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बिहार पुलिस प्रमुख ने ली रिटायरमेंट, लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

मनीष कुमार, पटना
२३ सितम्बर २०२०

बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने मंगलवार की देर रात स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपने बारे में लग रहे कयासों को विराम दे दिया. पांडेय अब अपने पैतृक जिला बक्सर से विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे.

Indien Patna | Gupteshwar Pandey gestikuliert zu Medienvertretern
तस्वीर: A P Dube/Hindustan Times/Imago Images

यूं तो बिहार में सरकारी अधिकारियों के इस्तीफा देकर या रिटायर होने के बाद चुनाव लड़ने की परंपरा रही है, लेकिन गुप्तेश्वर पांडे पुलिस महानिदेशक के पद से हटने के बाद चुनाव लड़ने वाले बिहार के पहले पुलिस अधिकारी होंगे. सुशांत प्रकरण से एक बार फिर चर्चा में आए गुप्तेश्वर पांडेय के प्रांत के पुलिस मुखिया यानि डीजीपी पद से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने की चर्चा काफी दिनों से चल रही थी, हालांकि वे इससे लगातार इनकार कर रहे थे. हाल ही में वे जब बक्सर के जिला जदयू अध्यक्ष से मिले थे तब भी उन्होंने ऐसी किसी संभावना को नकार दिया था. वे 1987 बैच के बिहार कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के अधिकारी हैं और उन्हें 31 जनवरी, 2019 को राज्य का पुलिस महानिदेशक बनाया गया था. उनका कार्यकाल 28 फरवरी, 2021 तक था.

बक्सर के गांव गेरुआ में 1961 में जन्मे पांडेय की राजनीतिक महत्वाकांक्षा तब सामने आई थी जब आज से 11 साल पहले 2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति वीआरएस के लिए आवेदन दिया था. उस समय वे आइजी थे और बक्सर से लोकसभा का चुनाव भाजपा की ओर से लड़ना चाहते थे. उन्हें भरोसा था कि बक्सर के तत्कालीन सांसद लालमुनि चौबे को पार्टी दोबारा प्रत्याशी नहीं बनाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इस सियासी झटके के नौ महीने बाद पांडेय ने वीआरएस का आवेदन वापस लेने की अर्जी लगाई. सरकार ने अर्जी मंजूर कर ली और पुलिस सेवा में पुन: उनकी वापसी हो गई. वीआरएस लेने के मुद्दे पर पांडेय कहते हैं, ‘‘मैं अपने पूरे सेवा काल में निष्पक्ष रहा. मैं नहीं चाहता था कि चुनाव के समय किसी विवाद में घसीटा जाऊं, लोग मेरी निष्पक्षता पर सवाल उठाएं, मुझे किसी न किसी दल से जोड़कर देखें इसलिए मैंने इस समय वीआरएस लिया."

सुशांत मामले से आए चर्चा मेंतस्वीर: imago images/Hindustan Times

महाराष्ट्र सरकार से हुई थी भिड़ंत

बिहार के निवासी व फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उठे बवंडर से गुप्तेश्वर पांडेय एक बार फिर काफी चर्चा में आए. शिवसेना के सांसद संजय राउत ने उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वे भाजपा के कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं. राउत ने गुप्तेश्वर पांडेय द्वारा महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ टीवी पर साक्षात्कार दिए जाने को गलत ठहराया था. शिवसेना नेता ने तो यहां तक कहा कि वे बीजेपी से चुनाव लड़ने में एकबार नाकाम रहे थे. इस बार बक्सर जिले के शाहपुर से चुनाव लड़ने की फिराक में हैं. पांडेय ने तब शायराना अंदाज में राउत को ट्वीट कर जवाब दिया था.

दरअसल सुशांत प्रकरण में विवाद तब बढ़ गया था जब बिहार सरकार के निर्देश पर पटना के राजीव नगर में सुशांत के पिता आरके सिंह द्वारा एफआइआर दर्ज कराया गया और उसके तुरंत बाद बिहार पुलिस की टीम जांच के लिए मुंबई पहुंच गई. जांच के लिए वहां गए आइपीएस अधिकारी विनय तिवारी को बीएमसी द्वारा जबरन क्वारंटीन कर दिया गया और फिर बिहार सरकार ने सुशांत सुसाइड प्रकरण की जांच के लिए सीबीआइ जांच की अनुशंसा कर दी. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने बिहार पुलिस की कार्यवाही को उचित ठहराते हुए आइपीएस अधिकारी को जबरिया क्वारंटीन किए जाने पर नाराजगी जाहिर की. उस समय पांडेय ने भी ट्वीट कर कहा था, ‘‘बिहार के आइपीएस विनय तिवारी को क्वारंटीन किया जाना गलत है. बीएमसी ने उन्हें अभी तक मुक्त नहीं किया है. वे सुप्रीम कोर्ट की परवाह नहीं करते, अब इसको आप क्या कहेंगे." एक महीने पहले भी गुप्तेश्वर पांडेय के इस्तीफे की खबर आई थी, लेकिन तब उन्होंने इसका खंडन किया था और मीडिया पर आरोप लगाए थे.

 गुप्तेश्वर पांडेय द्वारा वीआरएस लिए जाने के बाद एक बार फिर सियासी चर्चा तेज हो गई है. शिवसेना नेता संजय राउत ने फिर हमला करते हुए कहा है, ‘‘राजकीय तांडव करने का इनाम उन्हें दिया गया है. मुंबई केस में एक आइपीएस होकर राजनीतिक एजेंडा चलाने का फल उन्हें आज मिला है." वहीं शिवसेना की ही राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने भी बिना नाम लिए पांडेय पर निशाना साधा है. अपने ट्वीट में उन्होंने कहा है, ‘‘राजनीति करनी है तो जमकर करो, चुनाव लड़ना है तो साहस और सत्य पर लड़ो. पर गुप्त तरीके से, किसी की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से अपने कैंपेन की शुरुआत करना भी बहुत दुखदायी है और दुर्भाग्यपूर्ण भी." इतना ही नहीं रिया चक्रवर्ती के वकील सतीश मानसिंदे ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि बिहार सरकार ने जिस तरीके से महज 24 घंटे के अंदर गुप्तेश्वर पांडेय का वीआरएस स्वीकार कर लिया, यह बताता है कि बिहार सरकार ने सुशांत को नहीं, गुप्तेश्वर पांडेय को न्याय दिलाने का काम किया है.

केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी नौकरी छोड़ी थी राजनीति के लिएतस्वीर: Mahesh Jha

पुराना है अफसर राजनेता गठजोड़

अधिकारियों का राजनीति में जाना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी प्रदेश के कई आला अफसरों ने राजनीतिक दलों का दामन थामा है. हालांकि यह बात दीगर है कि कितने लोग राजनीति में दूसरी पारी खेलने में कामयाब रहे. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस), भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) व भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) के पूर्व अधिकारी रहे निखिल कुमार, मीरा कुमार, यशवंत सिन्हा, रामचंद्र प्रसाद सिंह, बलबीर चंद्र, हीरालाल, केपी रमैया, अनूप श्रीवास्तव, आरके सिंह, अशोक कुमार गुप्ता व आशीष रंजन सिन्हा, सुनील कुमार किसी न किसी पार्टी को अपना चुके हैं. आरसीपी सिंह अभी जदयू की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं. हाल में ही होमगार्ड व फायर सर्विसेज के पूर्व डीजी सुनील कुमार ने जनता दल यू की सदस्यता ली है. कयास लगाए जा रहे हैं कि वे भी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.

पत्रकार नित्यानंद निशांत कहते हैं, "अफसरशाही तो इनके रिटायर होते ही खत्म हो जाती है. सेवा भाव कम, रुतबे को बरकरार रखने के लिए महत्वाकांक्षी व राजनीतिक रसूख रखने वाले अधिकतर नौकरशाह राजनीति में जाते हैं. वैसे कुछ की मंशा देश के लिए कुछ करने की भी होती है." महिला कॉलेज की पूर्व प्राध्यापिका मधुरिमा शर्मा कहती हैं, "इसमें बुरा क्या है. कम ही सही लेकिन कुछ अच्छे लोग तो राजनीति में इसी बहाने जा रहे हैं. इससे राजनीति का दामन पाक-साफ ही होगा." मजबूत नेटवर्किंग व राजनीतिक रसूख रखने वाले पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय राजनीति में क्या करेंगे, वह समय के गर्भ में है किंतु इतना तो तय है कि अपनी निष्पक्ष कार्यशैली से उन्होंने बिहार पुलिस की छवि पीपुल्स फ्रेंडली बनाने व पूर्ण शराबबंदी को लागू करने में बेहतर भूमिका निभायी. पोस्ट क्राइसिस मैनेजमेंट के माहिर अब खाकी से खादी अपनाकर राजनीतिक सफर पर चले हैं.

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