भारत के पूर्वी राज्य बिहार में इंटरमीडिएट की परीक्षा के 14 टॉपरों को फिर से एक परीक्षा देनी होगी. दरअसल परीक्षा के टॉपर बनने के बाद पत्रकारों को दिए टीवी इंटरव्यू में विषय के बारे में ना बता पाने से छिड़ा विवाद.
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बिहार स्टेट की इंटरमीडिएट की परीक्षा में टॉपर घोषित हुए 14 छात्र-छात्राओं में से दो अपने विषय से जुड़ी सरल सी बातें भी नहीं बता सके. 29 मई को आए रिजल्ट में कला वर्ग की टॉपर बनी रुबी राय का इंटरव्यू लेने पहुंचे एक भारतीय न्यूज चैनल के पत्रकार ने जब इंटरमीडिएट परीक्षा के उसके एक विषय राजनीति शास्त्र के बारे में जानना चाहा, तो बहुत सोचने के बाद छात्रा ने बताया कि वह विषय खाना बनाने के बारे में है.
इसी तरह विज्ञान वर्ग में पूरे बिहार राज्य के टॉपर बने सौरव श्रेष्ठा से रसायन शास्त्र के सामान्य सवाल पूछे जाने पर, वह भी परेशान दिखाई दिया. यह सभी इंटव्यू टीवी कैमरों में रिकॉर्ड होने के कारण मामला राष्ट्रीय संज्ञान में आ गया.
टॉपरों को अपने विषय के बारे में जानकारी ना होने की बात जब फैली तो बिहार बोर्ड के अध्यक्ष ने सभी 14 बोर्ड टॉपरों की जल्द ही एक और परीक्षा लिए जाने की घोषणा कर दी. बिहार स्टेट एजुकेशन बोर्ड के अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह ने राजधानी पटना से टेलिफोन पर बताया, "उन्हें (छात्रों को) एक छोटा सा लिखित टेस्ट देना होगा और उसके बाद उनका इंटरव्यू किया जाएगा." प्रसाद ने बताया कि इस परीक्षा में "उनकी राइटिंग की भी जांच होगी और उसे पहले दी गई परीक्षा की राइटिंग से मिलाया जाएगा." यह आशंका जताई जा रही है कि परीक्षा में या तो भारी नकल हुई होगी या उनकी जगह किसी और ने परीक्षा दी.
बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने भी नकल की आशंका पर न्यूज चैनल एनडीटीवी से बात करते हुए बताया कि हो सकता है छात्रों ने अपनी जगह किसी और से परीक्षा दिलवाई हो या फिर उनकी उत्तरपुस्तिकाएं बदल दी गई हों.
राज्य बोर्ड की परीक्षा में टॉप करने वाले कई छात्र-छात्राएं हाजीपुर के एक ही स्कूल वीएन राय कॉलेज के हैं. राजधानी पटना से करीब 21 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित इस स्कूल के बारे में बोर्ड अध्यक्ष ने कहा, "अगर हमें किसी तरह के भ्रष्टाचार का पता चलता है तो हम परीक्षा केंद्र के परीक्षकों से सवाल करेंगे और परीक्षा की कॉपियां जांचने वालों से भी. हर दोषी को सजा मिलेगी."
बिहार के स्कूल और कॉलेजों में नकल की शिकायतें आम हैं. 2015 में बिहार के स्कूलों में नकल कराते परिवारजनों की तस्वीरें देश-विदेश की सुर्खियां बनने के बाद बिहार की राज्य सरकार ने नकल करने वालों के लिए जुर्माना और जेल तक की सजा तय की थी. एक बार फिर बिहार में नकल का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सुर्खियां बटोर रहा है.
क्या उच्च शिक्षा केवल अमीरों के लिए?
दुनिया भर में 10 से 24 साल की उम्र के सबसे अधिक युवाओं वाले देश भारत में उच्च शिक्षा अब भी गरीबों की पहुंच से दूर लगती है. फिलहाल विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा व्यवस्था में सबकी हिस्सेदारी नहीं है.
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भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने मेडिकल और इंजीनियरिंग के और भी ज्यादा उत्कृष्ट संस्थान शुरू करने की घोषणा की है. आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थानों के केन्द्र जम्मू कश्मीर, बिहार, हिमाचल प्रदेश और असम में भी खुलने हैं. लेकिन बुनियादी ढांचे और फैकल्टी की कमी की चुनौतियां हैं. यहां सीट मिल भी जाए तो फीस काफी ऊंची है.
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देश के कई उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में भी फिलहाल 30 से 40 फीसदी शिक्षकों की सीटें खाली पड़ी हैं. नासकॉम की रिपोर्ट दिखाती है कि डिग्री ले लेने के बाद भी केवल 25 फीसदी टेक्निकल ग्रेजुएट और लगभग 15 प्रतिशत अन्य स्नातक आईटी और संबंधित क्षेत्र में काम करने लायक होते हैं.
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कोटा, राजस्थान में कई मध्यमवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए भेजते हैं. महंगे कोचिंग सेंटरों में बड़ी बड़ी फीसें देकर वे बच्चों को आधुनिक युग के प्रतियोगी रोजगार बाजार के लिए तैयार करना चाहते हैं. इस तरह से गरीब बच्चे पहले ही इस प्रतियोगिता में बाहर निकल जाते हैं.
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने फ्रांस दौरे पर युवा भारतीय छात्रों के साथ सेल्फी लेते हुए. सक्षम छात्र अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा पाने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और तमाम दूसरे देशों का रूख कर रहे हैं. लेकिन गरीब परिवारों के बच्चे ये सपना नहीं देख सकते. भारत में अब भी कुछ ही संस्थानों को विश्वस्तरीय क्वालिटी की मान्यता प्राप्त है.
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मार्च 2015 में पूरी दुनिया में भारत के बिहार राज्य की यह तस्वीर दिखाई गई और नकल कराते दिखते लोगों की भारी आलोचना भी हुई. यह नजारा हाजीपुर के एक स्कूल में 10वीं की बोर्ड परीक्षा का था. जाहिर है कि पूरे देश में शिक्षा के स्तर को इस एक तस्वीर से आंकना सही नहीं होगा.
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राजस्थान के एक गांव की कक्षा में पढ़ते बच्चे. 2030 तक करीब 14 करोड़ लोग कॉलेज जाने की उम्र में होने का अनुमान है, जिसका अर्थ हुआ कि विश्व के हर चार में से एक ग्रेजुएट भारत के शिक्षा तंत्र से ही निकला होगा. कई विशेषज्ञ शिक्षा में एक जेनेरिक मॉडल के बजाए सीखने के रुझान और क्षमताओं पर आधारित शिक्षा दिए जाने का सुझाव देते हैं.
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उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी जैसे दल खुद को दलित समुदाय का प्रतिनिधि और कल्याणकर्ता बताते रहे हैं. चुनावी रैलियों में दलित समुदाय की ओर से पार्टी के समर्थन में नारे लगवाना एक बात है, लेकिन सत्ता में आने पर उनके उत्थान और विकास के लिए जरूरी शिक्षा और रोजगार के मौके दिलाना बिल्कुल दूसरी बात.
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भारत के "मिसाइल मैन" कहे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम देश में उच्च शिक्षा के पूरे ढांचे में "संपूर्ण" बदलाव लाने की वकालत करते थे. उनका मानना था कि युवाओं में ऐसे कौशल विकसित किए जाएं जो भविष्य की चुनौतियों से निपटने में मददगार हों. इसमें एक और पहलू इसे सस्ता बनाना और देश की गरीब आबादी की पहुंच में लाना भी होगा.