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बिहार विधानसभा में दागियों-अमीरों की भरमार

मनीष कुमार, पटना
१३ नवम्बर २०२०

चुनाव के बाद सत्रहवीं बिहार विधानसभा की तस्वीर बता रही है कि सदन में गुलाबी रंग तो और चटक नहीं हो सका, लेकिन दागियों-अमीरों की तादाद जरूर बढ़ गई. इतना ही नहीं यह पिछली बार के मुकाबले थोड़ी और उम्रदराज भी नजर आएगी.

Indien | JD-U Anhänger
तस्वीर: IANS

हाल में हुए चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बिहार की राजनीति में दबंगों का रुतबा बढ़ता ही जा रहा है. नए सदन में दागियों-अमीरों की संख्या में इजाफा हुआ है. चुनाव के बाद की हालत चुनाव के पहले से बेहतर नहीं हुई है. बात भले ही दागियों से दूर रहने की जाती हो, किंतु मुख्यधारा की किसी भी पार्टी को उनसे कोई परहेज नहीं है. कारण साफ है, राजनीतिक पार्टियों को टिकट देते वक्त केवल अपने प्रत्याशी की येन-केन प्रकारेण विजयी होने की संभावना (विनिबिलिटी) ही दिखती है. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भी इन्हें विचलित नहीं कर सका. बिहार के मतदाता सिर्फ इस बात पर सुकून कर सकते हैं कि पढ़े-लिखे सदस्यों की संख्या भी एक हद तक बढ़ी है. पिछली विधानसभा में जहां 138 सदस्य स्नातक थे वहीं इस बार 2020 में 149 ऐसे विधायक चुने गए हैं.

राजद सबसे दागी तो भाजपा सबसे अमीर

चुनाव परिणामों के विश्लेषण पता चलता है कि नई विधानसभा के 68 प्रतिशत माननीयों के खिलाफ अदालतों में आपराधिक मामले दर्ज हैं. नई विधानसभा में ऐसे सदस्यों की संख्या में दस फीसद का इजाफा हुआ है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 243 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के एक और राजद के एक सदस्य को छोड़ चुने गए 241 विधायकों के हलफनामे के अनुसार 163 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें 51 प्रतिशत यानी करीब 123 पर हत्या, अपहरण, हत्या के प्रयास या महिलाओं के प्रति अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं. इनमें 19 पर हत्या, 31 पर हत्या की कोशिश तथा आठ पर महिलाओं के प्रति अपराध का मुकदमा लंबित है. पिछले चुनाव यानी 2015 में ऐसे सदस्यों की संख्या 143 यानी 40 फीसद, 2010 में 133 तथा 2005 में 100 थी. 2020 की स्थिति की 2015 से तुलना में इनकी संख्या में 11 प्रतिशत का इजाफा यह बताने को काफी है कि राजनीति में ऐसे तत्वों की धमक बढ़ती ही जा रही है.

नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ने की एक दूसरे की मददतस्वीर: IANS

अगर दागी विधायकों की दलगत उपस्थिति को देखें तो राजद इसमें सबसे आगे दिखता है. इसके चुने गए सदस्यों में 73 फीसद यानी 44 ऐसे ही विधायक हैं. वहीं भाजपा के 47, जदयू के 20, कांग्रेस के 10 तथा सीपीआई (एमएल) के आठ चुने गए सदस्यों का क्रिमिनल रिकॉर्ड है. अहम यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की एएमआइएमआइएम पार्टी के चुने गए सभी पांच विधायकों के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज हैं. असलहा धारकों के संदर्भ में देखें तो नए चुने गए विधायकों में 48 इसके शौकीन हैं. यह सुखद है कि ऐसे माननीयों की संख्या में कमी आई है. 2015 की विधानसभा में 63 ऐसे सदस्य थे जिनके पास आग्नेयास्त्रों के लाइसेंस थे. इस बार चुने गए विधायकों में असलहों के सबसे ज्यादा शौकीन भाजपा के 21 विधायक हैं जबकि राजद में इनकी संख्या 15 और जदयू में सात है.

अगर धनबलियों की बात करें तो इनकी संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई है. सोलहवीं विधानसभा में 162 यानी 67 प्रतिशत ऐसे सदस्य थे जिनकी संपत्ति एक करोड़ से अधिक थी. थोड़ा और पीछे देखें तो 2010 में 44 तो 2005 में मात्र आठ विधायक ही करोड़पति थे. जबकि इस बार इनकी संख्या 194 यानी करीब 81 फीसद हो गई. भाजपा इसमें अव्वल दिखती है. भाजपा के सर्वाधिक 89, जदयू के 88, राजद के 87 तथा कांग्रेस के 74 प्रतिशत सदस्यों की संपत्ति एक करोड़ या उससे अधिक है. अर्थात भाजपा के विजयी हुए 74 सदस्यों में 66, जदयू के 43 में 37, राजद के 75 में 62 व कांग्रेस के 19 में 15 करोड़पति हैं. विधायकों की औसत संपत्ति भी इस बार बढक़र 4.32 करोड़ हो गई है. इस बार राजद के टिकट पर पटना के मोकामा से चुने गए अनंत सिंह ऐसे माननीय हैं जो सबसे अधिक दागी और सबसे बड़े करोड़पति हैं. इनके खिलाफ हत्या, अपहरण व आर्म्स एक्ट के 38 मामले दर्ज हैं. वहीं ये 68 करोड़ से अधिक की संपत्ति के स्वामी हैं.

महिलाओं की बड़ी भागीदारी लेकिन प्रतिनिधित्व नहींतस्वीर: Prakash Singh/Getty Images/AFP

आधी आबादी को अपेक्षित सफलता नहीं

राज्य में स्थानीय निकायों में पचास प्रतिशत आरक्षण मिलने के बाद राजनीति में आधी आबादी की धमक बढ़ी है. एक ओर वे जहां बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा ले रहीं हैं वहीं अन्य वैधानिक संस्थाओं में उनकी दमदार उपस्थिति दर्ज हुई है. यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी में भी इनकी हिस्सेदारी बढ़ी. भले ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने 33 फीसदी महिलाओं को पार्टी की उम्मीदवारी देने की हिम्मेत न दिखाई हो, इस बार पार्टियों ने महिलाओं को टिकट देने में पहले से ज्यादा उदारता दिखाई. करीब पंद्रह दलों ने 370 महिलाओं को मैदान में उतारा.

2010 में हुए विधानसभा चुनाव में 307 मैदान में थीं जिनमें 34 विधायक बनने में कामयाब रहीं. वहीं 2015 में चुनाव लड़ रहीं 273 महिलाओं में से 28 को जीत हासिल हुई. जाहिर है, समय के साथ इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई. किंतु 2015 की तुलना में इस बार आधी आबादी की स्ट्राइक रेट में डेढ़ फीसद की कमी आ गई. तात्पर्य यह कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 25 महिलाएं ही विजयी हो सकीं. इस बार महिलाओं को सबसे ज्यादा टिकट जदयू ने दिया था. जदयू ने 22, भाजपा ने 13, राजद ने 16, कांग्रेस ने सात व लोजपा ने सर्वाधिक 23 महिलाओं को मैदान में उतारा था. इस बार के चुनाव में जदयू की आठ, भाजपा की छह, राजद की सात, कांग्रेस की दो तथा वीआइपी व हम की एक-एक महिला उम्मीदवार ही कामयाब हो सकीं. जाहिर है आधी आबादी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली.

एनडीए की जीत में महिलाओं की अहम भूमिकातस्वीर: Prakash Singh/Getty Images/AFP

नए चेहरों व शिक्षितों पर बढ़ा भरोसा

इस साल के विधानसभा चुनाव में कई पार्टियों ने अपने सीटिंग विधायक को बदल दिया. उनकी जगह नए चेहरे को तवज्जो दी गई. हालांकि, यही वजह रही कि इस बार बागियों की संख्या में खासा इजाफा हो गया. कमोबेश सभी पार्टियों को बागियों का सामना करना पड़ा और इन्हीं बागियों को तवज्जो दे लोजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और यह भाजपा व जदयू के लिए नुकसानदेह भी साबित हुआ. वैसे इस बार 95 ऐसे चेहरे हैं जो पहली बार विधानसभा की देहरी पर कदम रखेंगे. इनमें सर्वाधिक 35 सदस्य राजद के हैं. राजद ने अपने 144 प्रत्याशियों में 63 नए लोगों को टिकट दिया था. इसी तरह जदयू के 12, भाकपा-माले के आठ व भाजपा के 22 नए चेहरे विधानसभा में नजर आएंगे. इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने दिग्गजों को पटखनी दी. एक बात और, नई विधानसभा में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे माननीय नजर आएंगे. पिछले परिणामों को देखें तो 2005 में जहां 110 शिक्षित विधानसभा तक पहुंचे थे तो वहीं 2020 में ऐसे लोगों की संख्या 149 हो गई है.

इस बार 22 पीएचडी, तीन डॉक्टर, तीन एमबीए, तीन लॉ डिग्रीधारी तथा 76 स्नातक विधानसभा के लिए चुने गए. पीएचडी धारकों में दीघा (पटना) से भाजपा के संजीव चौरसिया, फतुहा (पटना) से राजद के रामानंद यादव व पालीगंज (पटना) विधानसभा क्षेत्र से भाकपा-माले के संदीप सौरभ शामिल हैं. आयु के हिसाब से देखें तो पिछली बार जहां 49 विधायक 61 से 70 वर्ष की आयु के थे वहीं इस बार यह संख्या बढ़कर 58 हो गई है. प्रतिशत के तौर पर आकलन करें तो 40 से 60 आयु वर्ग के विधायकों की संख्या 61.72 प्रतिशत है. लोकतंत्र में हरेक नागरिक को चुनाव लड़ने का अधिकार है. इसी तरह किसी को अपने फायदे के लिए वोटरों को किसी भी रूप में प्रभावित करने का अधिकार नहीं है. लेकिन चुनाव नतीजे यही बताते हैं कि हाल के चुनावों में धन व बाहु बल दोनों की भूमिका रही है.

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