."

कैसे बनती है यह आइसक्रीम

फ्रॉस्ट एंड सुलिवन में काम करने वाले भोजन विश्लेषक कौशिक शंकर कहते हैं कि अन्य प्रोटीनों में उस तरह के गुण नहीं होते जो स्वाद पैदा कर सकें. इसलिए खरीदनेवाले उनके लिए ज्यादा उत्साहित नहीं होते.

अब फ्राउनहोफर इंस्टिट्यूट का एक हिस्सा आइसक्रीम बनाने वाले विशेषज्ञों से भरा है. वहां की लैब में एक आइसक्रीम पार्लर बनाया गया है. यह दिखने में सामान्य आइसक्रीम पार्लर जैसा नहीं है. यहां स्टील के बड़ी सी मशीनें लगी हैं. जब वैज्ञानिकों को लुपिन के बीज मिलते हैं तो वे उन्हें टुकड़े टुकड़े किया जाता है. फिर उन्हें एक मशीन में डालकर उनका लुपिन प्रोटीन निकाला जाता है. यह प्रोटीन आइसक्रीम में दूध की जगह लेता है. उसके बाद चेरी, अखरोट, चॉकलेट, स्ट्रॉबरी और वनीला जैसे फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं.

तस्वीर: Fraunhofer Gesellschaft

शंकर कहते हैं कि जिसे भी इस बिना दूध की आइसक्रीम के अधिकार मिलेंगे, उसकी तो चांदी हो जाएगी. उनका अनुमान है कि यूरोप में बिना दूध की आइसक्रीम का बाजार 50 करोड़ यूरो तक बढ़ सकता है.

कैसा है स्वाद

यूरोप में लैक्टोस को लेकर लोगों की परेशानी ऐतिहासिक है. लेकिन अब एशिया और अफ्रीका से भी बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं और लैक्टोस को सहन न कर पाने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि एशिया और अफ्रीका में लैक्टोस से परेशानी बहुत आम बात है. इसके अलावा लुपिन आइसक्रीम उन लोगों को भी पसंद आएगी जो दूध नहीं पीते.

लेकिन असली बात तो स्वाद है. अगर लुपिनेसे का स्वाद सामान्य आइसक्रीम से कमतर हुआ तो कौन उसे खाएगा. फ्राउनहोफेर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने डॉयचेवेले रिपोर्टर को आइसक्रीम का स्वाद चखाया. स्ट्रॉबरी और वनीला-चेरी आइसक्रीम चखने के बाद रिपोर्टर के मुंह से निकला, वाह ये तो बिल्कुल असली आइसक्रीम जैसी है.

म्यूनिख के बाजारों में इस आइसक्रीम का अनौपचारिक स्वाद परीक्षण किया जा चुका है और नतीजे उत्साहजनक रहे हैं. जिन लोगों ने इसे चखा, उन्हें कुछ भी असामान्य नहीं लगा. और जब उन्हें बताया गया कि यह दूध से नहीं बल्कि एक पौधे के बीजों से बनी है तो वे हैरान रह गए.

रिपोर्टः मार्क गैरीसन

संपादनः वी कुमार

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