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बिहार में आम के बगानों में रोग का प्रकोप, किसान परेशान

१४ अप्रैल २०२१

बिहार के मौसम में हो रहे लगातार बदलाव के कारण इस वर्ष आम के फलों में लगने वाले रोगों से किसान परेशान हैं.

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तस्वीर: Imago/Arnulf Hettrich

किसानों का कहना है कि वातावरण में नमी के अधिक समय तक रहने के कारण आम के मंजर पर मधुआ रोग का प्रकोप रहा है. इसके बाद जब टिकोला लगा तब रेड बैंडेट केटर किलर का प्रकोप दिखने लगा है, जिससे फल खराब हो रहे हैं.

भागलपुर के रहने वाले आम के किसान रामप्रवेश सिंह कहते हैं कि मधुआ के शिशु और वयस्क कीट आम की नई शाखाओं समेत मंजर और पत्तियों का रस चूस जा रहे हैं, जिस कारण मंजर सूख कर झड़ गए. कुछ पेडों में टिकोले लगे हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुआ कीट द्वारा चिपचिपा मधु सरीखा पदार्थ छोड़ने के कारण मंजर पर फफूंद उग रहे हैं. यह पौधे की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया की बाधा बन रहे हैं.

इधर, आम के किसान इस बार रेड बैंडेट केटर किलर से भी परेशान हैं. किसान सुरेश कुमार राय कहते हैं कि इस साल मंजर के समय मधुआ ओर अब रेड बैंडेट केटर किलर से किसान परेशान हैं. आम में टिकोले लग रहे हैं और नीचे की ओर से छेद हो जा रहा है और काली धारी बन जा रही है.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के उद्यान कीट वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सिंह आईएएनएस को बताते हैं कि इस बार बिहार में अधिकांश समय मौसम में बदलाव होता रहा, जिस कारण वातावरण में नमी की मात्रा अधिक समय तक रही.

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उन्होंने कहा कि आम में मंजर लगने के समय नमी की मात्रा काफी अधिक थी जिस कारण मधुआ रोग का प्रकोप बढ़ा. उन्होंने बताया कि इस साल मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर सहित कई क्षेत्रों में रेड बैंडेट केटर किलर की भी समस्या उत्पन्न हो गई है. उन्होंने कहा कि पांच साल पहले तक यह समस्या बिहार में नहीं थी. पिछले वर्ष यह समस्या दरभंगा के कुछ इलाकों में देखी गई थी. उन्होंने बताया, "रेड बैंडेड केटर किलर (फली छेदक कीट) आम में छेद कर सुराख बना रहे हैं तथा गुठली के भीतर जाकर उसे सड़ा देते हैं, जिससे आम का फल काला पड़ने के साथ नष्ट हो जाता है. कीटों का प्रकोप संक्रामक रोग की तरह बढ़ रही है."

उन्होंने बताया कि यहां के किसानों की सबसे बड़ी समस्या है कि वे बागों में तभी जाते हैं जब फलों का समय आ जाता है. ऐसे में बागों की देखरेख नहीं हो पाती है. उनका कहना है कि रेड बैंडेट केटर किलर के टिकोलों को किसान तोडकर पानी में फेंक दे या आग में जला दें, जिससे आम के फलों को कुछ हद तक बचाया जा सकता है. फल तोड़ने के बाद ऑफ सीजन में तना एवं मोटी टहनियों के छेद में छुपे प्यूपा संग्रह कर नष्ट करें.

सिंह यह भी कहते हैं कि आम के किसानों को दवा के छिड़काव से बचना चाहिए. जब जरूरत पड़े तब ही दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आमतौर पर यहां देखा जाता है कि आम के मंजर लगे नहीं दवा का छिड़काव किया जाता है.

मनोज पाठक (आईएएनएस)

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