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बिना रॉकेट अंतरिक्ष पहुंचेगा इंसान

२९ नवम्बर २०१२

भविष्य में अंतरिक्ष में जाने के लिए रॉकेट की जरूरत नहीं पड़ेगी. ब्रिटेन की एक छोटी कंपनी ने ऐसा इंजन तैयार किया है जो वायुमंडल में जेट और अंतरिक्ष में रॉकेट का काम करेगा. कंपनी को यूरोपीय स्पेस एजेंसी से प्रस्ताव मिला.

तस्वीर: AP

अंतरिक्ष यान को दोबारा इस्तेमाल करने की कोशिश करते करते ब्रिटिश कंपनी रिएक्शन इंजन लिमिटेड ने यह नायाब तकनीक विकसित कर ली. कंपनी ने खास हीट एक्सचेंजर वाला इंजन बना लिया. इसे सेबर इंजन नाम दिया गया है. कंपनी को कामयाबी उस वक्त भी मिली जब यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने उससे संपर्क किया. बुधवार को ईएसए के प्रोपल्सन इंजीनियरिंग के प्रमुख मार्क फोर्ड ने कहा कि सेबर इंजन के टेस्ट नतीजों को देखने के बाद हम उनकी तकनीक से संतुष्ट हैं. फोर्ड ने कहा, "यानों को दोबारा इस्तेमाल करने की राह से एक बड़ी बाधा दूर हो चुकी है. यह रास्ता हमें जेट की उम्र से कहीं आगे ले जाएगा."

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में यान अटलांटिसतस्वीर: AP

सेबर इंजन की मदद से धरती की कोई भी दूरी सिर्फ चार घंटे में तय की जा सकेगी. तकनीक का इस्तेमाल व्यावसायिक विमानों में किया जा सकेगा. नए इंजन से विमान ज्यादा रफ्तार से उड़ सकेंगे और पांच से 10 फीसदी तेल भी बचेगा.

कंपनी ने हाई स्पीड इंजन को एक सेकेंड से भी कम समय में अथाह ठंडा करने की तकनीक खोज ली है. तकनीक को पूरी तरह गोपनीय रखने की कोशिश की जा रही है. सिर्फ इतना बताया गया है कि इसके भीतर 1,000 डिग्री सेंटीग्रेड के तामपान को एक सेकेंड के 100 हिस्से में माइनस 150 डिग्री तक ठंडा किया जा सकता है. वह भी बिना बर्फ जमाए.

अब तक जेट इंजन की अधिकतम रफ्तार ध्वनि से ढाई गुना ज्यादा है. ध्वनि की रफ्तार 1,225 किलोमीटर प्रति घंटा है. इतनी रफ्तार पर इंजन इतने गर्म हो जाते हैं कि उनके भीतर की ब्लेडें पिघलने का खतरा रहता है. ईएसए को लगता है कि रिएक्शन इंजन की तकनीक से जेट इंजन की इस समस्या को हल किया जा सकता है और रफ्तार भी दोगुनी की जा सकती है.

नए इंजन पर व्यावसायिक विमानों की भी नजरतस्वीर: picture-alliance/dpa

अब तक इंजीनियर यह तोड़ नहीं निकाल पाए थे कि इंजन में जाने वाली हवा को फौरन ठंडा कैसे किया जाए. इस राह में चुनौती यह भी थी कि अगर हवा तुरंत ठंडी हो गई तो हीट एक्सचेंजर पर बर्फ जम जाएगी और यह बंद हो जाएगा. ऐसा होने पर परिणाम घातक होंगे. सेबर इंजन ने इसी मुश्किल से पार पाया है. रोल्स रॉयस के सैन्य इंजन विभाग में काम कर चुके रिएक्शन इंजन के चीफ डिजाइनर रिचर्ड वारविल कहते हैं, "हम आपको यह नहीं बताएंगे कि हमने ऐसा कैसे किया."

गोपनीयता का आलम यह है कि ब्रिटिश कंपनी ने अपनी हीट एक्सचेंज टेक्नोलॉजी का पेटेंट भी नहीं कराया है. पेटेंट कराने में यह ब्योरा देना होगा कि यह सेबर इंजन अलग कैसे है और किस आधार पर काम करता है. सूचना लीक होने के डर से कंपनी पेटेंट दफ्तर भी नहीं गई.

सेबर इंजन विमान को ध्वनि की गति से पांच गुनी ज्यादा रफ्तार पर उड़ा सकते हैं. विमान 25 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ सकता है. यह अंतरिक्ष यात्रा का 20 फीसदी सफर है. इसके बाद सेबर इंजन रॉकेट मोड में आ जाएंगे और बाकी का 80 फीसदी सफर पूरा करेंगे.

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इस इंजन को विकसित करने में 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्चा आएगा. ईएसए व अन्य फाइनेंसरों की मदद से कंपनी पैसे जुटाएगी और तीन साल के भीतर इंजन बनाएगी. फिलहाल अमेरिकी वायु सेना के पास स्क्रैमजेट इंजन तकनीक है. लेकिन इसमें कुछ खामियां हैं. रॉकेट या जेट इंजन के जरिए उच्च रफ्तार हासिल करने के बाद ही स्क्रैमजेट स्टार्ट हो सकता है. सेबर तकनीक ऐसी नहीं है, इस इंजन को कभी भी स्टार्ट और बंद किया जा सकता है. 7,300 किमी प्रति घंटा की गति हासिल करने वाले स्क्रैमजेट इंजनों को नियंत्रित करने की तकनीक भी फिलहाल नहीं मिली है, जबकि सेबर इंजन हर समय नियंत्रण में रहते हैं.

सेबर इंजन के प्रयोग सफल रहे तो इंजीनियरिंग के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा. पहली बार इंसान अंतरिक्ष में जाने के लिए सामान्य जेट इंजनों का इस्तेमाल करेगा. उसे मल्टी स्टेज रॉकेटों की जरूरत नहीं पड़ेगी.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी (रॉयटर्स)

संपादन: अनवर जे अशरफ

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