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बिन लादेन के रहस्य में उलझा जर्मन मीडिया

१४ मई २०११

ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में मार गिराए जाने की खबर अब भी जर्मन मीडिया में छाई हुई है. ज्यादातर अखबारों ने पाकिस्तान के रोल और उसके साथ अमेरिकी रिश्तों के नए मोड़ पर अपनी राय छापी है.

Verschiedene Tageszeitungen machen am Dienstag (03.05.11) in Berlin mit dem Tod des Terroristen Osama bin Laden auf. Selten loeste ein Einzelereignis ein solches Medienecho aus, wie die Toetung von Al-Kaida-Chef Osama bin Laden durch US-Soldaten in Pakistan. Kaum eine deutsche Zeitung, die am Dienstag ueber den verhassten Terroristen und seinen Tod nicht auf mehreren Seiten und ressortuebergreifend berichtete. Die Titelseiten gehoerten dem Mann ohnehin, der zur Symbolfigur des islamistischen Terrors wurde. (zu dapd-Text) Foto: Clemens Bilan/dapd
जर्मन मीडिया में छपी खबरेंतस्वीर: dapd

इस बार पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी कमांडो की कार्रवाई में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया जाना. कैसे वह पाक सेना की नाक के नीचे इतने सालों तक छिपा रहा. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इन अटकलों का खंडन किया है कि सरकार के तबकों को ओसामा के बारे में जानकारी थी. संसद में बोलते हुए उन्होंने सेना व आईएसआई में अपना विश्वास व्यक्त किया. इस पर अखबार नॉय त्स्युरषर त्साइटुंग की टिप्पणी:

गिलानी के शब्दों से शक होता है कि विडंबना से भरी पृष्ठभूमि की लीपापोती की कोशिश की जाएगी. हो सकता है कि देश के राजनीतिक नेतृत्व को सचमुच कुछ पता नहीं था. सरकार बेहद कमजोर है और देश में लगाम सेना के हाथों में है. उसके पास सुरक्षा सेवाओं का एक व्यापक और कुशल जाल है और जो भी पाकिस्तान में रहा है, उसके लिए यह मानना मुश्किल है कि सेना को पता ही नहीं था कि उसकी सबसे बड़ी सैन्य अकादमी के दरवाजे पर ही बिन लादेन रह रहा है. नाम न बताने की शर्त पर इस्लामाबाद के एक पत्रकार का कहना है, "पहेली यह नहीं है कि आईएसआई को पता था या नहीं, बल्कि यह कि उनकी जानकारी के बिना अमेरिकियों ने कैसे लादेन का पता लगा लिया."

पाकिस्तान की सरकारी जुबान में कहा जा रहा है: न तो सेना, और न ही आईएसआई को बिन लादेन को मार गिराने की योजना के बारे में पता था. म्युनिख से प्रकाशित समाचार पत्र जुएडडॉएचे त्साइटुंग का कहना है कि इस अभियान को महज एक अमेरिकी अभियान का दर्जा दिया जाना था. अखबार में कहा गया है:

तस्वीर: AP

आखिर इस मुस्लिम देश में अमेरिकी सरकार से नफरत है. इसके विपरीत बहुतेरे लोगों के लिए बिन लादेन एक शहीद हैं, इस्लाम की खातिर लड़ते हुए जिन्होंने अपनी जान दी है. एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि सेना और खुफिया सेवा चरमपंथियों के बदले का निशाना बनने के बजाय नालायक कहलाना पसंद करेगी. उन्हें पूरा विश्वास है कि बेशक सेना और आईएसआई को सब कुछ पता था और उन्होंने अमेरिकियों को अपना अभियान पूरा करने दिया.

जुएडडॉएचे त्साइटुंग में ही एक दूसरे लेख में कहा गया है कि ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अब पाकिस्तान के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं : अफगानिस्तान में स्थायित्व, अमेरिका के साथ संबंधों में बेहतरी, और भारत के साथ भी. आगे कहा गया है:

अफगानिस्तान में तालिबान के भूमिगत युद्ध पर बिन लादेन की मौत का कम से कम तुरंत कोई खास असर नहीं पड़ेगा. इस युद्ध के आधार अलग हैं, यह अफगानिस्तान के अलग अलग कबीलों के बीच आपसी रिश्तों के आधार पर और देश में अमेरिकी सेना की भारी उपस्थिति के विरोध में चलाया जा रहा है. लेकिन पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध अब काफी जटिल होने जा रहे हैं. अविश्वास की खाई अब कहीं अधिक गहरी हो चुकी है.

तस्वीर: AP

पाकिस्तान में सीआईए की शाखा के नए प्रधान का नाम जाहिर कर दिया गया. इसे बिन लादेन पर अमेरिकी कमांडो के हमले के खिलाफ बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है. नॉय त्स्युरषर त्साइटुंग का भी यही मानना है. एक लेख में कहा गया:

हालांकि गिलानी की ओर से अमेरिका की आलोचना, पाकिस्तान की संप्रभुता के उल्लंघन पर विरोध घरेलू राजनीति की वजह से है, इसका मकसद अपनी सुरक्षा सेवा की शर्म को ढकना है. लेकिन सार्वजनिक प्रतिक्रिया के साथ साथ पर्दे के पीछे तीखा बदला भी लिया गया. अमेरिकी सूत्रों के अनुसार आईएसआई ने देश के मीडिया के कुछ हिस्से में पाकिस्तान में सीआईए के प्रधान के परिचय का भंडाफोड़ कर दिया और इस प्रकार उनकी अंडरकवर हिफाजत नहीं रह गई.

और अल कायदा में नई पीढ़ी का नेतृत्व. बर्लिन से प्रकाशित समाचार पत्र वेल्ट आम जोनटाग में कहा गया है कि उत्तरी वजिरीस्तान में अल कायदा के नेताओं की एक युवा पीढ़ी इंतजार कर रही है कि पुराने लोगों को हटाकर और संगठन को चुस्त दुरुस्त बनाते हुए नेतृत्व अपने हाथों में लिया जाए. समाचार पत्र में कहा गया है:

यहां अल कायदा के नेतृत्व की ओर से बिन लादेन के उत्तराधिकारी को चुना जायगा. कोई भी उत्तराधिकारी हो, उसे एक आतंकी नेटवर्क की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेनी होगी, जिसके अनेक कमांडर, लड़ाके और प्रशिक्षक पिछले सालों के दौरान अमेरिकी ड्रोन हमलों में मारे गए हैं. अब वजीरिस्तान में चंद प्रशिक्षण शिविर रह गए हैं, और स्थानीय व विदेशी इस्लामपंथियों की भर्ती व उन्हें हथियारों के इस्तेमाल और बम बनाने की ट्रेनिंग देना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. लेकिन पिछले सालों के दौरान हमलों की जिन योजनाओं का पर्दाफाश हुआ है या जिन्हें नाकाम कर दिया गया है, उन सबकी योजना उत्तरी वजीरिस्तान में ही बनी थी. वहां योजना बनाने वाले बैठे हैं और अक्सर पश्चिमी देशों के इस्लामपंथियों को भी आतंकवादी हमलों की ट्रेनिंग देने के लिए भर्ती किया जाता है.

संकलनः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए कुमार

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