कहते हैं बिल्लियों को नौ बार जिंदगी मिलती है लेकिन असलियत में अक्सर गुर्दों की बीमारी इनकी मौत का कारण बनती है. जापान में इस बीमारी का इलाज खोज निकालने के लिए बिल्ली प्रेमियों ने चंदे में लगभग 20 लाख डॉलर जुटा लिए हैं.
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टोक्यो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक पहले से बिल्लियों को गुर्दों की बीमारी से बचाने के तरीकों पर शोध कर रहे थे, लेकिन कोरोनावायरस महामारी के आने के बाद से इस शोध के लिए कॉर्पोरेट जगत से मिल रही फंडिंग बंद हो गई.
समाचार एजेंसी जिजि प्रेस ने जब इन शोधकर्ताओं की समस्या पर एक लेख छापा, तो वो वायरल हो गया. उस लेख की बदौलत बिल्ली प्रेमियों ने इस रिसर्च को जारी रखने के लिए ऑनलाइन चंदा इकठ्ठा करने की मुहिम चलाई और जल्द ही हजारों लोग इससे जुड़ गए.
क्या है ये बीमारी
20 डॉलर चंदा देने वाली एक महिला ने एक संदेश में लिखा, "मैंने पिछले साल में दिसंबर में अपनी प्यारी बिल्ली को गुर्दों की बीमारी की वजह से खो दिया...मुझे उम्मीद है कि यह रिसर्च आगे बढ़ेगी और कई बिल्लियों की इस बीमारी से मुक्त होने में सहायता करेगी."
90 डॉलर देने वाले एक व्यक्ति ने कहा,"मैं हाल ही में बिल्ली की एक बच्ची को घर ले कर आया. मैं चंदा देकर उम्मीद कर रहा हूं कि यह इलाज समय रहते मिल जाए और इस बिल्ली के भी काम आए."
पालतू बिल्लियां हों या जंगल में रहने वाले उनके बड़े भाई-बहन, इन सब पर इस बीमारी का बहुत खतरा रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इनके जींस में एक प्रक्रिया के तहत अक्सर एक जरूरी प्रोटीन सक्रिय नहीं हो पाता है.
दोगुना जी सकेंगी बिल्लियां
इस प्रोटीन की खोज भी टोक्यो के इन्हीं शोधकर्ताओं ने की थी. इसे एआईएम के नाम से जाना जाता है और यह शरीर में मरी हुई कोशिकाओं और अन्य कचरे को साफ करने में मदद करता है. इससे गुर्दे बंद होने से बचे रहते हैं.
इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर तोरु मियाजाकी और उनके टीम इस प्रोटीन को एक स्थिर मात्रा और गुणवत्ता में बनाने के तरीकों पर काम कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि वो एक ऐसा तरीका खोज पाएंगे जिसकी वजह से बिल्लियों का औसत जीवनकाल 15 सालों से बढ़कर दोगुना हो सकता है.
मियाजाकी कहते हैं, "मैं उम्मीद कर रहा हूं कि आने वाले समय में जानवरों के डॉक्टर बिल्लियों को टीकों की ही तरह यह इंजेक्शन भी हर साल दे पाएंगे." उन्होंने आगे कहा, "अगर वो इसकी एक या दो खुराक हर साल दे पाएं तो अच्छा रहेगा."
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लोकप्रिय शोध
जुलाई में लेख के छपने के कुछ ही घंटों में उनकी टीम को बिन मांगे ही 3,000 लोगों ने चंदा भेज दिया. कुछ ही दिनों में यह संख्या बढ़ कर 10,000 हो गई. यह संख्या विश्वविद्यालय को एक साल में मिलने वाले कुल चंदे से भी ज्यादा है.
सितंबर के मध्य तक पहुंचते पहुंचते चंदे में करीब 19 लाख डॉलर हासिल हो चुके थे. मियाजाकी कहते हैं, "मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरे शोध के नतीजों का लोगों को कितना इंतजार है."
एआईएम शरीर में कैसे काम करता है, इस सवाल पर उनकी टीम का शोध 2016 में 'नेचर मेडिसिन' पत्रिका में छपा था. यह टीम पालतू जानवरों के लिए ऐसा खाना भी विकसित कर रही है जिसमें ऐसा पदार्थ होगा जो बिल्लियों के खून में निष्क्रिय पड़े एआईएम को सक्रिय करमें में मदद कर सके.
सीके/वीके (एएफपी)
महामारी के दौरान जर्मनी में लोगों ने पालतू जानवरों पर किए अरबों खर्च
कोरोना वायरस महामारी के दौरान जर्मनी में लोग 10 लाख और पालतू जानवर घर ले आए. इससे देश में पालतू जानवरों की कुल संख्या 3.5 करोड़ हो गई. इंसान के इन साथियों पर महामारी के दौरान खर्च हुए 400 अरब से भी ज्यादा रुपये.
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बड़ी बड़ी आंखें और बड़ा खर्च
पिछले साल पालतू जानवरों के सामान बेचने वाली दुकानों ने 420 अरब से ज्यादा मूल्य के सामान की बिक्री की. यह 2019 के मुकाबले 4.3 प्रतिशत ज्यादा बिक्री थी. इसमें जंगली पक्षियों के भोजन की बिक्री को जोड़ दें तो इस उद्योग ने 470 अरब से भी ज्यादा रुपयों की कमाई की. यह डाटा आईवीएच नाम के पालतू जानवरों के जरूरत का सामान बनाने वाले एक औद्योगिक समूह ने दिया है.
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हर मौसम में आपका साथी
कुत्ते जर्मनी में भी इंसान के सबसे अच्छे दोस्त हैं. देश में अब एक करोड़ से भी ज्यादा कुत्ते हैं और पिछले साल इनकी बिक्री भी बढ़ी और दाम भी. महामारी में कुत्तों ने लोगों को अकेलेपन से बचाने का काम किया. ऐसा कौन है जो परिवार के एक सदस्य को बढ़िया भोजन खिलाने के लिए थोड़ा और खर्च नहीं करेगा?
तस्वीर: picture-alliance/J. de Cuveland
लेकिन पहला नंबर कुत्तों का नहीं हैं
कुत्तों की लोकप्रियता में बढ़ोतरी के बावजूद, पालतू जानवरों की दुनिया की असली राजा बिल्लियां हैं. इस समय देश में सवा करोड़ से भी ज्यादा बिल्लियां हैं, जो पालतू जानवरों की कुल संख्या का एक चौथाई है. पिछले साल सबसे ज्यादा इजाफा (9.4 प्रतिशत) बिल्लियों के लिए नाश्ते और दूध पर होने वाले खर्च में हुआ.
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47 प्रतिशत घरों में हैं पालतू जानवर
पिछले साल जर्मनी के लोग करीब 10 लाख नए पालतू जानवर घर ले आए. अब करीब 47 प्रतिशत घरों में पालतू जानवर हैं, लेकिन यह सभी कुत्ते और बिल्लियां नहीं हैं. इनमें करीब 50 लाख खरगोश, गिनी पिग, हैम्स्टर और चूहे भी हैं. पालतू पक्षियों की संख्या है 35 लाख, एक्वेरियम के 18 लाख और छिपकलियों और कछुओं के लिए टेरारियम की संख्या है करीब 13 लाख.
जर्मनी में अधिकांश लोगों को सामाजिक दूरी का पालन करना पड़ रहा है, लेकिन पालतू जानवर सैर के वक्त अपने दोस्तों से मिल सकते हैं. शायद इसीलिए महामारी के दौरान जानवरों के डॉक्टर, उनकी देख रेख करने वाले और उन्हें सैर कराने वाले काफी व्यस्त रहे. इस खर्च का इस अध्ययन में जिक्र नहीं है, जिसका मतलब जानवरों पर हुए असली खर्च का आंकड़ा कहीं ज्यादा है.
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इसके बावजूद जर्मनी के लोग अमेरिका से पीछे ही हैं
जर्मनी के लोग अपने पालतू जानवरों से मोहब्बत करते होंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से वो बहुत पीछे हैं. 'द इकॉनोमिस्ट' के एक शोध के मुताबिक 2019 में पालतू जानवरों पर प्रति व्यक्ति खर्च के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में पांचवें स्थान पर था. इस सूची में जर्मनी से आगे थे स्विटजरलैंड, फ्रांस और यूके. पहले स्थान पर था अमेरिका, जहां पालतू जानवरों पर जर्मनी से दो गुना ज्यादा खर्च हुआ.
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"टशन में"
पालतू जानवरों पर खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च होता है, लेकिन और भी कई चीजें हैं जो बेहद जरूरी होती जा रही हैं. पैसे वाले लोग अब अपने जानवरों के लिए टिफनी के पट्टे, प्राडा के कैरी-बैग, वर्साचे के कटोरे, राल्फ लॉरेन के स्वेटर और मॉन्क्लेर के मोटे जैकेट भी खरीद रहे हैं.
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घर से काम, तो खरीदारी ऑनलाइन
लोगों का घरों से काम करना पालतू जानवरों के लिए अच्छी खबर रही, लेकिन उनका दिन भर ख्याल रखने वाले केंद्रों का धंधा चौपट हो गया. हां, उनकी जरूरत के सामान की ऑनलाइन खरीदारी जरूर बढ़ गई. पिछले साल ऑनलाइन खर्च कम से कम 70 अरब रुपए के आस पास रहा, जो एक साल पहले के मुकाबले 16 प्रतिशत ज्यादा है.
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तालाबंदी की दोस्ती क्या आगे भी रहेगी
हाल में कई जानवरों के दाम काफी बढ़ तो गए, लेकिन तालाबंदी के बाद क्या होगा इसे ले कर कई तरह की चिंताए जन्म ले रही हैं. जब तालाबंदी और महामारी पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाएगा, क्या तब भी लोगों के पास उनके जानवरों के लिए इतना ही समय होगा और वो उन्हें तब भी रखना चाहेंगे? जानवरों को शरण देने वाली जगह चलाने वालों को इसकी सबसे ज्यादा चिंता है. - टिमोथी रूक्स