बिहार में एक के बाद एक आग लगने की कई घटनाओं के बाद अब सरकार ने सुबह नौ से शाम छह बजे के बीच आग जलाने पर पाबंदी लगा दी है. राज्य के लोग इस दौरान हवन, पूजा और आरती भी नहीं कर सकेंगे.
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दिन में आग न जलाने के सरकारी आदेश का उल्लंघन करने की स्थिति में दो साल तक जेल की सजा काटनी पड़ सकती है. बीते दो सप्ताह के दौरान राज्य में आग लगने की विभिन्न घटनाओं में अब तक 66 लोगों के अलावा 1200 से ज्यादा पशुओं की जल कर मौत हो चुकी है. इस महीने गरमी की शुरूआत के साथ ही राज्य के विभिन्न इलाकों में आग लगने की घटनाएं बेतहाशा बढ़ी हैं. आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं पटना, रोहतास, भोजपुर, नालंदा, बक्सर और भभुआ जिलों को मिला कर बने पटना डिवीजन में हुई हैं.
इन तमाम घटनाओं की समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री ने उक्त निर्देश जारी करने का फैसला किया. अभी दो दिन पहले बेगूसराय जिले में आग से तीन सौ मकान जल कर नष्ट हो गए थे. ज्यादातर मामलों में छोटी-सी चिंगारी ही तेज हवाओं के साथ मिल कर कहर बरपा रही है. ऐसी कई घटनाओं के अध्ययन के बाद सरकार ने दिन के समय आग जलाने पर पाबंदी लगाने का फैसला किया है.
गर्मी और तेज हवा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख सचिव व्यासजी की ओर से जारी इस आदेश में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के लोग सुबह नौ बजे से शाम छह बजे के बीच खाना तक नहीं पका सकते. यानी अब उनको खाना पकाने का काम नौ बजे से पहले या शाम छह बजे के बाद करना होगा. सरकार ने खाना पकाने के अलावा उन तमाम धार्मिक त्योहारों पर भी पाबंदी लगा दी है जिसमें हवन आदि के लिए आग जलाई जाती है. उक्त आदेश में आम लोगों से कहा गया है कि वे सुबह नौ बजे से पहले ही हवन और पूजा-पाठ का काम निपटा लें. नीतीश सरकार की दलील है कि दिन में चलने वाली तेज हवाओं का साथ पाकर खाना बनाने वाली आग से निकली चिंगारी भयावह रूप धारण कर आसपास के मकानों तक फैल जाती है.
ओरांग उटान का दम घोंटती जंगल की आग
सुमात्रा और कालीमंतन (बोर्नियो) द्वीपों पर जंगल की भीषण आग ने इंसानों ही नहीं पेड़ पौधों और जानवरों के लिए भी भारी मुश्किलें पैदा की हैं. ओरांग उटान की जिंदगी जंगल की आग ने दूभर कर दी है.
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घर और आबादी दोनों पर खतरा
ओरांग उटान के लिए जंगल में लगने वाली आग उनके घर की बर्बादी और संख्या में कमी का कारण बन रही है. 2008 के आंकड़ों के मुताबिक बोर्नियो के जंगलों में करीब 56,000 ओरांग उटान थे. हालांकि जंगलों के कटने और लगभग हर साल होने वाली आग की घटनाओं से उनकी आबादी अब 30,000 से 40,000 के बीच ही रह गई है.
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सेहत पर असर
बोर्नियो ओरांग उटान सर्वाइवल फाउंडेशन के मुताबिक न्यारु मेंतेंग इलाके में स्वास्थ्य लाभ केंद्र में रह रहे ओरांग उटान के 16 बच्चे धुएं के कारण स्वास्थ्य समस्याओं के जूझ रहे हैं. जंगल की आग में कितने ओरांग उटान मारे गए हैं, इसकी ठीक जानकारी अभी नहीं है.
तस्वीर: Reuters/FB Anggoro/Antara Foto
सोने का समय
ओरांग उटान सामान्य दिनों में शाम पांच बजे सोते हैं और सुबह 4 से 5 के बीच उठ जाते हैं. लेकिन आग की स्थिति में धुएं और धुंध के रहते वे ज्यादा सोने लगते हैं. ऐसे में वे दोपहर दो-ढाई बजे सो जाते हैं और सुबह 6 बजे उठते हैं.
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कम ऊंचाई पर घर
धुंध के समय ओरांग उटान अपने बसेरे भी सामान्य से कम ऊंचाई पर बनाते हैं. साथ ही देखा गया है कि उनके खानपान के तरीके में परिवर्तन आने लगता है.
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घर से जुदाई
आग लगने और धुंध बढ़ने की स्थिति में ओरांग उटान जिंदा रहने और पेट भरने के लिए अक्सर जंगल छोड़कर इंसानी बस्तियों की तरफ बढ़ने लगते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Fully Handoko
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आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख सचिव व्यास जी कहते हैं, "हमने तमाम पहलुओं पर विचार के बाद यह पाबंदी लगाने का फैसला किया है. ज्यादातर मामलों में आग खाना पकाने की वजह से शुरू हुई थी." एक सवाल पर उनका कहना था कि इस पाबंदी का उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों पर आधारित है. सरकार ने बिजली विभाग को राज्य के विभिन्न इलाकों में बिजली के खंभों की जांच कर ढीले तारों को बदलने का भी निर्देश दिया है. इससे पहले रविवार को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी आग की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए आग जलाने पर नियंत्रण करने की सलाह दी थी. मुख्यमंत्री ने आग की वजह से मरने वालों के परिजनों को मुआवजा देने का भी एलान किया है. उन्होंने फायर बिग्रेड को आग पर काबू पाने वाले उपकरणों की खरीद के लिए भी शीघ्र प्रस्ताव भेजने को कहा है.
पालनपरसंशय
नीतीश सरकार ने पाबंदी का आदेश तो जारी कर दिया है लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसके पालन पर संशय है. जहानाबाद जिले के राम प्रसाद राजभर कहते हैं, "सरकार का आदेश सुनने में अच्छा लगता है. लेकिन देखना यह है कि कितने लोग इसका पालन करते हैं? इसका पालन करने में कई व्यवहारिक दिक्कतें हैं." राम प्रसाद का मकान भी इस सप्ताह लगी आग में जल कर राख हो गया था. वह बताते हैं कि वह आग भी एक घर में खाना बनाते समय उड़ी चिंगारी से ही लगी थी.
ग्रामीण इलाकों में तैनात पुलिस वाले इस सरकारी आदेश से परेशान हैं. उनका कहना है कि इसे लागू करना बेहद मुश्किल है. एक पुलिस वाला नाम नहीं बताने की शर्त पर कहता है, "अब हम घर-घर जाकर यह तो नहीं देख सकते कि कब किसके घर में खाना बन रहा है?" लेकिन सरकार को उम्मीद है कि सजा के डर से लोग बेमन से ही सही, उक्त आदेश का उल्लंघन करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे.
जब आग उगले धरती
हवाई के सबसे बड़े द्वीप में किलोवेया ज्वालामुखी आग उगल रहा है. यह दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है. किलोवेया का हजारों डिग्री गर्म लावा बहते हुए रिहाइशी इलाकों में जा पहुंचा है.
तस्वीर: Reuters/Marco Garcia
चपेट में आया मकान
किलोवेया से जब लावा बहने लगा तब रिसर्चरों को उम्मीद नहीं थी कि ये पास के गांव पाहोआ तक पहुंचेगा. लेकिन धीरे धीरे लावे ने गांव को अपने चपेट में लिया. लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है लेकिन कई घर जलकर लावे में मिल गए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आग की लपटें
किसी बहते द्रव की तरह लावा ढलान में आगे बढ़ता गया और समतल जगह में फैलता गया. किलोवेया ज्वालामुखी 1983 से सक्रिय तो है लेकिन इसमें 20 साल तक कोई विस्फोट नहीं हुआ. इस साल जून में किलोवेया से लावा बाहर आने लगा.
तस्वीर: picture alliance/AP/David Jordan
आबादी के लिए खतरा
तस्वीर में जिन जगहों पर धुआं दिख रहा है वहां से गुजरता हुआ लावा आगे बढ़ रहा है. अक्टूबर 2014 में लावा पाहोआ गांव से कुछ ही मीटर दूर था. नंवबर में यह गांव में घुस गया. फिलहाल लावा एक जगह रुका हुआ है.
तस्वीर: Reuters/U.S. Geological Survey
सामने आई हर चीज तबाह
लावे की नदी कुछ जगहों पर 50 मीटर चौड़ी है. इसके आगे बढ़ने की रफ्तार 16 मीटर प्रतिघंटा आंकी गई. इसके रास्ते में जो भी चीज आई वो कुछ ही सेकंडों के भीतर लावे में बदल गई.
तस्वीर: Reuters/U.S. Geological Survey
उठती लपटें
लावे के सबसे आगे वाले हिस्से पर दिखती आग की लपटें बता रही हैं कि पिघला पदार्थ वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन की मदद से सुलग रहा है. लावे का तापमान ज्वालामुखी की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है.
आम तौर पर हवाई से निकलने वाला लावा प्रशांत महासागर की तरफ बहता है. खौलता लावा जब समुद्र के ठंडे पानी से टकराता है तो अपार ऊर्जा भाप बनकर निकलती है. लावे और पानी के तापमान में भारी अंतर की वजह से विस्फोट भी होते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP/David Jordan
धरती के गर्भ में छुपे राज
वैज्ञानिकों के मुताबिक ज्वालामुखी विस्फोट के सहारे धरती खुद को संतुलित करती है. जमीन में मौजूद भारी तत्व हमेशा धरती के गर्भ की ओर बहते हैं. ज्वालामुखी के सहारे हल्के तत्व बाहर आते हैं.
जहां कभी हरियाली लहलहाती थी अब वहां काला कालीन बिछा है. ठंडा होने के बाद यह लावा या तो मिट्टी में बदल जाएगा या फिर चट्टान बन जाएगा. लावा कब ठंडा होगा, इसका अनुमान ज्लावामुखी से इसकी दूरी और बहाव के व्यवहार से लगाया जाता है.
तस्वीर: Reuters/U.S. Geological Survey/Handout
आपात इंतजाम
लावे के बहाव को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. पाहोआ में बिजली के खंबों को लावे के बचाने के लिए खास तौर पर मिट्टी और इंसुलेटर से ढंका गया.