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बिहार चुनाव में बेरोजगारी पर दांव

मनीष कुमार, पटना
२८ सितम्बर २०२०

बिहार में विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा के साथ ही राजनीति के अखाड़े में पार्टियों ने दांव आजमाना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने रोजगार के मुद्दे पर पासा फेंका है.

Patna, Bihar, Indien
तस्वीर: IANS

चुनाव तारीख की घोषणा के बाद प्रचार अभियान शुरू करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि सरकार बनने पर कैबिनेट की पहली बैठक में पहली कलम से वे राज्य के दस लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देंगे. बिहार में सरकारी दफ्तरों में लाखों नौकरियां रिक्त पड़ी हैं , लेकिन उनपर भर्ती नहीं हो रही है. जाहिर है, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने एक सुर में तेजस्वी यादव की घोषणा को हवा-हवाई घोषणा साबित करते हुए लालू-राबड़ी शासन काल में शिक्षा व रोजगार की बदहाल स्थिति पर निशाना साधा और वोटरों को हकीकत की याद दिलानी शुरू कर दी.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव बेरोजगारी को लेकर काफी पहले से नीतीश सरकार पर हमलावर रहे हैं. पहले भी वे कहते रहे हैं कि केंद्र व राज्य की सरकार ने नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा है. कांट्रैक्ट (संविदा) पर नियुक्ति करके उन्होंने बेरोजगारों को साधने की कोशिश की है. उनकी सोच है कि समय-समय पर थोड़ी वेतन वृद्धि कर वे युवाओं का वोट लेते रहें और अपना रोजगार चलाते रहें. लाखों पद रिक्त हैं किंतु युवा डिग्रियां लेकर भटक रहे हैं. चुनाव में बेरोजगारी को मुद्दा बनाने के इरादे से ही राजद ने पांच सितंबर को ‘बेरोजगारी हटाओ' पोर्टल लांच किया था. पार्टी की ओर से बकायदा टोल फ्री नंबर भी जारी किया गया जिस पर मिस्ड कॉल देना था. राजद का दावा है कि नौ लाख 47 हजार लोगों ने वेबसाइट पर स्वयं को रजिस्टर्ड कराया तो वहीं तेरह लाख 11 हजार लोगों ने मिस्ड कॉल दिया. इस तरह 22 लाख 58 हजार से अधिक लोगों ने निबंधन कराया.

बड़े वादे के साथ विपक्ष

बीते रविवार को भी तेजस्वी ने युवाओं को नौकरी जैसे दुखते रग पर फिर हाथ रखने की कोशिश की. तेजस्वी ने कहा, "अगर उन्हें सरकार बनाने का मौका मिला तो वे दस लाख युवाओं को नौकरी देने का पहला फैसला कैबिनेट की पहली बैठक में करेंगे." राज्य की कुल आबादी में 60 फीसद युवा हैं. तेजस्वी ने नौकरी देने की अपनी पूरी योजना भी बताई. कहा, "राज्य में सरकारी क्षेत्र में चार लाख पचास हजार रिक्तियां पहले से ही हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह विभाग समेत कई विभागों में मानकों के अनुरूप और पांच लाख पचास हजार नियुक्ति की जरूरत है." विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी ने बताया कि पुलिसकर्मियों के पचास हजार पद रिक्त पड़े हैं. राष्ट्रीय मानक के अनुसार एक लाख की आबादी पर 144 पुलिसकर्मी होने चाहिए किंतु यहां यह अनुपात महज 77 पुलिस वालों का है. मणिपुर जैसे छोटे राज्य से कम पुलिसकर्मी यहां तैनात हैं. राष्ट्रीय मानक के अनुसार राज्य को एक लाख 72 हजार पुलिसवालों की जरूरत है.

पिछले दिनों तेजस्वी परिवार पर आरोपों की भरमार रहीतस्वीर: IANS

इसी तरह एक लाख 25 हजार चिकित्सकों व सपोर्टिंग स्टॉफ को मिलाकर कुल दो लाख पचास हजार स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की जनसंख्या पर एक चिकित्सक होना चाहिए जबकि बिहार में 17 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है. इस हिसाब से केवल सवा लाख चिकित्सकों की ही आवश्यकता है. विद्यालयों में दो लाख पद शिक्षकों के लिए तथा विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में प्रोफेसर व लेक्चरर के पचास हजार पद खाली हैं. इसी तरह विभिन्न सरकारी विभागों में जूनियर इंजीनियर के 66 फीसद पद पर करीब 75 हजार नियुक्ति होनी है. क्लर्क समेत चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के दो लाख पदों पर नियुक्ति की दरकार है. तेजस्वी का कहना था, ये तो सरकारी विभागों के आंकड़े हैं. निजी क्षेत्र की नौकरियां तो इससे इतर हैं. इसके अतिरिक्त उनकी सरकार उद्योग-धंधे, निवेश व पर्यटन जैसे क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के उपाय करेगी.

विपक्ष के हमले

बात जब बड़े वोट बैंक की हो तो लोकतंत्र के प्रहरी चितिंत होंगे ही. तेजस्वी की इस घोषणा के महज दो घंटे बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के युवा मोर्चा ने युवाओं को समर्पित ‘युवाओं का विकास मोदी के साथ' नामक पुस्तिका का विमोचन कर दिया. इस पुस्तिका में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा युवाओं के हित में लिए गए फैसलों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. पार्टी ने यह भी बताया है कि आत्मनिर्भर बिहार के जरिए कैसे युवा रोजगार प्रदाता बन सकेंगे. पुस्तिका के विमोचन के मौके पर बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने तेजस्वी यादव पर करारा प्रहार किया. उन्होंने राजद से पूछा, "पंद्रह साल के शासन काल में कितने लोगों को नौकरी दी गई." वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट करके कहा, "जो जमीन लिखवाए बिना नौकरी नहीं देते थे, उनके वारिस सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में दस लाख लोगों को नौकरी देने का वादा कर रहे हैं तो उन पर कौन भरोसा करेगा." उन्होंने राजद को पंद्रह साल के कुशासन पर श्वेत पत्र जारी करने की सलाह दी तथा पूछा कि चारा, अलकतरा, मेधा व बीएड डिग्री जैसे घोटाले और 118 नरसंहार क्यों और कैसे हुए. लालू राज में पांच लाख पद रिक्त हुए थे. उन पदों पर नियुक्तियां हुईं होतीं तो उस समय एक लाख 35 हजार पिछड़ों को नौकरी मिल जाती.

इस पलटवार में भला जदयू कैसे पीछे रहता. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं, "सरकार बनेगी तब तो नौकरी देंगे. तेजस्वी अब दिन में सपने देखने लगे हैं. 1990 से 2005 तक बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा जहां मात्र 19,538 पदों पर नियुक्तियां हुईं वहीं नीतीश कुमार के पंद्रह साल के शासन काल में अबतक 1,53,100 लोगों को स्थाई नौकरी दी जा चुकी है." जदयू के प्रदेश प्रवक्ता निखिल मंडल ने कहा, "तेजस्वी यादव मिस्ड कॉल पर बेरोजगारों को तलाश रहे हैं. कल मिस्ड कॉल से ही उनकी सरकार भी बन जाएगी."

नीतीश कुमार राजनेता की छवि का फायदा उठाना चाहते हैंतस्वीर: IANS

बेरोजगारी बड़ी समस्या

बढ़ती जनसंख्या के साथ बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल होती जा रही है. बिहार सबसे अधिक युवा आबादी वाला राज्य है. राज्य की 60 प्रतिशत आबादी युवा है जबकि यहां बेरोजगारी की दर 46 फीसद से अधिक है. पत्रकार अमित रंजन कहते हैं, "सरकार को रोजगार सृजन के उपायों के प्रति और गंभीर होने की जरूरत है. यहां आधे से अधिक करीब 52 फीसद लोग गरीबी में जी रहे हैं. यही वजह है कि सबसे ज्यादा पलायन बिहार से होता है. वजह जो भी हो, रिक्त पदों को भरने में सरकार की संवेदनशीलता नहीं दिखती." समाजसेवी हर्षवर्धन का कहना है, "मनरेगा के तहत भी रोजगार सृजन की रफ्तार धीमी ही रही. निर्माण क्षेत्र को छोड़ शिक्षित व बेरोजगार लोगों के लिए भी पर्याप्त रोजगार के अवसर तो सृजित नहीं ही हुए अन्यथा कोरोना संकट की इस अवधि में प्रवासियों का पुन: पलायन नहीं होता."

हालांकि राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में सर्वाधिक राशि 352 अरब रुपये का प्रावधान शिक्षा के मद में ही किया है. इससे पहले 2019-20 में भी इस मद के लिए 348 अरब की राशि आवंटित की गई थी. अवकाश प्राप्त व्याख्याता कौशलेंद्र कुमार कहते हैं, "शिक्षा मद में अधिकतम राशि के प्रावधान से शिक्षा की गुणवत्ता कितनी सुधरेगी, यह विवाद का विषय हो सकता है, किंतु रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए सरकार को माइक्रो लेवल पर काम करना होगा. स्किल्ड लोगों के लिए भी यहां रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे और यह तब तक संभव नहीं होगा जब तक यहां उद्योग-धंधे में निवेश नहीं बढ़ेगा." चुनाव से पहले पार्टियां अपने-अपने दांव खेलेगी, लोक लुभावन घोषणाएं की जाएंगी. जैसे-जैसे चुनावी गर्माहट बढ़ेगी, वैसे-वैसे साफ होता जाएगा कि किस मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है. विपक्ष सत्तारूढ़ दल की कमियों को उजागर करने की भरपूर कोशिश करेगा वहीं शासक दल उनकी बातों को नकारने का खम ठोकेंगे. तभी तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल कहते हैं, "बिहार चुनाव में किसान बड़ा मुद्दा है. नरेंद्र मोदी जी ने किसानों के लिए जितने काम किए, वो मुद्दा रहेगा."

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