पश्चिम बंगाल के बाद अब पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी का नया कुरुक्षेत्र बनता नजर आ रहा है. बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में जो कुछ हुआ वही अब त्रिपुरा में दोहराया जा रहा है.
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बंगाल में टीएमसी पर राजनीतिक हिंसा का आरोप लगाने वाली बीजेपी पर अब त्रिपुरा में टीएमसी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न और उन्हें बेवजह गिरफ्तार करने के आरोप लग रहे हैं. सांसद अभिषेक बनर्जी समेत कई नेता एक सप्ताह के दौरान दो-दो बार राज्य का दौरा कर चुके हैं. त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी टीएमसी के बढ़ते असर और बंगाल के चुनाव नतीजों से डर गई है?
त्रिपुरा में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं. टीएमसी की बढ़ती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अब बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी इसी सप्ताह राज्य का दौरा करने वाले हैं. इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभिषेक पर बीते रविवार को अगरतला में हुए हमले के लिए सीधे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहराया है.
विवाद की शुरुआत कहां से हुई?
इस विवाद की शुरुआत तो बीती 21 जुलाई को उस समय हुई जब ममता बनर्जी की सालाना शहीद रैली के वर्चुअल भाषण का प्रसारण कई अन्य राज्यों के साथ त्रिपुरा में भी किया गया था. उसी दिन कथित बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कई जगह टीएमसी के लोगों पर हमले किए और पोस्टर फाड़े. उसके बाद कुछ लोगों को कोरोना की पाबंदियों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया गया था. उसके बाद ही राज्य में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के लिए पहुंची प्रशांत किशोर उर्फ पीके की टीम के 22 सदस्यों को पहले कोरोना की जांच के नाम पर होटल में नजरबंद रखा गया और बाद में जब उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई तो महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उस समय भी पार्टी के आधा दर्जन सांसद और मंत्री त्रिपुरा गए थे. बाद में स्थानीय अदालत ने सबको जमानत दे दी.
उसके बाद भी टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हमले की घटनाएं हुई. बीते रविवार को ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी के अगरतला पहुंचने पर उनकी कार पर हमला किया गया और गो बैक के नारे लगाए गए. पुलिस ने इस मामले में ना तो किसी को गिरफ्तार किया और ना ही दूसरी कोई कार्रवाई की. राज्य की बीजेपी सरकार या उसके किसी मंत्री ने भी इस मामले की निंदा नहीं की. उल्टे बीजेपी नेताओं ने अभिषेक पर ही हिंसा भड़काने का आरोप लगाया. ताजा मामले में शनिवार को टीएमसी के सात कार्यकर्ताओं पर हमले किए गए. इसमें उनको गंभीर चोटें आईं. उसके बाद उन सबको पूछताछ के बहाने थाने बुलाया गया और महामारी अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया.
इसके बाद रविवार को अभिषेक दोबारा त्रिपुरा पहुंचे और सीधे थाने में गए. उस दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं की भीड़ ने थाने को लगभग घेर रखा था और विरोध प्रदर्शन कर रही थी. देर शाम उनको एक स्थानीय अदालत से जमानत मिलने के बाद अभिषेक इलाज के लिए सबको कोलकाता ले आए. उससे पहले उन्होंने पत्रकारों से कहा, "त्रिपुरा में अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सत्ता से जाना तय है. राज्य में कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र नामक कोई चीज नहीं बची है."
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ममता बनर्जी ने बीजेपी पर आरोप लगाए
इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने त्रिपुरा में बीजेपी की कथित अराजकता की निंदा करते हुए अभिषेक पर बीते रविवार को हुए हमलों को लिए अमित शाह को जिम्मेदार ठहराया है. सोमवार को कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में त्रिपुरा के घायल पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बाद उनका कहना था, " त्रिपुरा, असम, उत्तर प्रदेश और जिन दूसरे राज्यों में बीजेपी सत्ता में है, वहां अराजक सरकार चला रही है. हम अभिषेक और त्रिपुरा में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों की निंदा करते हैं. इस तरह के हमले केंद्रीय गृह मंत्री के सक्रिय समर्थन के बिना संभव नहीं हो सकते. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री में इस तरह के हमलों का आदेश देने का साहस नहीं है.”
पूर्वोत्तर में कहां किसकी सरकार है?
भारत के राष्ट्रीय मीडिया में पूर्वोत्तर के राज्यों का तभी जिक्र होता है जब वहां या तो चुनाव होते हैं या फिर कोई सियासी उठापटक. चलिए जानते है सात बहनें कहे जाने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों में कहां किसकी सरकार है.
तस्वीर: IANS
असम
अप्रैल 2016 में हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और लगातार 15 साल से सीएम की कुर्सी पर विराजमान तरुण गोगोई को बाहर का रास्ता दिखाया. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया.
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त्रिपुरा
बीजेपी ने त्रिपुरा में सीपीएम के किले को ध्वस्त कर फरवरी 2018 में हुए चुनावों में शानदार कामयाबी हासिल की. इस तरह राज्य में बीस साल तक चली मणिक सरकार की सत्ता खत्म हुई. बीजेपी ने सरकार की कमान जिम ट्रेनर रह चुके बिप्लव कुमार देब को सौंपी.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
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मणिपुर
राज्य में मार्च 2017 में हुए चुनावों में कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी जबकि 21 सीटों के साथ बीजेपी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन बीजेपी अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही. कई कांग्रेसी विधायक भी बीजेपी में चले गए. कभी फुटबॉल खिलाड़ी रहे बीरेन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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सिक्किम
सिक्किम में पच्चीस साल तक लगातार पवन कुमार चामलिंग की सरकार रही. लेकिन 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी सरकार में कभी मंत्री रहे पी एस गोले ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया. चामलिंग की पार्टी एसडीएफ के 10 विधायक भाजपा और 2 गोले की पार्टी एसकेएम में चले गए. अब वो अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं.
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अरुणाचल प्रदेश
अप्रैल 2014 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 60 में 42 सीटें जीतीं और नबाम तुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बरकरार रही. लेकिन 2016 में राज्य में सियासी संकट में उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. इसके बाद कांग्रेस को तोड़ पेमा खांडू मुख्यमंत्री बन गए और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.
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मिजोरम
2018 तक मिजोरम में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. तब लल थनहवला मुख्यमंत्री थे. लेकिन दिसंबर में हुए चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट ने बाजी मार ली. अब जोरामथंगा वहां के मुख्यमंत्री हैं.
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टीएमसी प्रमुख का आरोप था कि त्रिपुरा पुलिस के सामने ही बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इन हमलों को अंजाम दिया. लेकिन ऊपर के निर्देश की वजह से पुलिस मूक दर्शक बनी रही. घायलों के इलाज की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई.
त्रिपुराअहम क्यों?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत के बाद ममता पहले ही दूसरे राज्यों में टीएमसी के प्रसार की बात कह चुकी हैं. अब उनका अगला निशाना त्रिपुरा है. इसकी वजह यह है कि दोनों राज्यों के लोगों में रहन-सहन,खान-पान और बोली में काफी हद तक समानता है. खासकर बंगाली हिंदुओं की तादाद सबसे ज्यादा है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 31 फीसदी त्रिपुरा के मूल निवासी हैं लेकिन बाहर से आकर बसने वालों की तादाद लगभग 69 फीसदी है. इनमें से ज्यादातर बंगाली हैं. यही वजह है कि प्रदेश में भले ही सरकारी भाषा त्रिपुरी हो. लेकिन उसे बोलने वालों की तादाद लगभग 26 फीसदी है. जबकि बांग्ला बोलने वालों की करीब 63 फीसदी है.
त्रिपुरा की राजनीतिक जमीन को अपने लिए उर्वर मानते हुए टीएमसी ने अभी से चुनावी तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी के बड़े नेता राज्य का लगातार दौरा कर रहे हैं. दूसरी ओर, पीके की टीम भी काम में जुटी है. त्रिपुरा में टीएमसी ने प्रदेश संगठन का नए सिरे से गठन किया है. बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए के लिए टीएमसी वहां क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिलाने को भी तैयार है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने हाल में ऐलान किया था कि बीजेपी को हटाने के लिए टीएमसी किसी भी दल से हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं.
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के एक से एक बयान
मार्च 2018 में बिप्लब कुमार देब ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. कुछ ही दिनों में उनके एक से एक बयान सुर्खियां बटोरने लगे. जानिए उन्होंने ऐसा क्या क्या कहा जो चर्चा का विषय बन गया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
टैगोर ने लौटाया था नोबेल पुरस्कार
रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर उदयपुर में भाषण देते हुए बिप्लब देब ने कहा कि ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए टैगोर ने नोबेल पुरस्कार ठुकरा दिया था, जबकि सच यह है कि टैगोर साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. 1913 में उन्हें यह पुरस्कार दिया गया. टैगोर ने नाइट की उपाधि को ठुकराया था.
तस्वीर: DW/M. Mamun
महाभारत के युग में भी था इंटरनेट
एक वर्कशॉप के दौरान बिप्लब देब ने कहा, "इंटरनेट और सैटेलाइट के जरिए संचार महाभारत के दिनों में भी होता था. नहीं तो संजय नेत्रहीन राजा को कुरुक्षेत्र के मैदान का पूरा ब्योरा कैसे देता? इसका मतलब यह है कि तब इंटरनेट था, सैटेलाइट और वह तकनीक उस समय इस देश में थी." उन्होंने आगे कहा, "मैं नहीं जानता कि बीच में क्या हुआ, महाभारत के युग और आज के समय के बीच."
तस्वीर: Motilal UK Books of India
डायना हेडन नहीं हैं भारतीय सुंदरी
एक अन्य वर्कशॉप में देब ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय फैशन माफिया ने डायना हेडन को मिस वर्ल्ड चुना, "डायना हेडन तक को (खिताब) मिल गया. देखिए, अब पूरी दुनिया हंस रही है. मुझे बताइए, क्या डायना हेडन को यह मिलना चाहिए था? ऐश्वर्या राय को मिला, वो ठीक है क्योंकि वह भारतीय नारी के सौंदर्य का प्रतीक हैं. भारतीय नारी मतलब मां लक्ष्मी, मां सरस्वती. डायना हेडन खूबसूरती की इस परिभाषा में फिट नहीं बैठतीं."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Joe
सिविल इंजीनियर को करनी चाहिए सिविल सर्विस
डायना हेडन वाले बयान के एक दिन बाद ही देब ने इंजीनियरों के बारे में यह कहा, "मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल सर्विस में नहीं जाना चाहिए. बल्कि सिविल इंजिनियर को सिविल सर्विस करनी चाहिए क्योंकि उनके पास जरूरी ज्ञान है और प्रशासन व समाज के निर्माण का तजुर्बा है." उन्होंने यह भी कहा कि एक वक्त था जब आर्ट्स के छात्र सिविल सर्विस के लिए जाते थे लेकिन अब डॉक्टर और इंजीनियर भी ऐसा करने लगे हैं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
ग्रेजुएट बेचें दूध
बेरोजगारी पर बात करते हुए उन्होंने एक सभा में कहा, "हर घर में एक गाय होनी चाहिए. सरकारी नौकरी के लिए नेताओं के पीछे क्यों भागना? आज दूध 50 रुपये लीटर पर बिक रहा है. ग्रेजुएट लोगों को गाय खरीदनी चाहिए और दूध बेच कर दस साल में दस लाख रुपये कमाने चाहिए. बजाए इसके कि वे राजनीतिक पार्टियों के पीछे भागें."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Woitas
पान की दुकान खोल लो
इसी सभा में उन्होंने यह भी कहा, "यहां का युवा सरकारी नौकरी की चाहत में कई कई सालों तक राजनीतिक पार्टियों के पीछे भागता रहता है और अपने जीवन का जरूरी समय बर्बाद कर देता है. इसी युवा ने अगर पार्टियों के पीछे भागने की जगह पान की दुकान खोल ली होती, तो अब तक पांच लाख रुपये का बैंक बैलेंस होता." जल्द ही देब की पान की दुकान वाली मिसाल की तुलना प्रधानमंत्री मोदी के पकौड़े वाले जुमले से होने लगी.
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प्रधानमंत्री को जवाबदेही
कुछ ही दिनों के भीतर इतने सारे विवादास्पद बयानों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देब को बुलवाया है. सोशल मीडिया पर इस बारे में कई तरह के चुटकुले चल रहे हैं. कुछ लोग तो चुटकी लेते हुए यह भी कह रहे हैं कि देब को ऐसी बयानबाजी करने को कहा गया है ताकि चुनावी साल में प्रधानमंत्री मोदी के विवादित बयानों से ध्यान भटकाया जा सके.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Dey
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जानकारों का कहना है कि टीएमसी त्रिपुरा के राजपरिवार से आने वाले प्रद्योत देबबर्मा और उनकी पार्टी तिपरा के साथ हाथ मिला सकती है. पिछले दिनों देबबर्मा की ममता और अभिषेक के साथ इस मुद्दे पर चर्चा भी हो चुकी है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बंगाल के नतीजों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी त्रिपुरा में टीएमसी को पांव जमाने का मौका नहीं देना चाहती. मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए आने वाले दिनों में यहां राजनीतिक हिंसा और तेज होने का अंदेशा है. राजनीतिक विश्लेषक सुशांत कुमार देब कहते हैं, "मुख्यमंत्री बिप्लब देव के खिलाफ भी पार्टी और सरकार में असंतोष बढ़ रहा है. शायद टीएमसी से मिलने वाली चुनौतियों और पार्टी में बढ़ते असंतोष को ध्यान में रखते हुए ही बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी त्रिपुरा के दौरे पर आने वाले हैं.”