बिहार के गांवों में अब महिलाएं सशक्त हो रही हैं. इसी का नतीजा है तस्वीर में नजर आ रहा यह बैंड. इन महिलाओं को इस तरीके से गाने बजाने में अब कोई झिझक नहीं होती.
तस्वीर: Nari Gunjan
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बिहार की राजधानी पटना के पास बसे गांव धिबारा में इस सरगम महिला बैंड को बने अब दो साल से भी अधिक का समय हो गया है. दो साल पहले सुधा वर्गीज ने इसे बनाया था. वर्गीज यहां समाजसेवी संस्था "नारी गुंजन" चलाती हैं. छह महीने की मेहनत और प्रैक्टिस से बाद इन महिलाओं ने संगीत वादन के गुर सीखे. बैंड की एक सदस्य सविता देवी बताती हैं कि शुरुआत में तो इस 10 सदस्यों वाली बैंड को उनके परिवार और गांववाले बेहद ही हिकारत भरी नजरों से देखते थे. सविता कहती हैं, "लोग हमारा मजाक उड़ाया करते थे, हम पर हंसा करते थे लेकिन हम हमेशा सोचते थे कि हम घरों में क्यों बैठें?" उन्होंने कहा, "हम सोचते थे कि आज जब महिलाएं हवाई जहाज उड़ा रहीं हैं तो क्या हम बैंड भी नहीं बजा सकते."
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सुधा वर्गीज बताती हैं, "इस बैंड में शामिल महिलाएं महादलित श्रेणी से आती हैं. ऐसे में इनके लिए किसी शादी, पार्टी या किसी अन्य समारोह में लोगों के सामने परफॉर्मेंस देना एक बहुत बड़ा मौका होता है." अब बैंड बजा रही महिलाएं पहले खेतों में काम करती थीं और दिहाड़ी कमाती थीं लेकिन अब जब वे गाना बजाना करती हैं तो उन्हें एक अलग तरह की आजादी और इज्जत महसूस होती है. वर्गीज एक कैथोलिक नन हैं जो दलित जाति की महिलाओं के लिए पिछले कई दशकों से काम कर रही हैं.
चमार पॉप: दलितों की नई आवाज
पंजाब की गिन्नी माही उभरती हुई गायिका हैं. लेकिन उनके गीत खास हैं जो भारत में जातिवाद पर चोट करते हैं और दलितों के हक की आवाज उठाते हैं.
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संगीत बना माध्यम
17 साल की गिन्नी का नाता पंजाब से है और अपने गीतों के जरिए वह निचली कही जाने वाली चमार जाति के लोगों के अधिकारों की आवाज को बुलंद कर रही हैं.
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बिरादरी का मान
माही कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि मेरी बिरादरी का मान बढ़े और उसे पूरी दुनिया में जाना जाए.”
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प्रेरणा
दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. अंबेडकर को गिन्नी माही अपनी प्रेरणा मानती हैं और उन्हीं के पदचिन्हों पर चलना चाहती हैं.
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लोकप्रियता
यूट्यूब पर उनके वीडियो पसंद किए जा रहे हैं. सितंबर में ही उन्होंने दिल्ली में अपनी पहली परफॉर्मेंस दी, जिसे खूब पसंद किया गया.
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भेदभाव
जागरूकता फैलाने के प्रयासों के बावजूद भारत में दलितों के साथ भेदभाव और हिंसा की खबरें अकसर आती रहती हैं.
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मीडिया में हिस्सेदारी
दलित कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यधारा के मीडिया में उन्हें उचित स्थान नहीं दिया जाता. इसलिए इन दिनों दलितों की अपनी कई पत्रिकाएं और पत्र भी प्रकाशित हो रहे हैं.
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दलित फूड्स
दलित विचारक चंद्रभान प्रसाद ने हाल में दलित फूड्स के नाम से खाद्य उत्पादों की एक सीरिज शुरू की है. वो दलितों में उद्यमशीलता बढ़ाने पर जोर देते हैं.
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बंद हो जुल्म
गिन्नी माही कहती है कि दलितों पर होने वाले जुल्म बंद होने चाहिए. पंजाब में जनसंख्या अनुपात के हिसाब से दलितों की सबसे ज्यादा आबादी है.
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हिंदू समाज में दलितों को सबसे निचले तबके का माना जाता रहा है. अब तमाम कानून और जागरुकता के बाद इसमें बदलाव तो आया है लेकिन अब भी कुछ इलाकों में महिलाओं और दलितों के खिलाफ अत्याचार बना हुआ है. एडवोकेसी समूह प्लान इंडिया के मुताबिक, बिहार महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के मामले में देश के पिछड़े राज्यों में से एक है. हालांकि इस बैंड की महिलाओं का अब खुद पर विश्वास बढ़ा है. सरगम महिला बैंड की महिलाएं अपनी हर परफॉर्मेंस से करीब 1500 रुपये कमा लेती हैं. वर्गीज बताती हैं कि अब इस बैंड में गाना बजाना इन महिलाओं का मुख्य काम बन चुका है. वर्गीज को इस क्षेत्र में काम करने के लिए भारत सरकार पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाज चुकी है.
बैंड की महिलाओं के लिए पैसे कमाने का नया जरिया तो आया ही है, उनके सामाजिक जीवन में भी बदलाव हो रहा है. बैंड की एक सदस्य देवी बताती हैं, "अपना रोजाना का काम खत्म करके हम महिलाएं मिलकर अभ्यास भी करते हैं क्योंकि हम सब के लिए पैसा कमाना जरूरी है. इन पैसों से हम अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं, बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं और स्वयं के लिए भी कुछ कर सकते हैं."
जब दलितों ने जताया जमकर विरोध
लंबे समय तक हाशिए पर रहा दलित समाज अब राजनीतिक रूप से जागरुक नजर आने लगा है. पिछले कुछ समय में ऐसे कई मौके आए जब दलितों ने अपनी आवाज बुलंद की और विरोध प्रदर्शन भी किए. एक नजर दलित आंदोलनों पर
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दलित-मराठा टकराव (जनवरी 2018)
महाराष्ट्र में साल 2018 की शुरुआत दलित-मराठा टकराव के साथ हुई. भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं सालगिरह के मौके पर पुणे के कोरेगांव में दलित और मराठा समुदायों के बीच टकराव हुआ जिसमें एक युवक की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा और पूरे महाराष्ट्र में इसकी लपटें नजर आने लगीं. दलितों संगठनों ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया. इस बीच प्रदेश के अधिकतर इलाकों से हिंसा, आगजनी की खबरें आती रहीं.
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सहारनपुर में ठाकुर-दलित हिंसा (मई 2017)
साल 2017 में उत्तर प्रदेश का सहारनपुर दलित विरोध का केंद्र बना रहा. क्षेत्र में दलित-ठाकुरों के बीच महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम के बीच टकराव हुआ. इसके चलते दोनों पक्षों के बीच पथराव, गोलीबारी और आगजनी भी हुई. विरोध इतना बढ़ा कि मामला दिल्ली पहुंच गया. जातीय हिंसा के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर दलितों की भीम आर्मी ने बड़ा प्रदर्शन किया.
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गौ रक्षकों के खिलाफ गुस्सा (जुलाई 2016)
जुलाई 2016 में गुजरात के वेरावल जिले के ऊना में कथित गौ रक्षकों ने गाय की खाल उतार रहे चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की थी. इनमें से एक युवक की मौत हो गई थी. घटना का वीडियो वायरल हुआ. गुजरात में दलित समुदायों ने इसका जमकर विरोध किया. विरोध प्रदर्शन के दौरान करीब 16 दलितों ने आत्महत्या की कोशिश भी की. इस मामले की गूंज संसद तक पहुंची.
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कोपर्डी गैंगरेप केस (जुलाई 2016)
यह एक ऐसा मामला था जिसमें मराठा समुदाय की ओर से एससी/एसटी कानून को खत्म किए जाने की मांग की गई. 13 जुलाई 2016 को मराठा समुदाय की एक 15 साल वर्षीय लड़की को अगवा कर उसका गैंगरेप किया गया. जिसके बाद उसकी हत्या कर दी गई. महाराष्ट्र में इस घटना के खिलाफ काफी प्रदर्शन हुआ था जिसने बाद में मराठा आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया. मामले में तीन दलितों को दोषी करार दिया गया जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई.
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रोहित वेमुला की आत्महत्या (जनवरी 2016)
हैदराबाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देश में दलितों और छात्रों के बीच एक नया आंदोलन छेड़ दिया. यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने प्रशासन पर भेदभाव का आरोप लगाया. रोहित ने अपने सुसाइड नोट में विश्वविद्यालय को जातिवाद, चरमपंथ और राष्ट्रविरोधी तत्वों का गढ़ बताया था. इसके बाद देश भर में दलित आंदोलन हुए और मामला देश की संसद तक पहुंचा.
तस्वीर: DW/M. Krishnan
खैरलांजी हत्याकांड (सितंबर 2006)
जमीनी विवाद के चलते महाराष्ट्र के भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में 29 सितंबर को एक दलित परिवार के 4 लोगों की हत्या कर दी गई थी. परिवार की दो महिला सदस्यों को हत्या के पहले नंगा कर शहर भर में घुमाया गया था. इस घटना के विरोध में पूरे महाराष्ट्र में दलित प्रदर्शन हुए थे. सीबीआई ने अपनी जांच में गैंगरेप की बात को नकार दिया था. दोषियों को मौत की सजा मिली थी, जिसे बंबई हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया.