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समाज

बिहार पुलिस का बदला रूप, बढ़ी लोगों की उम्मीदें

मनीष कुमार, पटना
११ मई २०२०

कोरोना संकट के इस दौर में बड़े अफसरों से लेकर दारोगा तक इतने मानवीय दिख रहे हैं कि सहज ही विश्वास नहीं होता. व्यवहार में आया बदलाव पुलिस को मानवीय तो बना ही रहा है, दामन पर लगे धब्बों को भुलाने में भी मददगार हो रहा है.

Indien Patna Coronavirus Polizei
तस्वीर: DW/M. Kumar

दिल्ली में रह रहे लखीसराय के युवक ने जब अपनी मां की दवा के लिए ट्वीट किया तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि लखीसराय के एसपी (अभियान) अमृतेश कुमार दवा लेकर खुद ही उसके गांव चले जाएंगे. पौत्र नवनीत का पहला बर्थडे मनाने के लिए चिंतित बेतिया के दवा व्यवसायी ने कल्पना नहीं की थी कि अपनी इच्छा मात्र जताने पर भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी व बेतिया जिले की पुलिस कप्तान निताशा गुडिया, केक और गिफ्ट लेकर खुद उनके दरवाजे आएंगी.

चौंकिए मत, कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के दौरान पुलिस का यह नया चेहरा था. आइपीएस अफसर से लेकर दारोगा तक बर्थडे मनाने के लिए मचल रहे बच्चे के पास पहुंच कर हैप्पी बर्थडे बोल रहे थे, उन्हें केक-गिफ्ट दे रहे थे. बेसहारों को भोजन करा रहे थे, बीमार-गर्भवती को अस्पताल पहुंचा रहे थे, दवा तो क्या अपना खून भी दे रहे थे. क्या शहर, क्या गांव वे हर कहीं जा रहे थे. पुलिस का यह रूप देख लोग आश्चर्य में हैं.समझ नहीं पा रहे कि यह वर्दी पर लगे धब्बों को धोने की कोशिश है या फिर कोरोना से मिल-जुलकर लड़ने की कोशिश.

लोगों के ऐसे ऐसे अनुभव

भागलपुर शहर के कोतवाली थाना क्षेत्र में रहने वाले महेंद्र जैन बड़े भावुक होकर कहते हैं, "पोती इशिता का जन्मदिन था. पूरा परिवार परेशान था कि इशिता का जन्मदिन कैसे मनाएं, कुछ समझ नहीं पा रहा था. पता नहीं क्या सूझा एसएसपी आशीष भारती को फोन कर पीड़ा बताई. कुछ देर बाद पुलिस आ गई. हडकंप मच गया कि पता नहीं क्या बला आ गई. लेकिन यह क्या, पुलिस तो इशिता के लिए केक और बर्थडे गिफ्ट लेकर आई थी. एसएसपी साहब का बहुत-बहुत शुक्रिया." कुछ ऐसा ही वाकया कटिहार जिले के बरारी पंचायत के वयोवृद्ध सरदार हरिबच्चन सिंह के साथ हुआ. अचानक तबीयत खराब हो गई. जिस दवा की उन्हें जरूरत थी वह स्थानीय बाजार में नहीं मिली. बेटे सत्यपाल ने जिले के पुलिस कप्तान (एसपी) विकास कुमार को समस्या बताई. उन्हें भागलपुर से दवा मंगवाकर पहुंचाई गई.

तस्वीर: DW/M. Kumar

भागलपुर जिले के बबरगंज पुलिस चौकी इंचार्ज पवन कुमार को गश्त के दौरान एक बदहवास व्यक्ति ने बताया कि अस्पताल में भर्ती उसके घर की महिला के ऑपरेशन के लिए ब्लड की जरूरत है. पवन कुमार ने अपने साथियों से उनका ब्लड ग्रुप पूछा और उस व्यक्ति के साथ ब्लड बैंक पहुंचकर पूरी टीम के साथ रक्तदान किया. किशनगंज के बहादुरगंज थाने की पुलिस तो लोगों को निःशुल्क एंबुलेंस सेवा उपलब्ध करा रही थी. नालंदा जिले के वेन थाना की महिला थानेदार पिंकी प्रसाद ने अपना खून देकर एक मजदूर की जान बचाई तो पटना के पीरबहोर थाने के क्विक मोबाइल के जवान शहर के अन्य लोगों की सहायता से भोजन इकट्ठा कर बेसहारों के बीच वितरित कर रहे थे. इसके साथ ही पुलिस लोगों को कोरोना के बचाव के प्रति जागरूक भी कर रही थी. समस्तीपुर के मुसरीघरारी थाने के इंचार्ज विशाल कुमार सिंह माइक पर फिल्म शोले के मशहूर डॉयलाग की तर्ज पर कहते हैं, अरे ओ सांभा सरकार ने लॉकडाउन का पालन न करने पर कितना जुर्माना रखा है. इसका जवाब उनका सहकर्मी देता है. मकसद है लोगों को जागरूक करना. जो लॉकडाउन का पालन नहीं कर रहे उन पर पुलिस सख्ती भी कर रही है.

दिल जीतने का समय

पुलिसिंग में यह बदलाव और कुछ नहीं कोरोना से लड़ने का प्रशासन का सामूहिक प्रयास है जो कुछ स्वःस्फूर्त भी है और कुछ बिहार पुलिस के बड़े अधिकारियों के प्रयासों-निर्देशों का प्रतिफल भी. बिहार पुलिस के महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे कहते कहते हैं, "यह संकट का समय है लेकिन जनता की सेवा कर उनका दिल जीतने का समय है. पुलिस-पब्लिक के बीच भावनात्मक संबंध बने. इसलिए जितने भी एसपी हैं वे रोज किसी न किसी बच्चे जिसका जन्मदिन हो उसके लिए केक-गिफ्ट भेजेंगे. जो भी साथी बच्चे के घर जाएंगे वे उन्हें बिहार पुलिस की तरफ से भेंट सौंपेंगे. और भी जो जरूरतमंद हैं, उन्हें हर हाल में सहायता पहुंचाएंगे." डीजीपी पांडेय अपने निर्देश के अनुपालन के लिए हर स्तर के पुलिस अधिकारी व सिपाही से स्वयं बात करते हैं और अच्छे कार्यों के लिए उनकी हौसलाअफजाई भी करते हैं.
समाज के अन्य तबके के लोग भी इसे एक सुखद बदलाव मान रहे हैं. राजधानी पटना के एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. डीएन प्रसाद पुलिस के बदले व्यवहार पर कहते हैं, "मानवता पर प्रहार होता है, कोई खतरा आता है तब व्यक्तिवादी धारणा कमजोर होती है और सामूहिकता की धारणा प्रबल होती है. सामूहिकता की चेतना जागृत होती है. संकट की घड़ी में व्यवस्था के सभी अंग मिल-जुल कर कार्य करते हैं. कोरोना संकट के समय में पुलिसिंग का यह रूप सुखद है किंतु कितना दीर्घकालीन होगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. हां, इतना जरूर है कि इसके दूरगामी परिणाम अवश्य होंगे."

तस्वीर: DW/M. Kumar

बढ़ी लोगों की अपेक्षाएं

सुपर-30 फेम व बिहार पुलिस के पूर्व महानिदेशक अभयानंद इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि यह दामन पर लगे दाग धोने या सुर्खियां बटोरने का प्रयास है. वे कहते हैं, "इसमें नया क्या है? जरूरतमंदों की सेवा ही तो पुलिस की ड्यूटी है." नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक वरीय पुलिस अधिकारी कहते हैं, "यह बेहतर पुलिसिंग की कोशिश है. जब कुछ अलग या अपेक्षा से हटकर होता है तो समाज में उसके कई मायने निकाले जाते हैं. इस संक्रमण काल में सब मिल-जुलकर बेहतर कर रहे हैं तो इससे समाज मजबूत ही होता है. इन कार्यों की प्रशंसा की जानी चाहिए."

कोरोना महामारी के दौर में पुलिस के बदले व्यवहार ने लोगों की अपेक्षाएं बढ़ा दीं हैं. हर हाल में पुलिस पर उनका भरोसा बनाए रखने की चुनौती होगी. जिस पुलिस पर आंखफोड़वा कांड व भागलपुर दंगे का कलंक हो, जिनकी चर्चा करते ही आम लोगों में पुलिस की भ्रष्ट और निकम्मा होने की छवि बनती हो, भले लोग थाना जाने को सजा मानते हों और इन सबसे इतर जरूरत के वक्त इनसे कोई उम्मीद नहीं रखते हों, उस पुलिस का सहयोगात्मक रवैया भविष्य के लिए आशा की किरण तो है है. कोरोना के साथ या फिर उसके बाद पुलिस-पब्लिक के बीच विश्वास का जो नया आधार बना है उसे स्थायी बनाने की जरूरत है. बिहार पुलिस के पूर्व मुखिया भले ही अपने कार्यकालों में इस पर अमल नहीं देख पाए हों लेकिन कोरोना महामारी ने जो मौका दिया है, उसे संस्थागत रूप देना मौजूदा अधिकारियों की सबसे बड़ी चुनौती है.

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