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समाज

बिहार में डायन बता महिलाओं पर अत्याचार

मनीष कुमार, पटना
७ मई २०२०

दौर चाहे कोरोना संक्रमण का ही क्यों न हो आम दिनों की तरह ही महिलाओं पर अत्याचार जारी है. घर हो या बाहर, ये कहीं सुरक्षित नहीं हैं. बाहर समाज के ठेकेदार इनपर जुल्म ढा रहे हैं तो घर में वे अपनों का निशाना बन रही हैं.

Frauen im Sabarimala Tempel Indien
तस्वीर: Reuters/Kerala Police

भारत में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में ऐसा लगता है जैसे शहर, समाज व परिवार सबकुछ शांत है. लोगों को एक ही चिंता सता रही कि कोरोना को कैसे हराया जाए लेकिन वाकई ऐसा है नहीं. महिला उत्पीड़न के मामले में इस दौरान भी समाज-परिवार अपनी ही रौ में है. वजह चाहे जो भी हो परिवार में झगड़े बढ़ गए हैं. तनाव इतना बढ़ जा रहा है कि स्थिति खुदकुशी तक आ जा रही है तो कहीं-कहीं तो जुल्म ढाने में पूरा समाज ही भाग लेने से परहेज नहीं कर रहा, वह भी इस अंदाज में कि मानो कोई उत्सव हो रहा हो.

डायन बता हो रहा महिलाओं का उत्पीड़न

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के हथौड़ी थाना क्षेत्र के अंतर्गत डकरामा गांव में एक ऐसा वाकया सामने आया जिसे देखकर स्वयं को सभ्य समाज का नागरिक कहने पर बार-बार सोचना होगा. रविवार की रात गांव के कुछ लोग तीन महिलाओं के साथ एक पुरुष को रेलवे लाइन किनारे पूजा-पाठ करते देखते हैं. उन्हें डायन का शोर मचाकर पकड़ लिया जाता है और सोमवार को लोग बकायदा मजमा लगाकर उन महिलाओं को डायन होने की जो सजा देते है उसे देखकर मध्ययुगीन बर्बर आतताइयों को भी शर्म आ जाए. महिलाओं-पुरुषों की मौजूदगी में पहले उनके बाल मूंड़ दिए जाते हैं, फिर उन्हें मानव मल पीने को दिया जाता है. महिलाएं उलटी करतीं हैं लेकिन लाठी-डंडे का भय दिखा उन्हें वह पिलाया जाता है और फिर इन महिलाओं को अर्द्धनग्न अवस्था में घुमाया जाता है. इस कुकृत्य में महिलाएं व बच्चे भी भागीदार बनते हैं. कई अन्य मामलों की तरह ही इसका वीडियो भी बनाया गया जिसे सोशल मीडिया में वायरल किया गया. मुजफ्फरपुर के एसएसपी जयंत कांत बताते हैं, ‘‘मामला सामने आने पर कार्रवाई की गई और नौ लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस ने सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है.''

कानून अपना काम करता रहेगा लेकिन समाज के इस वहशीपन की शिकार इन अधेड़ महिलाओं की पीड़ा क्या इससे कम हो सकेगी, शायद कतई नहीं. भारत में डायन बताकर महिलाओं की हत्या का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है. ऐसी घटनाएं मीडिया में सुर्खियों का रूप तो लेती हैं, लेकिन अंधविश्वास के कारण मौजूद ये प्रथा खत्म नहीं हो रही. हालांकि पिछले दशकों में डायन प्रथा की समाप्ति के लिए कानून बनाए गए हैं लेकिन महिलाओं के खिलाफ अत्याचार खत्म नहीं हुए हैं. भारत की ही तरह दुनिया के कई देशों में ये प्रथा अभी भी मौजूद हैं और मानवाधिकारों का भारी हनन हो रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/M. Lohmann

तनाव बन रहा पति-पत्नी के झगड़े का कारण

लॉकडाउन की इस अवधि में घरेलू हिंसा भी बढ़ गई है. परिवार में महिलाओं को कोई साथ नहीं दे रहा. पति-पत्नी के बीच विवाद के बाद हाथापाई व घर छोड़ने तक की नौबत आ रही है. पटना की महिला हेल्पलाइन की परियोजना प्रबंधक प्रमिला कुमारी कहती हैं, ‘‘यह तो मानना पड़ेगा कि लॉकडाउन में घरेलू हिंसा बढ़ गई है. आफिस बंद है लेकिन फोन पर घरेलू हिंसा के मामले बहुत आ रहे हैं. बात-बात में पति-पत्नी के बीच झगड़ा हो जा रहा है. पहले विवाद होता है और फिर देखते-देखते स्थिति बिगड़ जाती है. कंकड़बाग मुहल्ले में तो गेम खेलने के दौरान पति-पत्नी में मारपीट हो गई. दोनों को फोन पर समझाया.'' वे कहती हैं कि पटना जैसे शहर में बमुश्किल तीस प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी में हैं. बाकी प्राइवेट जॉब में हैं. कहीं किसी को नौकरी जाने का खतरा है तो कहीं किसी की सैलरी में कटौती हो गई है. यह तो अंतत: परिवार के मुखिया के लिए तनाव का कारण बनता ही है. यहां तो खाना बनाने पर विवाद हो जा रहा है. एक मामला तो पचीस साल की गर्भवती का आया था जो बार-बार ये बनाओ, वो बनाओ के आदेश से परेशान हो गई थी.

इसी तरह वर्किंग लेडी हैं जो लॉकडाउन के कारण वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं, लेकिन उसे परिवार में सबके लिए खाना भी बनाना पड़ रहा है. कामवाली भी नहीं आ रही. उसके न आने से किचेन से लेकर बाथरूम तक का काम करना पड़ रहा है जो वह पहले के दिनों में नहीं करती थी. इस कारण वे भी दबाव में हैं और अंतत: इगो आड़े आ जाता है जिसके परिणामस्वरुप मियां-बीवी में झगड़े की स्थिति आ जाती है. एक अन्य वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का एक मामला आया था जिसे लॉकडाउन के कारण व्हाट्सऐप पर नोटिस भेजकर निपटाया. एक महिला का बच्चा उसके पति के पास उत्तराखंड में था. कोर्ट का आदेश था कि महिला अपने बच्चे से मिल सकती है. लेकिन उत्तराखंड में होने के कारण अभी वह वहां जा नहीं सकती थी और पति बच्चे से बात कराने को राजी नहीं था. व्हाट्सऐप का सहारा लिया, नोटिस भेजी तब पति ने मां को बच्चे से बात कराया.

लॉकडाउन में भी घरेलू हिंसातस्वीर: imago images/Pacific Press Agency

फोन-ईमेल पर रोजाना आ रही शिकायत

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा भी मानती हैं कि लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है. वे कहती हैं, ‘‘दफ्तर बंद होने के कारण फोन, ई-मेल या फिर आयोग की वेबसाइट पर महिलाओं की शिकायतें मिल रहीं हैं. रोजाना दस-पंद्रह फोन आ रहे हैं. पति-पत्नी के बीच झगड़े की शिकायतें बढ़ गई है. लॉकडाउन के कारण सब घर में हैं और जाहिर है प्रेशर बढ गया है. महिला के साथ मारपीट के बाद घर से भगा देने की शिकायत भी मिल रही है. फोन पर संबंधित पक्षों को समझा कर या फिर संबंधित थाने को कहकर मामले को निपटाने की कोशिश की जाती है.''

वैसे भी लॉकडाउन के दिनों में भी महिलाओं के प्रति अपराध की स्थिति वही रही जो इससे पहले थी. दरभंगा में पत्नी से विवाद के बाद पति ने दो बेटों को होल्डर से तार निकाल करंट से मार डालने के बाद पत्नी कंचन की जान लेने की कोशिश की लेकिन वह किसी तरह झुलस कर रह गई. पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज में मामूली बात पर पति ने पत्नी को चाकू मारने के बाद खुद को आग लगा ली. जमुई में दहेज प्रताड़ना के कारण पचीस वर्षीया पिंकी ने चार साल के बेटे आयुष के साथ ट्रेन के आगे कूद कर जान दे दी. न जाने ऐसी कितनी घटनाएं हुईं जो एक सभ्य समाज पर कलंक के लिए काफी हैं. हाल में राष्ट्रीय महिला आयोग ने लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा में बारी वृद्धि की रिपोर्ट दी थी. 27 फरवरी से 22 मार्च तक के 396 मामलों के मुकाबले 23 मार्च से 16 अप्रैल तक घरेलू हिंसा के 587 मामले दर्ज किए गए.

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