बिहार की राजनीति भारतीय जनता पार्टी के लिए कभी आसान नहीं रही है. लेकिन हालिया घटनाक्रम ने बिहार में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. एक के बाद एक सहयोगी उसका साथ छोड़ रहे हैं.
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बीजेपी अगर 2005 के बाद बिहार की सत्ता में आई थी, तब भी वह 'छोटे भाई' की भूमिका में रही थी. अगले लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से जिस तरह पार्टियों का बाहर जाना जारी है, उससे यह तय माना जा रहा है कि बीजेपी की 'गांठ' जरूर कमजोर हुई. यह दीगर बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद उसे एक बड़ा साथी जनता दल (युनाइटेड) के रूप में मिल गया है.
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) बीजेपी का साथ छोड़ चली गई. उसके बाद नीतीश कुमार की जेडी (यू) बीजेपी के साथ तो जरूर आई, लेकिन राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (आरएलएसपी) की नाराजगी बढ गई और अंत में उसने एनडीए से ही किनारा कर लिया.
ऐसे में कमजोर पड़ रही बीजेपी को अब बिहार एनडीए के लिए मजबूत घटक दल माने जाने वाली एलजेपी ने भी परोक्ष रूप से एनडीए छोड़ने की धमकी दे दी है. ऐसे में देखा जाए तो आने वाला समय बीजेपी के लिए आसान नहीं है. राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि बीजेपी की 'गांठ' बिहार में ढीली पड़ी है.
चुनाव में इन हारों को देख कर चौंक गई बीजेपी
2014 के आमचुनाव में सफलता के साथ ही बीजेपी ने बीते 4 सालों में अपना दायरा 21 राज्यों तक फैला दिया.फिर भी उसे कुछ करारी हारों का भी मुंह देखना पड़ा. यहां देखिए बीजेपी को चौंकाने वाली हारों को.
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दिल्ली (फरवरी 2015)
आम चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल कर केंद्र की सत्ता पर काबिज होने वाली बीजेपी को उसकी नाक के नीचे दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह से परास्त कर चौंका दिया.
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बिहार (नवंबर 2015)
कई सालों से नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में सरकार चला रही बीजेपी ने बिहार विधानसभा के चुनाव में आरजेडी और जेडीयू की ताकत को कम आंका और मुंह की खाई.
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पंजाब (मार्च 2017)
बीजेपी यहां अकाली दल के साथ गठबंधन में जूनियर सहयोगी के तौर पर सरकार चला रही थी लेकिन यहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को चुनाव में कामयाबी मिली. बिहार के बाद यह दूसरा प्रमुख राज्य था जहां बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा.
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राजस्थान उप चुनाव (फरवरी 2018)
हाल ही में राजस्थान के लोकसभा उपचुनाव में भी बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. अलवर और अजमेर की सीटों पर कांग्रेस ने उसके उम्मीदवारों को हरा दिया.
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मध्य प्रदेश उप चुनाव (फरवरी 2018)
हाल ही में मध्य प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी हार गई. शिवराज सिंह चौहान के व्यापक प्रचार अभियान के बावजूद मंगावली और कोलारास की सीटें कांग्रेस के पास ही रहीं. राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
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बिहार उप चुनाव (मार्च 2018)
लालू यादव के जेल में रहने से शायद बीजेपी ने अररिया लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों भभुआ और जहानाबाद पर हुए उपचुनाव को आसान समझ लिया था लेकिन आरजेडी अपनी दोनों सीटों को बचाने में कामयाब रही है, बीजेपी सिर्फ अपनी भभुआ सीट को बरकरार कर रख पाई.
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यूपी उपचुनाव (मार्च 2018)
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य की खाली हुई गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें भी बीजेपी अपने पास नहीं रख सकी है. बहुत कम मतदान होने पर भी समाजवादी पार्टी ने बीएसपी के सहयोग से बड़ी जीत हासिल की.
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बिहार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बीजेपी ने इतिहास से भी सीख नहीं ली है. उन्होंने कहा, "बीजेपी एक बार फिर वर्ष 2004 की तरह गड़बड़ा रही है. अपने सहयोगियों से सीट बंटवारे को लेकर बात करने में बीजेपी की मजबूरी नहीं थी, पर वह इस ओर ध्यान नहीं दे रही."
उनका कहना है कि परिवार से एक भाई के जाने से परिवार कमजोर हो जाता है, इसे नकारा नहीं जा सकता. ऐसे में एनडीए से आरएलएसपी का जाने का अगले चुनाव में तो प्रभाव पड़ेगा, लेकिन कितना पड़ेगा, उसका अभी आकलन नहीं किया जा सकता.
उन्होंने बीजेपी द्वारा गठबंधन के नेताओं से बात नहीं करने पर बड़े स्पष्ट तरीके से कहा, "दूध का जला, मट्ठा भी फूंककर पीता है, मगर बीजेपी अपने इतिहास से भी सीख नहीं ले रही है."
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त इसे 'प्रेशर पॉलिटिक्स' कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही में बीजेपी की तीन राज्यों में हार हुई है, ऐसे में एलजेपी के नेता बीजेपी पर दबाव बनाकर लोकसभा चुनाव में अधिक सीटें चाहते हैं. उन्होंने हालांकि दावे के साथ कहा, "एलजेपी अभी एनडीए को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली है, क्योंकि महागठबंधन में जितनी पार्टियों की संख्या हो गई है, उसमें एलजेपी को वहां छह-सात सीटें नहीं मिलेंगी."
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
भारतीय जनता पार्टी पूरे भारत पर छाने को बेताब है. लेकिन कई राज्य अब भी ऐसे हैं जहां गैर बीजेपी सरकारें चल रही हैं. चलिए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
पंजाब
पंजाब अब देश का अकेला ऐसा अहम राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है. राज्य की कमान मुख्यमंत्री अमिरंदर सिंह के हाथों में है. पंजाब में बीजेपी का अकाली दल के साथ गठबंधन है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
कर्नाटक
मई 2018 के विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला. राज्यपाल ने सबसे पहले बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने विश्वासमत से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन सरकार बनाने का न्यौता मिला.
तस्वीर: UNI
केरल
केरल में पी विजयन के नेतृत्व में वामपंथी सरकार चल रही है. कांग्रेस राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी है. बीजेपी भी वहां कदम जमाने की कोशिश कर रही है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
तमिलनाडु
तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी के हाथ में है. करुणानिधि की डीएमके पार्टी एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी है.
तस्वीर: Imago/Westend61
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी टीडीपी पार्टी ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ा है. चंद्रबाबू नायडू राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
तेलंगाना
तेलंगाना में टीआरएस की सरकार का नेतृत्व पार्टी प्रमुख के चंद्रशेखर राव कर रहे हैं. वह 2019 के आम चुनाव के पहले गैर बीजेपी गैर कांग्रेसी विपक्षी एकता की कोशिशों में भी जुटे हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
ओडिशा
नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओडिशा में 2000 से बीजू जनता दल की सरकार चल रही है. वहां विपक्षी पार्टियों में बीजेपी का स्थान कांग्रेस के बाद आता है.
तस्वीर: UNI
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी काफी जोर लगा रही है. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्य पर मजबूत पकड़ है, जो 2011 से सत्ता में हैं.
तस्वीर: DW
मिजोरम
कांग्रेस सरकार का नेतृत्व ललथनहवला कर रहे हैं. 2008 से वह मुख्यमंत्री पद पर हैं. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 34 सदस्य हैं.
तस्वीर: IANS/PIB
पुडुचेरी
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है जिसका नेतृत्व वी नारायणसामी (फोटो में दाएं) कर रहे हैं. तीस सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्य हैं.
तस्वीर: Reuters
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दत्त हालांकि यह भी कहते हैं कि एनडीए के साथ बिहार में जेडी (यू) जैसी बड़ी पार्टी आ गई है, ऐसे में बीजेपी छोटे दलों को तरजीह नहीं दे रही, जिस कारण आरएलएसपी ने किनारा करना उचित समझा.
बीजेपी और जेडी (यू) के नेता हालांकि एनडीए में किसी प्रकार के मतभेद से इनकार कर रहे हैं. बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बातें कहने का हक है. सभी पार्टियां अपनी दावेदारी रखती हैं और रख रही हैं, जिसे मतभेद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.