बिना नौकरी किए घर बैठे मिलेंगे महीने के एक लाख रुपये
२७ अगस्त २०२०
जर्मनी में एक नए सोशल एक्सपेरिमेंट की तैयारी चल रही है जिसके तहत कुछ चुनिंदा लोगों को महीने के 1200 यूरो यानी लगभग एक लाख रुपये मिला करेंगे. मुफ्त की इस कमाई के लिए आवेदकों की लाइन लग गई है.
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ऑफर कमाल का है. तीन साल तक आपके बैंक अकाउंट में हर महीने 1200 यूरो डलते रहेंगे और इसके लिए उन्हें कुछ भी नहीं करना है, कोई नौकरी भी नहीं करनी. बस इतना करना है कि रिसर्च के कुछ सवालों के जवाब देने हैं कि इस पैसे का वे क्या कर रहे हैं, उसके साथ वे जी पा रहे हैं या नहीं. मुफ्त में पैसे मिल रहे हों तो कौन नहीं लेना चाहेगा? रिसर्चर इस प्रोजेक्ट के लिए सिर्फ 1500 लोगों को ढूंढ रहे थे लेकिन अब तक उन्हें 15 लाख से भी ज्यादा आवेदन मिल चुके हैं. इनमें से मात्र 120 खुशनसीब लोगों को इस प्रोजेक्ट के लिए चुना जाएगा. इस धन राशि के बदले में तीन सालों में इन लोगों को कुल सात सर्वे फॉर्म भरने होंगे. धन पर कोई टैक्स भी नहीं लगेगा. इस तरह से तीन साल में हर व्यक्ति को 43,200 यूरो यानी करीब 38 लाख रुपये मिल चुके होंगे. पूरे प्रोजेक्ट पर कुल खर्चा 52 लाख यूरो का होगा. लेकिन यह जर्मन सरकार नहीं उठा रही है, बल्कि यह काम बर्लिन स्थित एक चैरिटी संस्था कर रही है. कुल डेढ़ लाख लोग इसके लिए पैसा दान में दे रहे हैं.
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मकसद क्या है?
इस अनोखे प्रोजेक्ट के पीछे चैरिटी संस्था "माइन ग्रुंडआइनकॉमन" यानी "माय बेसिक पे" का मानना है कि अगर लोगों को जिंदगी की जरूरतें पूरे करने के लिए पैसा मिलता रहे और इसके लिए उन्हें मशक्कत ना करनी पड़े, तो वे ज्यादा खुशहाल जिंदगी बिता सकते हैं और अधिक रचनात्मक भी हो सकते हैं. इस दावे में कितनी सच्चाई है, यही जानना इस प्रोजेक्ट का मकसद है.
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकॉनॉमिक रिसर्च के युएर्गन शुप इस प्रोजेक्ट की अध्यक्षता कर रहे हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने बताया, "हम इस बात का विश्लेषण करेंगे कि जब लोग आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं, तो वे क्या करते हैं." वे देखना चाहते हैं कि क्या लोग पूरा पैसा खर्च कर देंगे या फिर इसमें से भी कुछ बचा सकेंगे. क्या वे अतिरिक्त धन राशि मिलने के कारण अपनी नौकरी छोड़ देंगे या फिर काम करना कम करेंगे? क्या वे दूसरों की मदद के लिए इस धन का इस्तेमाल करेंगे? शुप बताते हैं कि लोगों के तनाव के स्तर में फर्क को जांचने के लिए ना केवल उनसे सवाल किए जाएंगे, बल्कि उन पर कुछ मेडिकल टेस्ट भी किए जाएंगे.
दफ्तर ना जाएं, पैसा कमाएं
अब जमाना घर बैठे कमाने का आ रहा है. ऐसे पेशों की तादाद बढ़ रही है जिनमें दफ्तर जाए बिना ही काम करके अच्छा पैसा कमाया जा सकता है.
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फ्रीलांस लेखक
अब ज्यादा से ज्यादा कंपनियां लेखन के लिए नियमित लोग भर्ती करने के बजाय फ्रीलांसरों पर निर्भर कर रही हैं. फिर चाहे वह आर्टिकल लिखने हों या कहानी, किस्से या स्क्रिप्ट, फ्रीलांसिंग की मांग बढ़ रही है.
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वर्चुअल असिस्टेंट
अब ज्यादातर बिजनेस तो ऑनलाइन हो गए हैं. तो फिर असिस्टेंट भी ऑनलाइन ही चाहिए जो दफ्तर के कामकाज आदि को संभाल सके. लेकिन उसके लिए दफ्तर जाना जरूरी नहीं. बस इंटरनेट चाहिए.
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वेब डिजायनर या डेवलपर
वेब डिजायनिंग एक ऐसा पेशा बन गया है जिसके लिए किसी दफ्तर में जाने की जरूरत नहीं है. सारा काम घर बैठे किया जा सकता है, और इस काम में पैसे भी खूब मिलते हैं.
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सोशल मीडिया मैनेजर
अब हर बिजनेस को सोशल मीडिया मैनेजर चाहिए. ऐसे लोग जो फेसबुक, ट्विटर या दूसरे सोशल मीडिया अकाउंट्स मैनेज कर सकें. और यह काम घर से बड़ी आसानी से हो सकता है.
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ई-मार्केटिंग
ऑनलाइन बिजनेस की मार्केटिंग तो ऑनलाइन होती ही है, अब ज्यादातर बिजनेस मार्केटिंग ऑनलाइन होने लगी है. इसके लिए आपको ऑफिस की जरूरत ही नहीं है.
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एनिमेशन
एनिमेशन को भविष्य का माध्यम माना जाने लगा है क्योंकि अब खासकर एक्टर्स पर निर्भरता घटाने की जरूरत होगी. इसलिए एनिमेटर्स के लिए अच्छे दिन आ चुके हैं, वह भी उनके घर.
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प्रोमोशनल वीडियो मेकर
फिल्म मेकिंग की जानकारी रखने वाले लोगों का भी दफ्तर से पीछा छूट जाएगा. अब प्रोमोशनल वीडियो बनाने की मांग बढ़ रही है और उसके लिए दफ्तर जाए बिना भी काम चल सकता है.
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इस प्रोजेक्ट के समर्थकों का मानना है कि बेसिक पे मिलने से समाज में सकारात्मक सुधार देखने को मिलेंगे. लोग खुशहाल जीवन जिएंगे, एक दूसरे की मदद करेंगे. जबकि इसके विरोधी इसे कोरी कल्पना मानते हैं और उनका कहना है कि यह लोगों को और आलसी बना देगा. शुप कहते हैं, "हो सकता है कि अगर लोगों को पैसा मिलता रहे तो वे ज्यादा रिस्क लेने की हालत में हों. उन्हें नौकरी छोड़ कर कोई नया काम शुरू करने से डर ना लगे."
वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि तीन साल का समय इस तरह के सवालों के सही और सटीक जवाब खोजने के लिए काफी नहीं है. शुप खुद भी इस बात को मानते हैं लेकिन उनका कहना है कि उनके लिए सबसे अहम यह समझना है कि पैसा कैसे लोगों के रवैये को बदलता है, "इस सवाल पर आज तक कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुआ है." साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी है कि अगर भविष्य में इसे लागू किया भी गया, तो सरकार इसके लिए अलग से बजट कैसे तय करेगी.
कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कई व्यवसायों को ठप्प कर दिया है. सीमाओं को बंद कर दिया गया है, लोगों की आवाजाही को रोक दिया गया है. सबसे ज्यादा असर पर्यटन और मनोरंजन उद्योग को हुआ है.
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ट्रेवल एजेंसी
जर्मनी की ट्रेवल एजेंसियां अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. कोरोना की वजह से पर्यटन उद्योग को खासा नुकसान हुआ है. जर्मनी आने जाने दोनों पर रोक है. ट्रेवल एजेंसियों को ग्राहकों को कैंसिल की गई छुट्टियों का पैसा वापस करना पड़ रहा है. अभी तो कोई कमाई नहीं ही हो रही है, पुरानी कमाई भी वापस करनी पड़ रही है.
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एयरपोर्ट
कोरोना पर काबू पाने के लिए हवाई यातायात को रोक दिया गया है. उसका असर जर्मनी के भी हवाई अड्डों पर पड़ा है. कोलोन-बॉन हवाई अड्डा जर्मनी के बड़े हवाई अड्डों में शामिल है. यहां से साल में 1.3 करोड़ लोग दुनिया के 130 ठिकानों के लिए हवाई यात्रा करते हैं. इस समय ये सूना पड़ा है.
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विमान सेवा
पहले तो विमान सेवाओं ने कोरोना के कारण यात्रियों की घटती संख्या के कारण अपनी उड़ानें घटानी शुरू की, फिर जब कई देशों ने बाहर से आने वाले यात्रियों पर पाबंदियां लगानी शुरू की तो उन्हें अपनी सेवाएं पूरी तरह ही बंद कर देनी पड़ी. जर्मनी विमान कंपनी लुफ्तहंसा ने इस समय 90 फीसदी विमान पार्क कर रखा है.
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पायलट
विमान नहीं उड़ेंगे, तो पायलट क्या करेंगे. वे इस समय बेकार पड़े हैं. दुनिया की प्रमुख विमान सेवाओं ने अपनी सेवाएं रोक दी हैं और लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं. पायलट इस समय उन्हीं विमानों को उड़ा रहे हैं जो दूसरे देशों में फंसे यात्रियों को वापस लाने के लिए हैं.
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एयर हॉस्टेस
पायलट जैसा ही हाल एयर हॉस्टेसों का भी है. उनके लिए भी इस समय कोई काम नहीं है. और परेशान करने वाली बात ये भी है कि उन्हें पता नहीमं कि वे कब काम शुरू कर पाएंगी. कोई धंधा न होने के कारण बहुत सी विमान कंपनियों के सामने दिवालिया हो जाने की भी खतरा है. कर्मचारी डर के साए में जी रहे हैं.
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एयरपोर्ट कर्मचारी
एयरपोर्ट कर्मचारी भी हवाई यातायात रुकने के कारण परेशान हैं. कोलोन का उदाहरण लें तो 1.3 करोड़ यात्रियों को हवाई अड्डे पर विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बहुत से लोगों की जरूरत होती है. कोलोन एयरपोर्ट पर 130 कंपनियों और सरकारी संस्थानों के 15,000 लोग काम करते हैं.
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होटल
कोरोना से होटल उद्योग को भारी नुकसान हुआ है. 2001 या 2008 के पिछले वित्तीय संकट के दौरान 25 प्रतिशत का नुकसान हुआ था तो इस बार तो वायरस की वजह से होटल पूरी तरह खाली हैं. कुछ होटल चेन ने होम ऑफिस की वजह से घर में परेशान रहने वालों को होटल में आकर काम करने का ऑफर दिया है.
होटल कर्मचारी
होटल खाली रहेंगे तो होटल कर्मचारियों के पास भी कोई काम नहीं रहेगा. मालिकों की मुश्किल है कि आमदनी न हो तो होटल को चलाने का, कर्मचारियों को वेतन देने का खर्च कैसे उठाएं. होटल और रेस्तरां उद्योग सालाना 90 अरब यूरो का कारोबार करता है, लेकिन इस समय पूरा कारोबार ठप्प पड़ा है.
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मेकैनिक
लॉकडाउन में कहीं ऐसा काम नहीं हो रहा है जो सामान्य जनजीनम को चलाने के लिए एकदम जरूरी न हो. जर्मनी की प्रसिद्ध कार बनाने वाली कंपनियों ने भी अपना उत्पादन रोक रखा है. जितने कम कर्मचारी दफ्तर या कारखाने आएंगे उतनी ही ज्यादा सोशल डिस्टैंसिंग होगी.
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कारीगर
घर बनाने से लेकर घरों में बिजली और सैनिटरी फिटिंग और मरम्मत के लिए पेशेवर कारीगरों की जरूरत होती है. लॉकडाउन की वजह से सारा काम ठप्प पड़ा है. ग्राहक नहीं आ रहे. हालांकि छोटे उद्यमों और एकल कारीगरों को सरकार 15,000 यूरो की मदद देगी, लेकिन उनके अस्तित्व पर संकट फिर भी है.
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सिनेमा हॉल
कोरोना की वजह से हर उस जगह को बंद कर दिया गया है जहां लोगों के इकट्ठा होने की संभावना होती है. सिनेमा हॉल भी बंद हैं. नहीं भी बंद किए जाते तो इस बीच बंद हो जाते क्योंकि लोग अपने घरों में बंद हैं. जर्मनी में 700 सिनेमाघरों में करीब 4000 पर्दे हैं. बंदी की वजह से उन्हें हर हफ्ते 1.7 करोड़ यूरो का घाटा हो रहा है.
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फिल्म की शूटिंग
कोरोना वायरस के खतरे को रोकने के लिए फिल्मों की शूटिंग भी रद्द है. पहले तो स्थानीय निकायों ने शूटिंग की अनुमति वापस ले ली. कुठ जगहों पर निजी घरों में शूटिंग हुई. लेकिन बाद में मामला गंभीर होने लगा और वायरस के तेजी से फैलने के मामले सामने आने लगे तो शूटिंगें रोक दी गईं.
तस्वीर: picture-alliance
थिएटर
जर्मनी में कोरोना के चलते थिएटर भी बंद पड़े हैं, कम से कम 19 अप्रैल तक. यूरोप के थिएटर भी बंद हैं. थिएटरों के प्रबंधक यह हिसाब करने में लगे हैं कि नुकसान की भरपाई कैसे होगी. बर्लिन के शाउब्यूनेथिएटर के टोबियास फाइट के अनुसार इस अवधि में नुकसान करीब 5 लाख यूरो का है.
तस्वीर: picture-alliance/RelaXimages
ऑर्केस्ट्रा
थिएटर बंद हैं तो ऑर्केस्ट्रा के प्रदर्शन भी बंद हैं. इसका असर कलाकारों की आमदनी पर भी पड़ रहा है. ऑर्केस्ट्रा में काम करने वाले बहुत से आर्टिस्ट छोटे छोटे अनुबंधों से बंधे होते हैं. नए अनुबंध नहीं होंगे तो आमदनी भी नहीं होगी. उनमें से बहुत लोगों पर भी बेरोजगारी का खतरा मंडरा रहा है.
तस्वीर: Barbara Frommann
कॉफी हाउस
कोरोना की वजह से कॉफी हाउस भी बंद हैं. सारे देश में लॉकडाउन की स्थिति है तो कोई बाहर निकल भी नहीं रहा. मौसम इन दिनों अपेक्षाकृत बहुत ही अच्छा है. साधारण सी ठंड और चमचमाती धूप, लेकिन बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं. आफत है कॉफी हाउस चलाने वालों की.
तस्वीर: Imago Images/Lichtgut/M. Kovalenko
बार
होटलों और रेस्तरां की तरह जर्मनी में बार भी बंद हैं. बार चलाने की अनुमति नहीं है लेकिन होम सप्लाई हो सकती है. बहुत से लोगों ने इसका फायदा उठाया है. वे ड्रिंक ग्राहकों के घरों में पहुंचा रहे हैं. ऑर्डर कीजिए और डिलीवरी लीजिए. लेकिन ये कमाई किराये और बिजली जैसे खर्चों को पूरा करने के ले काफी नहीं है.
कोरोना की बंदी का असर किताब की दुकानों पर भी पड़ा है. हालांकि वे उन दुकानों में हैं जो बंदी के दौरान खुली रह सकती हैं, लेकिन छोटी दुकानें ग्राहकों की भीड़ का सामना नहीं कर सकतीं. वे तकनीक का सहारा ले रही हैं. दुकान की लाइव स्ट्रीमिंग और कूरियर के जरिए किताबों को ग्राहक तक पहुंचाना.
तस्वीर: picture-alliance/K. Kleist-Heinrich
जिम
जर्मनी में कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए जिम और फिटनेस स्टूडियो को भी बंद कर दिया गया. खेलकूद और व्यायाम के दूसरे सार्वजनिक साधन या संस्थान भी बंद हैं. स्वीमिंग पूल और खेल के मैदान भी काम नहीं कर रहे हैं, जहां आम तौर पर फुटबॉल जैसे खेल खेले जाते हैं या जॉगिंग की जाती है.
तस्वीर: Colourbox
सैलून
बाल काटने छांटने या रंगने का काम भी दूरी से नहीं हो सकती. वायरस को रोकने के लिए सरकार की सोशल डिसटेंसिंग की कोशिशों के बीच सैलून चलाना तो अत्यंत मुश्किल हो गया था. सरकार से पहले सैलून के मालिक ही कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए दुकान बंद किए जाने की वकालत कर रहे थे.
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
ऑटो वर्कशॉप
जर्मनी में कार खराब होने पर लोग वर्कशॉप में जा सकते हैं लेकिन पुर्जे खरीदने कार की दुकान में नहीं जा सकते. सरकार का यही फैसला है. मुश्किल कार की दुकानों में काम करने वाले वर्कशॉपों की है. वे गाड़ियां ठीक तो कर सकते हैं लेकिन ग्राहकों को कोई स्पेयर पार्ट बेच नहीं सकते.