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बिहार के बेतिया में बने बल्लों से लग रहे हैं छक्के

९ अप्रैल २०२१

कहावत है कि अगर जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है. इसे साबित कर दिया है बिहार के कुछ मजदूरों ने जो अब उद्यमी बन चुके हैं.

Indien | Bihar | Sixes Cricket
तस्वीर: IANS

पिछले वर्ष कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बौनहा के रहने वाले अबुलैस को लगा था कि जिंदगी अब ठहर जाएगी. नौकरी छूटने के बाद वे जम्मू एवं कश्मीर के अनंतनाग से अपने गृहजिला पश्चिम चंपारण लौट आए थे. लेकिन उनके हाथ में बल्ला बनाने के हुनर से आशा भी थी कि कुछ अच्छा होगा.

जब वे यहां लौटे तो उनके हुनर को जिला प्रशासन ने पहचाना और अब तो उनके द्वारा यहां बनाए गए कश्मीरी विल्लो बैट की मांग अन्य शहरों में हो रही है. पश्चिम चंपारण में डब्लूसी के स्टीकर लगे बैट से कई मैदानों में छक्के लग रहे हैं. यह कहानी केवल अबुलैस की नहीं है. लालबाबू भी अनंतनाग में बल्ला बनाने का काम करते थे और आज वह भी अपने गृहजिला में मजदूर से उद्यमी बन गए हैं.

मजदूर से मालिक बने

ठीक एक साल पहले लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में प्रवासी मजदूरों के दर्द का गवाह पूरा देश बना था. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड या दूसरे राज्यों में रहने वाले बिहार के लोग अपने गांवों तक हजारों किलोमीटर का मुश्किल रास्ता तय कर पहुंचे थे. कोई पैदल ही बीवी-बच्चों और बुजुर्गों को साथ लेकर हजारों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़ा था.

जब पश्चिम चंपारण के ये लोग लौट रहे थे, तभी यहां के जिलाधिकारी कुंदन कुमार की नजर इन पर पड़ी और उनसे बातकर इन हुनरबंद मजदूरों को उन्होंने पहचान लिया. फिर क्या था, जो हुनरमंद सूरत में साड़ी बना सकते हैं, कश्मीर में बल्ला बना सकते हैं, तो क्या बिहार में वे काम नहीं कर सकते. इसी सोच के साथ जिलाधिकारी ने उन्हें रोजगार देने की ठानी और चनपटिया में स्टार्टअप जोन की शुरूआत कर दी.

छह महीने पहले जब पूरा देश जिंदगी जीने की जंग लड़ रहा था, उस दौर में इस पश्चिम चंपारण में आपदा को अवसर में बदलने का काम चल रहा था. कोरोना के कारण आज दूसरे राज्यों में मजदूरी करने वाले लोग अपने घर में उद्यमी बन गए हैं.

लॉकडाउन में खूब चला इनका बिजनेस

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जिलाधिकारी कुंदन कुमार आईएएनएस को बताते हैं कि क्वॉरंटीन सेंटर में स्किल मैपिंग का काम चलाया गया और स्किल की पहचान की गई. क्वॉरंटीइन सेंटर से ऐसे-ऐसे हुनरमंद लोग सामने आने लगे, जो आज तक दूसरे राज्यों के लिए काम कर वहां के विकास में भागीदार बन रहे थे.

जिलाधिकारी ने सभी को उनके हुनर के मुताबिक काम करने की छूट दी. बैंको से ऋण उपलब्ध करवाया और फिर जगह देकर उन्हें मजदूर से मालिक बना दिया. कुंदन कुमार गर्व से कहते हैं कि अब यहां के बने कपड़े लेह, लद्दाख के साथ-साथ कोलकाता भी जा रहे हैं.

कुंदन कुमार कहते हैं कि यहां के बने जैकेट स्पेन और बंगला देश भेजे जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रारंभिक दौर में उद्यमी की परेशानी कम करने के लिए एक उद्यमी पर एक अधिकारी को लगाया गया था. चनपटिया का स्टार्टअप जोन आज अन्य जिलों के नजीर बन गया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यहां पहुंच कर इस स्टार्टअप जोन की तारीफ कर चुके हैं.

तस्वीर: IANS

करोड़ों का व्यापार

कुंदन कुमार ने आईएएनएस को बताया कि जिला नव प्रवर्तन योजना के तहत नव प्रवर्तन स्टार्टअप जोन की चनपटिया में शुरुआत की गई और रेडीमेड गारमेंट्स के उद्योग लगाए गए है. उन्होंने कहा, "मजदूरों के बनाए गए कपड़े, साड़ी, लहंगा, जीन्स, पेंट, जैकेट, शर्ट, लेगिंग्स, ब्लेजर, बल्ला आदि लद्दाख, कोलकाता, कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में जा रहे है. यहां काम करने वाले लोग मांग के मुताबिक आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं." उन्होंने कहा कि 8,000 स्वेटर के ऑर्डर अभी ही आ गए हैं. उन्होंने दावा किया कि छह महीने में यहां के लोग पांच करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यापार कर चुके हैं.

वर्ष 2012 बैच के आईएएस अधिकारी कुंदन की इस पहल से कई घरों में खुशियां बिखेर रही हैं. मजदूर आज उद्यमी बन गए हैं. कहा जा रहा है कि आईएएस अधिकारी कुंदन की इस पहल को अगर बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया जाए तो राज्य के पलायन को कम किया जा सकता है. कुंदन कहते हैं कि ट्रॉली बैग, स्टेनलेस स्टील और फुटवेयर बनने का काम भी जल्द प्रारंभ होगा. आईएएस बनने से पहले कुंदन 2009 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे. उत्तराखंड कैडर में तीन साल आईपीएस रहे.

रिपोर्ट: मनोज पाठक (आईएएनएस)

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