भारत की राजनीति में इन दिनों आर्थिक विकास के आंकड़ों पर बहस चल रही है. विपक्ष कहता है कि आम चुनाव को आता देख कर सरकार आर्थिक डाटा को तोड़ मरोड़ रही है.
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भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन इसके अलावा अर्थव्यवस्था की कई दूसरी बातों पर बहस हो सकती है. जैसे कि इस बार कांग्रेस के शासनकाल के आर्थिक विकास के आंकड़े को कम करने के लिए सत्ताधारी बीजेपी की आलोचना हो रही है. पुराने सरकारी अनुमानों को बदलते हुए एक स्वतंत्र समिती के आंकड़ों को जगह दी गई है.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों में 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने से पहले 10 साल तक सत्तासीन कांग्रेस के काल में जीडीपी की औसत दर को घटा कर 6.7 कर दिया है. पहले की सरकार में यह अनुमान 7.8 फीसदी था.
नाजुक वक्त में छिड़ी बहस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य के लिए यह एक अहम साल माना जा रहा है. 2019 में देश में आम चुनाव होने हैं जिसमें केंद्र में एक नई सरकार चुनी जानी है. ऐसे में उद्योग-धंधों के समर्थक होने का दावा करने वाली सरकार के लिए अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार दिखाने का दबाव काम कर सकता है. बीजेपी सरकार इस बात की कोशिश करती दिख रही है कि वह खुद को कांग्रेस के मुकाबले आर्थिक मोर्चे पर ज्यादा सफल दिखाए.
उस समय की कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने इसे "एक मजाक" बताया है. जवाब में वर्तमान वित्त मंत्री बीजेपी के अरुण जेटली ने सीएसओ को एक भरोसेमंद संस्था बताते हुए इन आंकड़ों का समर्थन किया है.
सांख्यिकी विशेषज्ञों की चिंता
आंकड़ों की इस बहस से भारत के प्रमुख सांख्यिकी विशेषज्ञों में भी चिंता की लहर दौ़ड़ गई है. बिजनेस न्यूज देने वाले अखबार मिंट में छपे एक संपादकीय लेख में विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इससे भारत की सांख्यिकी सेवा की साख खराब होगी.
दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरह आज भी भारत में कोई स्वतंत्र सांख्यिकी ईकाई नहीं है. साल 2005 में नेशनल स्टैटिस्टिक्स कमिशन (एनएससी) की स्थापना तो इसी लक्ष्य के साथ हुई थी, लेकिन अब तक उसे वह पहचान नहीं दी गई है.
एक साल पहले एनएससी ने अर्थशास्त्री सुदीप्तो मंडले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था, जिनका काम जीडीपी के नए ऐतिहासिक आंकड़े निकालना था. इस साल जुलाई में प्रकाशित हुई उनकी रिपोर्ट में बताया गया कि बीजेपी के पहले के एक दशक में वृद्धि दर औसतन 8.1 प्रतिशत रही.
एक तरफ कांग्रेस ने इन आंकड़ों का स्वागत किया तो दूसरी ओर सत्ताधारी बीजेपी ने इस रिपोर्ट पर सफाई देते हुए कहा कि इसे "अंतिम नहीं माना जाना चाहिए और इन आंकड़ों को लिए कई अन्य वैकल्पिक तरीके भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं." इसके कुछ दिनों बाद ही इस रिपोर्ट को सरकारी वेबसाइट से हटा भी लिया गया.
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
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तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
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सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
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समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
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एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)
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पार्टियां उठा रही हैं फायदा
अर्थशास्त्री मंडले कहते हैं, "यह पूरा मामला दुर्भाग्य से काफी राजनीतिक बन चुका है." उन्होंने कहा कि इसे लेकर दोनों दलों के बीच की लड़ाई "काफी परेशान करने वाली है."
मंडले की समिति में रहे एनआर भानुमूर्ति बताते हैं कि पूर्व में एनएससी की भूमिका को और औपचारिक बनाने के रास्ते में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने रोड़े अटकाए थे. वे कहते हैं, "सरकार से आजाद रखने में इन्होंने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई."
अब इस सारी बहस के बीच यह साफ नहीं हो पाया है कि असल में भारत में आर्थिक विकास कैसा हुआ और हो रहा है. अर्थशास्त्री भी परेशान हैं कि 1.3 अरब की आबादी वाले देश के आर्थिक मोर्चे पर प्रदर्शन को कैसा माना जाए.
2015 से भारत में सरकारी तौर पर रोजगार सर्वे भी नहीं हुआ है. सरकार इस बारे में जब तक कोई नया तंत्र विकसित करे, तब तक भी इस साल मार्च से 10 से अधिक लोगों वाली कंपनियों का तिमाही सर्वे भी जारी नहीं किया गया है. भानुमूर्ति कहते हैं कि जब औपचारिक सेक्टरों का यह हाल है, तो भारत के बहुत बड़े अनौपचारिक सेक्टर में रोजगार में लगे लोगों के आंकड़ों को "लगभग असंभव" मान लेना चाहिए. असल आंकड़ों के अभाव में इस खाली जगह को राजनीतिक दल अपने अपने हितों से भरते दिखाई दे रहे हैं.
आरपी/आईबी (रॉयटर्स)
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
भारतीय जनता पार्टी पूरे भारत पर छाने को बेताब है. लेकिन कई राज्य अब भी ऐसे हैं जहां गैर बीजेपी सरकारें चल रही हैं. चलिए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
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पंजाब
पंजाब अब देश का अकेला ऐसा अहम राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है. राज्य की कमान मुख्यमंत्री अमिरंदर सिंह के हाथों में है. पंजाब में बीजेपी का अकाली दल के साथ गठबंधन है.
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कर्नाटक
मई 2018 के विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला. राज्यपाल ने सबसे पहले बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने विश्वासमत से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन सरकार बनाने का न्यौता मिला.
तस्वीर: UNI
केरल
केरल में पी विजयन के नेतृत्व में वामपंथी सरकार चल रही है. कांग्रेस राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी है. बीजेपी भी वहां कदम जमाने की कोशिश कर रही है.
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तमिलनाडु
तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी के हाथ में है. करुणानिधि की डीएमके पार्टी एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी है.
तस्वीर: Imago/Westend61
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी टीडीपी पार्टी ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ा है. चंद्रबाबू नायडू राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
तेलंगाना
तेलंगाना में टीआरएस की सरकार का नेतृत्व पार्टी प्रमुख के चंद्रशेखर राव कर रहे हैं. वह 2019 के आम चुनाव के पहले गैर बीजेपी गैर कांग्रेसी विपक्षी एकता की कोशिशों में भी जुटे हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
ओडिशा
नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओडिशा में 2000 से बीजू जनता दल की सरकार चल रही है. वहां विपक्षी पार्टियों में बीजेपी का स्थान कांग्रेस के बाद आता है.
तस्वीर: UNI
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी काफी जोर लगा रही है. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्य पर मजबूत पकड़ है, जो 2011 से सत्ता में हैं.
तस्वीर: DW
मिजोरम
कांग्रेस सरकार का नेतृत्व ललथनहवला कर रहे हैं. 2008 से वह मुख्यमंत्री पद पर हैं. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 34 सदस्य हैं.
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पुडुचेरी
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है जिसका नेतृत्व वी नारायणसामी (फोटो में दाएं) कर रहे हैं. तीस सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्य हैं.