सबसे संकरी जगह पर भी जिब्राल्टर की खाड़ी करीब 14 किलोमीटर चौड़ी है. वहां से समंदर पार करना आसान नहीं, लेकिन प्रवासी पंछी ऐसा बड़े आराम से कर जाते हैं. उनके इस गुण से वैज्ञानिक भी हैरान हैं.
विज्ञापन
दक्षिणी स्पेन के तट पर गर्मियों के आखिरी दिन. अगस्त के आखिर में यहां लाखों प्रवासी पंछी पहुंचते हैं, अपनी अगली लंबी यात्रा की एक बड़ी चुनौती के लिए. उड़ान के बादशाह कहे जाने वाले शिकारी परिंदे चील भी यहां पहुंचते हैं. लेकिन जिब्राल्टर की खाड़ी सबके सामने एक बड़ी चुनौती पेश करती है. पंछी समुद्र के ऊपर बहने वाली थर्मोविंड का भी सहारा नहीं ले सकते. इतनी चुनौतियों के बावजूद ये परिंदे जिब्राल्टर की खाड़ी कैसे पार कर जाते हैं? यह बात सालों से वैज्ञानिकों को भी परेशान करती रही है. अब वे आधुनिक मशीनों के सहारे ये जानना चाहते हैं कि पक्षियों की इस क्षमता का राज क्या है. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के वैज्ञानिक अपनी टीम के साथ चीलों के व्यवहार को समझने के लिए इलाके में पहुंचे हैं. खतरनाक हवा के बावजूद आखिर चील कैसे समंदर पार करते हैं. हवा पूरब की तरफ से आ रही है और वह परिंदों को वापस तट पर फेंक देती है.
अब तक वैज्ञानिक खाड़ी पार करने की उनकी खतरनाक उड़ान को लेकर अंदाजा भर लगा सकते हैं. लेकिन वे पंछियों की दुनिया के ऐसे राज सुलझाना चाहते हैं. और फिर वैज्ञानिकों के लिए रोमांच की शुरुआत होती है. अपने मिशन के लिए डेविड सांतोस को ढेर सारे चील चाहिए. उनके लिए चुनौती है चीलों को लुभाना और उनपर बहुत छोटी जीपीएस मशीनें लगाना. डाटा की मदद से शायद वैज्ञानिकों को उन सवालों के जवाब मिलेंगे जो वे खोज रहे हैं.
अब तक टीम के पिंजरे में छह परिंदे आए हैं, इनके साथ ही एक एक बड़े शोध की शुरुआत होती है. किसी पीट्ठू बैग की तरह वैज्ञानिक पक्षियों की पीठ पर ट्रांसमीटर लगा देते हैं. यह उड़ान की जानकारी देगा. डाटा सीधे वैज्ञानिकों के मोबाइल फोन पर आएगा. वैज्ञानिक हर वक्त जान पाएंगे कि पक्षी क्या कर रहा है, कहां उड़ रहा है. पंछी विज्ञानी डेविड सांतोस मशीन के बारे में समझाते हैं, "यह खास किस्म की लॉग मशीन है. यह इस सेलफोन नेटवर्क जीएसएम के जरिये ट्रांसमिट होती है. इसके अंदर एक सिमकार्ड है. इसमें जीपीएस और एक्सेलेरोमीटर है जो पंछी की उड़ान और उसके व्यवहार की जानकारी दर्ज करता है."
ड्रोनों को निपटाने के लिए ईगल ब्रिगेड
250 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से गोता लगाता गरुड़ अच्छे खासे ड्रोन को क्रैश कर देता है. फ्रांस की सेना अब इन परिदों को ट्रेनिंग दे रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
दक्षिणी फ्रांस के एक सैन्य ठिकाने में चार गोल्डन ईगल्स के पहले बैच को ट्रेनिंग दी जा रही है. युवा परिदों को हर दिन कई घंटे अभ्यास कराया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
ट्रेनिंग सेंटर में गरुड़ों को मुर्गी के चूजे खुराक के तौर पर दिये जाते हैं. ट्रेनर अलग अलग किस्म के ड्रोनों में मांस के टुकड़े भी बांधते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
सेना के मुताबिक गोल्डन ईगल्स को छह महीने तक ट्रेनिंग दी जाएगी. सेना के मुताबिक ड्रोनों की बढ़ती संख्या से सुरक्षा को खतरा पहुंच रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
ताकतवर गरुड़ उड़ान और शिकार में माहिर होते हैं. प्राकृतिक स्वभाव के चलते वो ड्रोन को घुसपैठिये की तरह देखते हैं और हवा में ही मशीन पर झपट पड़ते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
गरुड़ का हमला ड्रोन का संतुलन बिगाड़ देता है. और संतुलन बिगड़ते ही ड्रोन सीधा जमीन पर क्रैश होता है. इससे गरुड़ को भी चोट लगने का खतरा कम हो जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
गोल्डन ईगल अपने शिकार को दबोचने के लिए 250 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से गोता लगा सकते हैं. ये परिंदे दो किलोमीटर दूर से अपना शिकार आराम से चुन लेते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
हाल के समय में आतंकवादी भी ड्रोनों का इस्तेमाल करने लगे हैं. ड्रोनों की मदद से जासूसी और हमले भी किये जाने लगे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
ट्रेनिंग के नतीजों से फ्रांसीसी सेना काफी खुश है. अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही इन परिदों को स्टेडियमों, राजनीतिक सम्मेलनों और एयरपोर्टों में तैनात किया जा सकेगा. नीदरलैंड्स में भी ड्रोनों से निपटने के लिए इन परिदों की मदद ली जा रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Gobet
8 तस्वीरें1 | 8
अगली सुबह. वैज्ञानिक एक बार फिर सब चीजें चेक कर रहे हैं. उन्हें आज ज्यादा से ज्यादा परिंदे पकड़ने होंगे. जैसे ही हवा कुछ धीमी होगी, परिंदे उड़ान पर निकल लेंगे. समय के साथ रेस शुरू हो चुकी है. एक हफ्ते बाद ही प्रवासी पक्षियों की उड़ान का मुख्य सीजन है, उससे पहले सारी तैयारियां पूरी करनी होंगी. वैज्ञानिक ताजा चारे का लालच देते हैं, पिंजरा भी तैयार है. एक घंटा बीतने तक कोई पक्षी नहीं आता. फिर सब कुछ बड़ी तेजी से होता है. कुछ ही समय में पक्षियों का झुंड आता है और पिंजरा अचानक भर जाता है. अब कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.
दूर बने कैंप से वैज्ञानिक पिंजरे को रिमोट कंट्रोल के जरिये बंद कर देते हैं. चीलों को इसकी भनक भी नहीं लगती. इस बार काफी पंछी पकड़े गए हैं. अब उन सब पर ट्रांसमीटर लगाए जाते हैं. और फिर आती है निर्णायक घड़ी. हवा बहने लगी है. उड़ान भरने के लिए यह आदर्श वक्त है. पंछी विज्ञानी अपने कैंप में बैठे हैं. ऑब्जरवेशन सेंटर में बैठे इन वैज्ञानिकों की नजर जिब्राल्टर की खाड़ी पर है. कभी भी उड़ान शुरू हो सकती है.
मौसम थोड़ा गर्म हो चुका है और इसी दौरान हजारों परिंदे दूसरे महाद्वीप तक पहुंचने के लिए अपने पंख फड़फड़ाते हैं. गर्म जमीन के चलते उठने वाली गर्म हवा, थर्मोविंड के ऊपर जाते ही पंछी काफी ऊंचाई तक चले जाते हैं. सबसे पहले मिले डाटा से ही साफ हो चुका है कि चील ऊर्जा बचाने वाली खास रणनीति अपनाते हैं. जमीन के ऊपर होने पर भी वे 1,200 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं.
इतना ऊपर जाने के बाद वो बिना पंख फड़फड़ाये धीरे धीरे समंदर के ऊपर हवा में तैरते हुए आगे बढ़ते हैं. लेकिन 14 किलोमीटर की ऐसी उड़ान भरने से पहले उन्हें तय करना होता है कि धरती पर कितना ऊपर जाकर उन्हें उड़ान शुरू करनी चाहिए. और ऐसा वो बड़े सटीक ढंग से करते हैं. ऐसा करते हुए वे स्पेन से आराम से हजारों किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका तक की सफल उड़ान भरते हैं.
कोई सरहद ना इन्हें रोके...
इंजन वाले विमान के लिए भी 14,000 किलोमीटर की उड़ान भरना कठिन चुनौती है. मगर पानी के ये पक्षी कितने ही महासागरों और महाद्वीपों को पार कर जाते हैं वो भी बिना किसी जेट इंजन की मदद के.
तस्वीर: AP Photo/David Guttenfelder on assignment for National Geographic Magazine
अफसर पक्षी
सारस परिवार के ये पक्षी किसी सैनिक अधिकारी जैसी अपनी चाल ढाल के कारण ही अफसर कहलाते हैं. दुर्भाग्य से इन अफसरों के पास अब कोई जमीन नहीं बची है. दुर्लभ हो चुके इन पक्षियों की केवल दो ब्रीडिंग कॉलोनियां भारत और कंबोडिया में पाई जाती हैं. इसके अलावा साल भर ये दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में घूमते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लंबी दूरी के चैंपियन
आर्कटिक तटों के किनारे प्रजनन करने वाले ये बगुले की किस्म वाले पक्षी जाड़ों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड चले जाते हैं. 2007 में ऐसे एक पक्षी को टैग कर उस पर नजर रखी गई. वह पक्षी लगातार नौ दिनों तक उड़ते हुए 11,600 किलोमीटर की दूसरी तय कर पश्चिमी अलास्का से न्यूजीलैंड पहुंचा था, जो कि सभी जीव जन्तुओं में एक रिकॉर्ड है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/McPHOTO
'दि बर्ड'
60 के दशक में आई हिचकॉक की मशहूर फिल्म 'दि बर्ड' जिस बर्ड पर आधारित थी वह यही है. पानी के बिल्कुल साथ साथ उड़ने वाले ये पक्षी वसंत ऋतु में प्रशांत और अटलांटिक सागर पार करते हुए ऊपर जाते हैं और पतझड़ में नीचे की ओर आते हुए करीब 14,000 किलोमीटर की दूसरी तय कर लेते हैं. ये 60 मीटर ऊपर से पानी में डाइव भी लगा सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Wothe
स्नो बर्ड
आर्कटिक टर्न्स ने ठंड से निपटने की बहुत अच्छी तरकीब निकाली है. ये उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक की गर्मियों में प्रजनन करती हैं और फिर 80,000 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा कर दूसरे छोर अंटार्कटिक की गर्मियों का आनंद लेने पहुंच जाती हैं. इस तरह वे हर बार जाड़ों से बच जाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Bäsemann
पवित्र चिड़िया
गंभीर संकट में पड़ चुकी यह नॉर्दर्न बॉल्ड आइबिस अब केवल दक्षिणी मोरक्को में ही पाई जाती है. पहले यह यूरोप, अफ्रीका और मध्यपूर्व तक में आप्रवासन किया करती थी. प्राचीन मिस्र में इसे पूज्य माना जाता था और नोआह की नाव में भी इसे रखे जाने की मान्यता है. कहते हैं कि तुर्की हजयात्री इसे देखते हुए मक्का तक पहुंच जाया करते थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Unsöld
कॉमनर क्रेन
यह क्रेन पक्षी उत्तरी यूरोप और एशिया के कई इलाकों में दिखता है. प्रजनन के लिए यह दलदली इलाकों में चली जाती है और जाड़ों में उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका, इस्राएल और ईरान तक पहुंच जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Büttner
दुखद अंत
इन बत्तखों ने उत्तरी अफ्रीका से भूमध्यसागर के ऊपर से होते हुए अल्बेनिया तक की दूरी तय कर ली थी लेकिन पहुंचते ही शिकारियों की गोली की शिकार बन गईं. हर साल शिकारी भोजन, पैसे या केवल मजे के लिए यहां लाखों प्रवासी पक्षियों को मार गिराते हैं.
तस्वीर: AP Photo/David Guttenfelder on assignment for National Geographic Magazine