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बीजेपी-कांग्रेस में अब आर्थिक आंकड़ों की राजनीति

३ दिसम्बर २०१८

भारत की राजनीति में इन दिनों आर्थिक विकास के आंकड़ों पर बहस चल रही है. विपक्ष कहता है कि आम चुनाव को आता देख कर सरकार आर्थिक डाटा को तोड़ मरोड़ रही है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन इसके अलावा अर्थव्यवस्था की कई दूसरी बातों पर बहस हो सकती है. जैसे कि इस बार कांग्रेस के शासनकाल के आर्थिक विकास के आंकड़े को कम करने के लिए सत्ताधारी बीजेपी की आलोचना हो रही है. पुराने सरकारी अनुमानों को बदलते हुए एक स्वतंत्र समिती के आंकड़ों को जगह दी गई है.

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों में 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने से पहले 10 साल तक सत्तासीन कांग्रेस के काल में जीडीपी की औसत दर को घटा कर 6.7 कर दिया है. पहले की सरकार में यह अनुमान 7.8 फीसदी था.

नाजुक वक्त में छिड़ी बहस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य के लिए यह एक अहम साल माना जा रहा है. 2019 में देश में आम चुनाव होने हैं जिसमें केंद्र में एक नई सरकार चुनी जानी है. ऐसे में उद्योग-धंधों के समर्थक होने का दावा करने वाली सरकार के लिए अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार दिखाने का दबाव काम कर सकता है. बीजेपी सरकार इस बात की कोशिश करती दिख रही है कि वह खुद को कांग्रेस के मुकाबले आर्थिक मोर्चे पर ज्यादा सफल दिखाए.

उस समय की कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने इसे "एक मजाक" बताया है. जवाब में वर्तमान वित्त मंत्री बीजेपी के अरुण जेटली ने सीएसओ को एक भरोसेमंद संस्था बताते हुए इन आंकड़ों का समर्थन किया है.

सांख्यिकी विशेषज्ञों की चिंता

आंकड़ों की इस बहस से भारत के प्रमुख सांख्यिकी विशेषज्ञों में भी चिंता की लहर दौ़ड़ गई है. बिजनेस न्यूज देने वाले अखबार मिंट में छपे एक संपादकीय लेख में विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इससे भारत की सांख्यिकी सेवा की साख खराब होगी.

दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरह आज भी भारत में कोई स्वतंत्र सांख्यिकी ईकाई नहीं है. साल 2005 में नेशनल स्टैटिस्टिक्स कमिशन (एनएससी) की स्थापना तो इसी लक्ष्य के साथ हुई थी, लेकिन अब तक उसे वह पहचान नहीं दी गई है.

एक साल पहले एनएससी ने अर्थशास्त्री सुदीप्तो मंडले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था, जिनका काम जीडीपी के नए ऐतिहासिक आंकड़े निकालना था. इस साल जुलाई में प्रकाशित हुई उनकी रिपोर्ट में बताया गया कि बीजेपी के पहले के एक दशक में वृद्धि दर औसतन 8.1 प्रतिशत रही.

एक तरफ कांग्रेस ने इन आंकड़ों का स्वागत किया तो दूसरी ओर सत्ताधारी बीजेपी ने इस रिपोर्ट पर सफाई देते हुए कहा कि इसे "अंतिम नहीं माना जाना चाहिए और इन आंकड़ों को लिए कई अन्य वैकल्पिक तरीके भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं." इसके कुछ दिनों बाद ही इस रिपोर्ट को सरकारी वेबसाइट से हटा भी लिया गया.

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पार्टियां उठा रही हैं फायदा

अर्थशास्त्री मंडले कहते हैं, "यह पूरा मामला दुर्भाग्य से काफी राजनीतिक बन चुका है." उन्होंने कहा कि इसे लेकर दोनों दलों के बीच की लड़ाई "काफी परेशान करने वाली है."

मंडले की समिति में रहे एनआर भानुमूर्ति बताते हैं कि पूर्व में एनएससी की भूमिका को और औपचारिक बनाने के रास्ते में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने रोड़े अटकाए थे. वे कहते हैं, "सरकार से आजाद रखने में इन्होंने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई."

अब इस सारी बहस के बीच यह साफ नहीं हो पाया है कि असल में भारत में आर्थिक विकास कैसा हुआ और हो रहा है. अर्थशास्त्री भी परेशान हैं कि 1.3 अरब की आबादी वाले देश के आर्थिक मोर्चे पर प्रदर्शन को कैसा माना जाए.

2015 से भारत में सरकारी तौर पर रोजगार सर्वे भी नहीं हुआ है. सरकार इस बारे में जब तक कोई नया तंत्र विकसित करे, तब तक भी इस साल मार्च से 10 से अधिक लोगों वाली कंपनियों का तिमाही सर्वे भी जारी नहीं किया गया है. भानुमूर्ति कहते हैं कि जब औपचारिक सेक्टरों का यह हाल है, तो भारत के बहुत बड़े अनौपचारिक सेक्टर में रोजगार में लगे लोगों के आंकड़ों को "लगभग असंभव" मान लेना चाहिए. असल आंकड़ों के अभाव में इस खाली जगह को राजनीतिक दल अपने अपने हितों से भरते दिखाई दे रहे हैं.

आरपी/आईबी (रॉयटर्स)

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