बिहार में आखिर दागियों के बिना क्यों नहीं बनती सरकार
मनीष कुमार, पटना
१९ अगस्त २०२२
बिहार में महागठबंधन के साथ दूसरी बार बनी नीतीश कुमार की सरकार के 33 मंत्रियों में से 23 दागी हैं. इनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं. बिहार की सरकार और अपराधियों की साठगांठ का यह सिलसिला कब रुकेगा?
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बिहार में कानून मंत्री तो ऐसे हैं, जिन्हें वारंट जारी होने के बाद जिस दिन अपहरण के एक मामले में अदालत में सरेंडर करना था, उस दिन उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली.आरजेडी के कोटे से कानून मंत्री बनाए गए कार्तिक सिंह उर्फ कार्तिक मास्टर विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) हैं. हालांकि, उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है.
आरजेडी एमएलसी कार्तिक सिंह बिहार के बाहुबली विधायक रहे अनंत सिंह के काफी करीबी और उनके रणनीतिकार माने जाते हैं. वे पहले एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे. अनंत सिंह के संपर्क में आने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी. जिस मामले में कार्तिक के खिलाफ वारंट निकला है, वह मामला 2014 का है. उन पर बाहुबली अनंत सिंह के साथ मिलकर राजधानी पटना के राजू नामक बिल्डर को अगवा करने का आरोप है. इस मामले में विधि मंत्री कार्तिक सिंह का कहना है कि दानापुर की एक अदालत ने उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत दे दी है. उन्होंने अपने खिलाफ सारे मामले को राजनीति से प्रेरित बताया है.
10 अगस्त को महागठबंधन की सरकार बनी. 12 तारीख को कोर्ट ने उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत दी और 16 को उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली. इस प्रकरण पर पटना व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता राजेश कुमार कहते हैं, ‘‘यह कहीं से उचित नहीं ठहराया जा सकता है. उनके खिलाफ एक महीने पहले वारंट निकला था. जाहिर है, न्यायिक प्रक्रिया के तहत उन्हें आत्मसमर्पण करना था. भले ही उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत मिल गई है, लेकिन उसके बाद उन्हें सरेंडर तो करना ही होगा. आरोप के सिद्ध या खारिज होने में समय तो लगता है.''
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इस बार 72 तो पिछली सरकार में 64 फीसदी दागी मंत्री
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की नई सरकार में आरजेडी के 17 मंत्रियों में से 15 पर, जबकि जदयू के 11 में चार पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. सबसे ज्यादा, 11 मामले उप मुख्यमंत्री व लालू प्रसाद के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के खिलाफ, जबकि उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव के खिलाफ पांच मामले दर्ज हैं. आरजेडी के ही मंत्री सुरेंद्र यादव पर नौ मुकदमे दर्ज हैं. वहीं, जदयू में सबसे अधिक तीन मुकदमे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमां खान पर तथा दो-दो मामले संजय झा व मदन सहनी पर दर्ज हैं. कांग्रेस के भी दो तथा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा कोटे से एक व एक निर्दलीय मंत्री के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं.
बीजेपी-जदयू के साथ वाली पिछली एनडीए सरकार में भी दागी मंत्रियों की संख्या कम नहीं थी. नौ फरवरी, 2021 को जब कैबिनेट विस्तार के बाद उस समय बीजेपी कोटे से बने 14 में से 11 मंत्रियों तथा जदयू कोटे से बने 11 में से चार मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. साफ है, इस बार महागठबंधन की सरकार में 72 प्रतिशत तो पिछली एनडीए सरकार में 64 फीसद मंत्री दागी थे.
इन नेताओं को खानी पड़ी जेल की हवा
चारा घोटाले मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को जेल की सजा हुई. पी. चिदंबरम आईएनएक्स मामले में तिहाड़ गए. एक नजर उन नेताओं पर जिन्हें जेल जाना पड़ा.
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पी. चिदंबरम
कांग्रेस की सरकार में वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया मामले में आरोपी हैं. उन्हें इस मामले में तिहाड़ भेजा गया.
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लालू यादव
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को चारा घोटाले के तीन मामले में अब तक दोषी ठहराने के साथ ही सजा सुनाई जा चुकी है. फिलहाल वे झारखंड की जेल में बंद हैं.
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सुखराम
हाल के दशकों में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम पहले राजनेता थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला उछला और उन्हें जेल जाना पड़ा.
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जे जयललिता
रंगीन टेलिविजन खरीद घोटाले में आरोपी के तौर पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जे जयललिता को गिरफ्तार किया गया.
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एम करुणानिधि
तमिलनाडु में ओवरब्रिज घोटाले में उनके शामिल होने के आरोप में उन्हें तब गिरफ्तार किया गया जब वो विपक्ष में थे.
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शिबू सोरेन
शिबू सोरेन को अपने सहयोगी शशिकांत झा की हत्या के सिलसिले में दोषी करार दिया गया. उनके खिलाफ नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए घूस लेकर वोट देने का मामले में भी उन्हें कोर्ट ने दोषी करार दिया.
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बंगारु लक्ष्मण
बीजेपी के अध्यक्ष रहे बंगारु लक्ष्मण को तहलका स्टिंग ऑपरेशन में पैसे लेते हुए दिखाने के बाद ना सिर्फ पार्टी प्रमुख का पद छोड़ना पड़ा बल्कि उन्हें सीबीआई की विशेष अदालत ने चार साल के सश्रम कारावास की सजा भी सुनाई.
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अमर मणि त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश के नौतनवा से चार बार विधायक रहे अमर मणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी करार दिया गया.
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मोहम्मद शहाबुद्दीन
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन पर हत्या और जबरन वसूली के दर्जनों मामले चल रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल के नेता और सांसद रहे शहाबुद्दीन को जमानत पर रिहाई मिली थी लेकिन जल्दी ही सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द कर दी.
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अमित शाह
सोहराबुद्दीन शेख और उनकी पत्नी के एनकाउंटर मामले में अमित शाह को ना सिर्फ गिरफ्तार किया गया बल्कि उन्हें गुजरात से तड़ीपार भी कर दिया गया. दो साल तक बाहर रहने के बाद उन्हें अदालत से राहत मिली.
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ए राजा
यूपीए की सरकार में मंत्री रहे ए राजा को भी टेलिकॉम घोटाले में ही जेल जाना पड़ा था लेकिन फिलहाल उन्हें भी अदालत ने बरी कर दिया है.
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माया कोडनानी
2002 में गुजरात के दंगों के दौरान लोगों को भड़काने और उन्हें हिंसा के लिए उकसाने का दोषी करार दिया गया. गुजरात सरकार में मंत्री और पेशे से डॉक्टर रहीं कोडनानी को आखिरकार जेल जाना पड़ा.
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कनीमोझी
करुणानिधि की बेटी कनीमोझी को 2जी घोटाले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. हाल ही में अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.
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ओमप्रकाश चौटाला
हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला को टीचर भर्ती घोटाला में दोषी करार दिया गया. जिसके कारण उन्हें जेल में रहना पड़ा.
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सुरेश कलमाड़ी
दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हुए भ्रष्टाचार के मामलों में कांग्रेस नेता सुरेश कलमाड़ी जेल गए.
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मधु कोड़ा
मधु कोड़ा पर झारखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए आय से अधिक संपत्ति जुटाने का केस चला. इनमें से एक मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया और तीन साल की सजा दी गई.
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सुधार के प्रयासों का भी खास असर नहीं
राजनीति का अपराधीकरण रोकने की दिशा में संभवत: सबसे पहला कदम तब उठाया गया था जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर 23 सितंबर, 2013 को ईवीएम में नोटा का बटन जोड़ा गया था. इसका उद्देश्य था कि इससे पार्टियों पर दबाव बढ़ेगा और दागी प्रवृति के लोगों को टिकट नहीं देंगे. लेकिन, इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा. इसके बाद फिर पार्टियों को प्रत्याशियों के चुनाव के 48 घंटे के भीतर उनके आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया. किंतु, इससे भी कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ.
इसके अलावा भी कई निर्देश जारी किए गए. बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसके तहत राज्य सरकारें अपने हिसाब से किसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे वापस नहीं ले सकेंगी. 2017 में अदालत ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का आदेश जारी किया. विशेष अदालतें तो बन गईं, पर निपटारे की रफ्तार तेज ना हो सकीं.
राजनीतिक विश्लेषक अविलाष सरकार कहते हैं, ‘‘दागियों के मामले में पूरे देश की स्थिति एक जैसी है. आंकड़ों पर नजर डालिए, स्थिति में सुधार कहीं नहीं दिख आ रहा. इसकी मूल वजह किसी भी सरकार द्वारा इसमें दिलचस्पी नहीं लेना है. नतीजतन अदालतों में पेंडिंग मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है और उस अनुपात में उसका निपटारा नहीं होने का लाभ इन दागी राजनीतिज्ञों को मिल जाता है. आखिर, अदालतों की भी तो सीमाएं हैं.''
पिछले विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर 470 दागी प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाए थे. लेकिन, सभी ने अपनी आपराधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की. इनमें आरजेडी के सर्वाधिक 104, बीजेपी के 77, जेडीयू के 56, एलजेपी के 57, कांग्रेस के 45, आरएलएसपी के 57, बीएसपी के 29, एनसीपी के 26 और वाम दलों के नौ ऐसे प्रत्याशी थे.
अब तक पांच: नीतीश कुमार और उनके यू-टर्न
आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार का बार बार गठबंधन बदलने में शायद ही कोई मुकाबला हो. वो 17 सालों में पांच बार गठबंधन बदल चुके हैं.
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इमरजेंसी से शुरुआत
नीतीश कुमार ने राजनीति में शुरुआत इमरजेंसी का विरोध करने के लिए कई दलों के साथ आने से बनी जनता पार्टी से की थी. बाद में जब जनता पार्टी के टूटने से कई दल बने तो इन टूटे दलों में से कुछ ने मिल कर बनाई जनता दल और कुमार इसमें शामिल हो गए. 1985 में वो जनता दल से ही पहली बार विधायक बने.
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नई पार्टी का जन्म
1994 में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिल कर समता पार्टी की स्थापना की. 1996 में कुमार ने पहली बार बीजेपी का दामन थामा और एनडीए में शामिल हो गए. उन्होंने लोक सभा चुनावों में जीत हासिल की और वाजपेयी सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया.
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एक और नई पार्टी
2000 में कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत ना जुटा पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. तब भी वो बीजेपी के साथ ही थे. 2003 में उन्होंने जनता दल और समता पार्टी को मिला कर जनता दल (यूनाइटेड) की स्थापना की.
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मुख्यमंत्री पद हुआ हासिल
2005 के विधान सभा चुनावों में जेडीयू के सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद पर कुमार की वापसी हुई. बीजेपी के साथ मिल कर उन्होंने बिहार में एनडीए की सरकार बनाई.
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पहला बार बीजेपी से तकरार
2010 में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने फिर से चुनावों में जीत हासिल की और कुमार फिर मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2012 में नरेंद्र मोदी को एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनाए जाने का कुमार ने विरोध किया और 2013 में उन्होंने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया.
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पुराने प्रतिद्वंदी से मिलाया हाथ
जनता परिवार में कभी नीतीश कुमार के सहयोगी रहे लालू यादव बाद में अपनी पार्टी आरजेडी बना कर कुमार के प्रतिद्वंदी बन गए थे. लेकिन 2015 में जब एनडीए से अलग हो जाने के बाद कुमार को सत्ता पाने के लिए नए साझेदार की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने करीब 25 साल से उनके प्रतिद्वंदी रहे लालू यादव से हाथ मिला लिया. जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिल कर महागठबंधन की रचना की और कुमार फिर मुख्यमंत्री बन गए.
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एनडीए में वापसी
यह महागठबंधन सिर्फ दो सालों तक चल सका. 2017 में कुमार ने आरजेडी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए महागठबंधन को अलविदा कह दिया और एक बार फिर बीजेपी का हाथ थाम कर मुख्यमंत्री बन गए. 2020 के विधान सभा चुनावों में इसी गठबंधन की फिर से जीत हुई.
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महागठबंधन में 'वापसी'
अगस्त 2022 में कुमार ने 2017 के घटनाक्रम को दोहरा दिया, लेकिन इस बार मुख्य किरदारों की भूमिका बदल गई थी. 2017 में वो कार्यकाल के बीच में महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में चले गए थे, लेकिन 2022 में उन्होंने कार्यकाल के बीच में ही एनडीए को छोड़ कर फिर से महागठबंधन का दामन थाम लिया.
एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ है जिसमें तेज प्रताप यादव की एक विभागीय समीक्षा बैठक में उनकी बहन मीसा भारती के पति शैलेश भी शामिल होते दिख रहे हैं.
इस मामले पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री जनक राम का कहना है, ‘‘बिहार में जीजा-साले के दौर की वापसी शुरू हो गई है. अब जनता फिर से पुराना समय देखेगी.''
पत्रकार अमित रंजन कहते हैं, ‘‘वोटों की गलाकाट प्रतियोगिता के कारण दागी छवि वाले लोग सियासी दलों की मजबूरी बन चुके हैं. वोट देने के वक्त लोग भी जाति व धर्म का चश्मा पहन लेते हैं, उन्हें उनके आपराधिक कृत्य याद नहीं रहते. इन्हें स्वीकार करना हमारी नियति बन चुकी है.''