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समाज

बिहार में दलित महिलाएं बजा रहीं बैंड

२३ जनवरी २०१८

बिहार के गांवों में अब महिलाएं सशक्त हो रही हैं. इसी का नतीजा है तस्वीर में नजर आ रहा यह बैंड. इन महिलाओं को इस तरीके से गाने बजाने में अब कोई झिझक नहीं होती.

Indien The Sargam Mahila Band
तस्वीर: Nari Gunjan

बिहार की राजधानी पटना के पास बसे गांव धिबारा में इस सरगम महिला बैंड को बने अब दो साल से भी अधिक का समय हो गया है. दो साल पहले सुधा वर्गीज ने इसे बनाया था. वर्गीज यहां समाजसेवी संस्था "नारी गुंजन" चलाती हैं. छह महीने की मेहनत और प्रैक्टिस से बाद इन महिलाओं ने संगीत वादन के गुर सीखे. बैंड की एक सदस्य सविता देवी बताती हैं कि शुरुआत में तो इस 10 सदस्यों वाली बैंड को उनके परिवार और गांववाले बेहद ही हिकारत भरी नजरों से देखते थे. सविता कहती हैं, "लोग हमारा मजाक उड़ाया करते थे, हम पर हंसा करते थे लेकिन हम हमेशा सोचते थे कि हम घरों में क्यों बैठें?" उन्होंने कहा, "हम सोचते थे कि आज जब महिलाएं हवाई जहाज उड़ा रहीं हैं तो क्या हम बैंड भी नहीं बजा सकते."

तस्वीर: Nari Gunjan

सुधा वर्गीज बताती हैं, "इस बैंड में शामिल महिलाएं महादलित श्रेणी से आती हैं. ऐसे में इनके लिए किसी शादी, पार्टी या किसी अन्य समारोह में लोगों के सामने परफॉर्मेंस देना एक बहुत बड़ा मौका होता है." अब बैंड बजा रही महिलाएं पहले खेतों में काम करती थीं और दिहाड़ी कमाती थीं लेकिन अब जब वे गाना बजाना करती हैं तो उन्हें एक अलग तरह की आजादी और इज्जत महसूस होती है. वर्गीज एक कैथोलिक नन हैं जो दलित जाति की महिलाओं के लिए पिछले कई दशकों से काम कर रही हैं.

हिंदू समाज में दलितों को सबसे निचले तबके का माना जाता रहा है. अब तमाम कानून और जागरुकता के बाद इसमें बदलाव तो आया है लेकिन अब भी कुछ इलाकों में महिलाओं और दलितों के खिलाफ अत्याचार बना हुआ है. एडवोकेसी समूह प्लान इंडिया के मुताबिक, बिहार महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के मामले में देश के पिछड़े राज्यों में से एक है. हालांकि इस बैंड की महिलाओं का अब खुद पर विश्वास बढ़ा है. सरगम महिला बैंड की महिलाएं अपनी हर परफॉर्मेंस से करीब 1500 रुपये कमा लेती हैं. वर्गीज बताती हैं कि अब इस बैंड में गाना बजाना इन महिलाओं का मुख्य काम बन चुका है. वर्गीज को इस क्षेत्र में काम करने के लिए भारत सरकार पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाज चुकी है.

बैंड की महिलाओं के लिए पैसे कमाने का नया जरिया तो आया ही है, उनके सामाजिक जीवन में भी बदलाव हो रहा है. बैंड की एक सदस्य देवी बताती हैं, "अपना रोजाना का काम खत्म करके हम महिलाएं मिलकर अभ्यास भी करते हैं क्योंकि हम सब के लिए पैसा कमाना जरूरी है. इन पैसों से हम अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं, बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं और स्वयं के लिए भी कुछ कर सकते हैं."

एए/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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